पैंगोंग त्सो में नाकामी के बाद भारत के साथ नया माइंड गेम खेल रहा है चीन, PLA की पोल खोलने वाली रिपोर्ट
नई दिल्ली- बीते तीन महीनों में पूर्वी लद्दाख में तीन-तीन बार मोर्चे पर भारतीय सेना के हाथों नाकामी मिलने के बाद चीन की प्रोपेगेंडा मशीनों ने नया माइंड गेम को अपना हथकंडा बना लिया है। चाइनीज अखबार अब यह प्रचार करने में लग गए हैं कि लद्दाख में भारत के पास जाड़े में लंबी लड़ाई के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर ही मौजूद नहीं हैं और ना ही उसके जवान हाई एल्टीट्यूट पर चलने वाली लंबी लड़ाई को झेलने में सक्षम हैं। आज हम आपको चीन के ही एक मिलिट्री एक्सपर्ट की जुबानी बताने जा रहे हैं कि चीन ऐसे चोचलेबाजी कर रहा है, जैसे वीडियो गेम खेलते-खेलते सबकुछ की उसको ही जानकारी हो और दूसरों को कुछ भी पता नहीं। आइए पढ़िए, चीन की प्रोपेगेंडा मशीन की पोल खोलती ये रिपोर्ट-
भारत के साथ नया माइंड गेम खेलने लगा है चीन
चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्रों में से एक ग्लोबल टाइम्स ने पूर्वी लद्दाख में आने वाले ठंडे मौसम के लिए भारतीय सेना की तैयारियों को लेकर नया प्रोपेगेंडा शुरू कर दिया है। उसका कहना है कि भारतीय मीडिया में जो रिपोर्ट आ रही हैं कि भारतीय सेना लद्दाख में पूरी तैयारियों में जुटी हुई है, असल में यह मनोवैज्ञानिक लड़ाई है। ग्लोबल टाइम्स ने इस प्रोपेगेंडा के लिए बीजिंग स्थित त्सिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रैटजी इंस्टीट्यूट के रिसर्च डिपार्टमेंट के डायरेक्टर क्वियान फेंग को कोट करते हुए लिखा है, 'भारत मनोवैज्ञानिक युद्ध में लगा हुआ है और अपनी जनता को शांत करने के लिए खुद को शक्तिशाली दिखाना चाहता है। हालांकि, लद्दाख इलाके में इसके इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण और जाड़े में बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाने और फ्रंटलाइन सैनिकों तक सप्लाई पहुंचाने की क्षमता उतनी अच्छी नहीं है, जितना कि वह दावा करता है।'
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भारतीय सेना के इस अनुभव से दबाव में है चीन
दरअसल, ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय सेना के मेजर जनरल अरविंद कपूर के उस बयान पर इस तरह का प्रोपेगेंडा करना शुरू किया है, जिसमें उन्होंने गुरुवार को कहा कि भारतीय सेना बेहद ठंड महीनों के लिए पूरी तरह से तैयार है और लद्दाख में तैनात जवानों के लिए खाने-पीने की चीजें, कपड़ों और सभी जरूरी सप्लाई और ईंधन का स्टॉक जुटा लिया गया है। उन्होंने यह भी जानकारी दी है कि भारत ने इतने स्मार्टली अपना लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है कि बाहर से आने वाली अतिरिक्त टुकड़ियां भी यूनिट में बिना किसी परेशानी के आसानी से शामिल हो सकती हैं। लेकिन, भारतीय सेना के हाई एल्टीट्यूड वारफेयर का यही अनुभव चीन को खटक रहा है।
नए प्रोपेगेंडा में लगा हुआ है चीन
क्वियान का यह भी कहना है कि ऊंचाइयों और ठंडे ग्लेशियर वाले इलाकों में रहने का भारतीय सेना के पास अनुभव जरूर है, लेकिन वहां पर ऑपरेशन का बहुत ही कम अनुभव है। उनका कहना है कि बिना लड़ाई के ही मौतों का आंकड़ा उसका बहुत ज्यादा है। वो कहते हैं, 'ठंड में लद्दाख का मौसम और उसका इलाका बड़े पैमाने के ऑपरेशन के लिए बड़ी चुनौती है, जिसके लिए बिना रुकावट और तत्काल पहुंचने वाले लॉजिस्टिकल सपोर्ट और मेडिकल सप्लाईज की आवश्यकता होती है। ' उनका दावा है कि भारत इसमें कहीं नहीं टिक सकता। वहीं ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भारतीय सेना की अपनी सीमाएं हैं। इसके लिए भारतीय सेना को ट्रांसपोर्ट प्लेन का इस्तेमाल करना पड़ता है।
