लद्दाख के देपसांग पर कब्जा करने की फिराक में है चीन, पैंगोंग त्सो पर लड़ाई तो है बस बहाना!
नई
दिल्ली।
पूर्वी
लद्दाख
में
लाइन
ऑफ
एक्चुअल
कंट्रोल
(एलएसी)
पर
स्थिति
जस
की
तस
बनी
हुई
है।
चीन
किसी
भी
सूरत
में
पीछे
हटने
को
तैयार
नहीं
है।
पैंगोंग
के
उत्तरी
इलाके
पर
जहां
पीपुल्स
लिब्रेशन
आर्मी
(पीएलए)
के
जवान
बने
हुए
हैं
तो
वहीं
पिछले
कुछ
दिनों
से
वह
इसके
दक्षिण
में
स्थित
चुशुल
सेक्टर
में
भी
घुसपैठ
की
कोशिशें
कर
चुके
हैं।
रक्षा
मंत्री
राजनाथ
सिंह
ने
भी
माना
है
कि
इस
बात
को
माना
है
इस
बार
लद्दाख
में
स्थिति
पहले
की
तुलना
में
काफी
अलग
है।
लेकिन
लोकसभा
और
राज्यसभा
में
सदन
को
एलएसी
के
बारे
में
जानकारी
देते
हुए
भी
देपसांग
का
जिक्र
नहीं
किया।
देपसांग
प्लेन
के
बारे
में
उनकी
चुप्पी
से
रक्षा
विशेषज्ञ
हैरान
हैं।
यह भी पढ़ें-अरुणाचल की 90,000 स्क्वॉयर किमी जमीन पर चीन का दावा
रक्षा मंत्री ने नहीं लिया देपसांग का नाम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से एक बार भी लद्दाख के देपसांग पर कुछ नहीं कहा गया है। जबकि यह वह हिस्सा है जहां पर चीनी जवानों ने इस वर्ष अप्रैल माह से ही भारतीय जवानों की गश्त को ब्लॉक किया हुआ है। इसके अलावा इस क्षेत्र में दोनों देशों के जवानों भारी संख्या में तैनात हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक सीनियर रक्षा अधिकारी के हवाले से लिखा है कि देपसांग एक पुराना मुद्दा है और इस क्षेत्र को फिलहाल टकराव वाले नए बिंदुओं के बराबर नहीं रखना चाहिए। वर्तमान समय में भारत और चीन की सेनाओं के बीच पैंगोंग त्सो-चुशुल, गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स और गलवान घाटी में टकराव बरकरार है। रक्षा सूत्रों की मानें तो जो टकराव अभी जारी है उसके तहत देपसांग में कोई भी सैन्य टकराव नहीं है।
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900 स्क्वॉयर किमी की जमीन पर दावा
ताजा घटनाक्रम में चीन की तरफ से यहां पर स्थिति में बदलाव की कोई कोशिशें नहीं की गई हैं। भले ही रक्षा अधिकारी इस बात से इनकार करें लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि चीन की नजरें देपसांग क्षेत्र पर गड़ी हुई हैं। उनका मानना है कि चीन के लिए यहह क्षेत्र बहुत ही अहम है और इसलिए वह ध्यान बांटने के लिए दूसरे क्षेत्रों में आक्रामक स्थिति अपनाए हुए है। देपसांग की वजह से ही चीन पैंगोंग के कई हिस्सों पर आक्रामक है। देपसांग प्लेन की 972 स्क्वॉयर किलोमीटर की जमीन पर चीन अपना दावा करता है। चीन इस बात को लेकर खासा परेशान है कि देपसांग-दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर उसके वेस्टर्न हाइवे जी-219 के एकदम करीब है। यह हाइवे तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ता है।
पीएलए के 12,000 जवान देपसांग में
पीएलए ने अपनी 4 मोटोराइज्ड इनफेंट्री डिविजन और 6 मैकेनाइज्ड इनफेंट्री डिविजन के 12,000 से ज्यादा जवानों को टैंक्स और आर्टिलरी गन को यहां पर तैनात किया हुआ है। देपसांग के डेप्थ एरियाज में इन जवानों की तैनाती है। मई माह से भारत की तरफ से दो अतिरिक्त ब्रिगेड्स को तैनात किया गया है। हर ब्रिगेड में करीब 3,000 जवान होते हैं। इसके अलावा देपसांग में टैंक और मैकेनाइज्ड इनफेंट्री रेजीमेंट्स को भी तैनात कर दिया गया है। देपसांग 16,000 फीट की ऊंचाई पर है और यह जगह डीबीओ पर एडवांस लैंडिंग ग्राउंड और काराकोरम पास तक जाती है।
2013 में 19 किमी तक हुए दाखिल
आखिरी बार देपसांग में 2013 अप्रैल- मई में चीन के साथ टकराव हुआ था। पीएलए जवानों ने उस समय राकी नाला इलाके में 19 किलोमीटर तक घुसपैठ कर ली थी। 21 दिनों बाद कहीं जाकर इस टकराव को खत्म किया जा सकता था। एक ऑफिसर की मानें तो भारत अगर यह कहता है कि देपसांग का वर्तमान टकराव से कोई लेना देना नहीं है तो फिर वह चीन की रणनीति के आगे विफल हो गया है। ऑफिसर की मानें तो देपसांग में भारतीय जवानों को पेट्रोलिंग प्वाइंट तक जाने नहीं दिया जा रहा है। पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा यानी एलओसी तक सेना की स्थायी तैनाती मगर एलएसी पर पेट्रोलिंग प्वाइंट् के जरिए वह इसकी रक्षा करती है। ऐसे में अगर गश्त को ब्लॉक किया जा रहा है तो चीन कोई बड़ी चाल चलने की फिराक में है।