China energy crisis:कैसे भारत के रसायन और इस्पात उद्योगों की होने वाली है बल्ले-बल्ले ? जानिए
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर: कोयले की कमी से बिजली संकट दुनियाभर के देश झेल रहे हैं और चीन में यह समस्या भारत से पहले ही आ चुकी है। वहां तो कई उद्योगों में ताले पड़ने की नौबत आ चुकी है। उसने अपनी नीतियों में बदलाव करके कोयला और बिजली के दाम बढ़ाने के भी छूट दिए हैं, लेकिन संकट इतना बड़ा है कि फिर भी उद्योगों में निर्माण के काम पर असर पड़ना तय है। ऊर्जा संकट भारत में भी है, लेकिन चीन की दिक्कत में भारत के रसायन और इस्पात उद्योग के लिए बड़ा मौका भी है। एक्सपर्ट के मुताबिक यही समय है, जब इस क्षेत्र से जुड़े भारतीय उद्योग खुद को मजबूत कर सकते हैं।
भारतीय रसायन और इस्पात उद्योगों को फायदा
चीन में पैदा हुए भयानक ऊर्जा संकट से कोयले की वैश्विक कीमतों पर असर पड़ा है। लॉजिस्टिक महंगी हुई है और कई क्षेत्रों में कच्चे माल की कीमतें बढ़नी शुरू हो गई हैं। लेकिन, उद्योगों से जुड़े एक्सपर्ट का मानना है कि चीन की कंपनियों से सप्लाई प्रभावित होने के चलते भारतीय रासायनिक और इस्पात निर्माताओं को फायदा मिलने वाला है, उनके विकास की संभावना पैदा होने वाली हैं। फिच ग्रुप की कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने कहा है, 'चीन में छाया ऊर्जा संकट और इसकी वजह से चीनी कंपनियों के बंद होने की आशंका या निर्माण में आने वाली रुकवाटें भारतीय कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होंगे, क्योंकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में उनके उत्पादों की मांग बढ़नी तय है।'
भयानक ऊर्जा संकट झेल रहा है चीन
चीन कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। वैश्विक स्तर पर कोयले की कमी की मुख्य वजह असमान बारिश होना, जिसके चलते खदानों में पानी भर गया है और चीन में खदानों को लेकर सख्त सुरक्षा नियमों को बताया जा रहा है। कोयले की कमी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसके भाव चढ़ रहे हैं, जिसके चलते चीन की कंपनियां ऊर्जा के वैकल्पिक पारंपरिक स्रोतों जैसे के तेल और डीजल की ओर शिफ्ट हो रही हैं। लेकिन, इसके चलते तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी इजाफा हो रहा है।
चीन में इस्पात उत्पादन घटने की संभावना
इंड-रा के मुताबिक बिजली कीमतों को लेकर चीन की ऊर्जा नीति में बदलाव के चलते कई क्षेत्रों में संराचनात्मक बदलाव हो सकते हैं, जिससे अंतरराष्टरीय और घरेलू बाजारों में इसके दाम प्रभावित हो सकते हैं। दूसरी तरफ औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए चीन पहली पहली छमाही में 560 मिलियन टन कच्चे इस्पात का उत्पादन दर्ज करने के बाद चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अपने इस्पात उत्पादन में कटौती कर सकता है, जो कि सालाना 10.5% के हिसाब से बढ़ोतरी कर रहा है।
भारतीय कंपनियों के पास बेहतर मौके-एक्सपर्ट
एक्सपर्ट की मानें तो चीन में इस्पात के उत्पादन घटने और भारत में मध्यवर्ती इस्पात उत्पाद का आयात घटने से भारतीय इस्पात उत्पादकों को आयात का जोखिम घटेगा और निर्यात के बेहतर मौके उपलब्ध होंगे। जबकि, यूपीयन यूनियन से इसकी मांग बरकरार रहने वाली है। वहीं इंड-रा ने कहा कि डाई और पिगमेंट, फार्मास्यूटिकल्स और एग्रोकेमिकल्स जैसे रसायनों के लिए घरेलू एंड-यूजर उद्योग लागत को उपभोक्ताओं की ओर शिफ्ट कर देंगे, जिससे इसकी प्रॉफिटिबिलिटी भी बनी रहेगी।
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कोयले की कमी से जूझ रहे हैं दुनिया के कई देश
दरअसल, कोविड से संबंधित पाबंदियां कम होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था की गतिविधियां बढ़ गई हैं, जिसके चलते चीन समेत दुनियाभर के देशों में बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाला ईंधन कम पड़ रहा है। दुनिया की टॉप खनन कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड भी अपने उपभोक्ताओं को कोयले की आपूर्ति के लिए संघर्ष कर रही है और फिलहाल उसने सिर्फ बिजली उत्पादक कंपनियों को ही कोयले की सप्लाई जारी रखने का फैसला किया है।