चीन के मिलिट्री एक्सपर्ट ही मान चुके हैं भारतीय सैनिकों का लोहा
विश्लेषकों के हवाले से चीन की स्थिति का बखान करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि लॉजिस्टिकल सपोर्ट, ट्रांसपोर्टेशन और इसके उत्तर-पश्चिम इलाके में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से चीन ने हुबेई प्रांत के तिब्बत क्षेत्र में हजारों पैराट्रूपर्स और बख्तरबंध वाहनों को बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाकर दिखाया है। यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ कुछ ही घंटों में पूरी कर ली गई, जिससे की जरूरत पड़ने पर चीन की सैन्य क्षमता का पता चलता है। जबकि, चीन के इस प्रोपेगेंडा की पोल गलवान की घटना से ठीक पहले एक चाइनीज मिलिट्री एक्सपर्ट के लेख से खुल जाती है। चीन के आधुनिक हथियारों से जुड़ी एक मैगजीन के सीनियर एडिटर हुआंग गुओझी ने तब लिखा था, 'मौजूदा समय में पठार और पर्वतीय सैनिकों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा और अनुभवी देश न तो अमेरिका और रूस है और न ही यूरोपीय पावरहाउस हैं, बल्कि भारत है। 'उन्होंने कहा था कि जिस किसी भारतीय जवान की पहाड़ों पर तैनाती होती है, उसके लिए पर्वातारोहण एक 'आवश्यक कौशल' है। आप हुआंग गुओझी की पूरी बात वनइंडिया के इस लिंक पर भी क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
चीन की कल्पना से भी अधिक तैयार हैं हमारे जवान
चीन के प्रोपेगेंडाबाजों से उलट अब तथ्यों पर नजर डाल लेना भी जरूरी है। भारतीय जवानों को हाई एल्टीट्यूड वारफेयर के लिए ना केवल अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया जाता है, बल्कि उनकी मेडिकल जरूरतों पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। ऊंचाई पर लड़ने के लिए ये सैनिक दुनिया में सबसे बेहतरीन तरीके से प्रशिक्षित होते हैं, उन्हें ठहरने के लिए स्पेशल शेल्टर दिया जाता है, अत्यधिक सर्दी से रक्षा के लिए उनके यूनिफॉर्म स्पेशल होते हैं और उन्हें बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाला राशन मुहैया कराया जाता है। राहत और बचाव के लिए उन्हें अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों से भी लैस किया जा रहा है, ताकि किसी भी दुर्घटना के वक्त उन्हें वक्त पर सुरक्षित निकाला जा सके।
1662 के सिंड्रोम से बाहर नहीं निकलना चाहता है चीन ?
यही वजह है कि 14 कॉर्प्स के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजेएस पन्नू (रिटायर्ड) ने एक इंटरव्यू में कहा है कि लगता है कि चीन अभी भी 1962 वाले सिंड्रोम से बाहर नहीं निकला है। उन्हें लगता है कि भारत अभी भी कमजोर होगा और उसे धक्का दिया जा सकता है। लेकिन पैंगोंग त्सो के पास जो कुछ हुआ उससे उन्हें महसूस हो चुका है कि अब भारत को धकेला नहीं जा सकता। बता दें कि लद्दाख से लगने वाली चीन-पाकिस्तान की सीमा और सियाचिन ग्लेशियर 14 कॉर्प्स के ही अधीन आता है, जिसका हेडक्वार्टर लेह में है।
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