चीन के कर्ज़जाल में फंसा एक और देश, सोलोमन के तुलागी द्वीप पर किया कब्जा
बेंगलुरु। चीन अपने प्रभुत्व के विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति के जरिये दादागीरी करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार कर रहा है। कब्जे की कूटनीति के तहत हाल ही में दो बड़ी सीक्रेट डील की हैं। यह डील करके चीन ने वैसी ही चाल चली हैं जिससे उसने श्रीलंका, पाकिस्तान, तिब्बत, हांगकांग और बांग्लादेश को अपने जाल में फंसाया था। चीन की यह डील भारत ही नहीं अमेरिका समेत अन्य देशों के लिए खतरा बनती जा रही हैं। इस डील से दुनिया की विशेषकर अमेरिका की नींद उड़ा दी हैं।
बता दें हाल ही में चीन ने सोलोमन के साथ सीक्रेट डील के तहत सोलोमन के तुलागी द्वीप को 75 साल के लिए लीज पर ले लिया हैं। चीन और सोलोमन के राजनयिक रिश्तों की बहाली के एक महीने बाद ही यह डील अमरीका के लिए बड़ा झटका हैं। वहीं दुनिया के लिए चौंकाने वाली खबर हैं। चीन के इस बेहद महत्वाकांक्षी और रणनीतिक कदम को लेकर कोई अधिकारिक बयान नही आया है। चीन तमाम देशों को संपन्नता का सपना दिखाकर उसकी रणनीतिक पूंजियों पर कब्जा करने का यह नया उदाहरण है। वहीं कुछ दिन पूर्व चीन ने पाकिस्तान से भारत की कच्छ सीमा पर हरामीनाला से करीब 10 किमी दूर स्थित 55 वर्ग किमी जमीन लीज पर ले ली । यह जगह अंतरराष्ट्रीय जलसीमा से भी 10 किमी की दूरी पर है। यह इलाका भारत के लिए सामरिक और सैन्य रूप से काफी अहम है। चीनी कंपनी ने यहां निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया है।
समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए अहम है तुलागी द्वीप
गौरतलब है कि नाम का यह द्वीप बिट्रेन और जापान का दक्षिण प्रशांत का हेडक्वाटर रह चुका है और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसके गहरे पानी ने इसे मजबूत सैन्य हथियार बना दिया था। अब यह बेहत अहम रणनीति क्षेत्र चीन के कब्जे में होगा। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने चीन और सोलोमन द्वीप की प्रांतीय सरकार के बीच एक गोपनीय समाझौता हुआ जिसके तहत चीन की कत्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी एक कंपनी ने पूरी तुलागी द्वीप और इसके आस पास के इलाके के विकास कार्यों के लिए अधिकार खरीद लिया है। इस सीक्रेट डील से तुलागी निवासियों के अलावा पूरी दुनिया भी हैरान हैं। बताया जा रहा हैं कि इस डील के बाद अमेरिका अधिकारी काफी सतर्क हो चुके हैं। अमरीका इस द्वीप को दक्षिण प्रशांत में चीन को रोकने और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए अहम मानते हैं।
आपको बता दें चीन अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की नई रणनीति के तहत विदेशी सरकारों को पैसे का लालच देने के साथ स्थानीय मूलभूत ढांचे में निवेश करने का वादा करता है और उसके बाद विकासशील देश कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस जाते हैं। विशेषज्ञ के अनुसार इसकी भौगोलिक स्थिति से ही पता चल जाता है कि यह कितनी अच्छी जगह है। चीन दक्षिण प्रशांत में अपनी सैन्य पूंजियां स्थापित करना चाह रहा है। बीजिंग की दक्षिण प्रशांत में आर्थिक राजनीतिक और सैन्य महत्वाकांक्षाएं हैं।
चीन के जाल में अब तक फंस चुके हैं देश
चीन की ऋण-जाल कूटनीति का सबसे बड़ा भुक्तभोगी श्रीलंका हैं। श्री लंका ने 8 अरब डालर चीनी ऋण पर भुगतान करने में असमर्थ हो गया जो उसने हंबनटोटा बंदरगाह विकास परियोजना के लिए लिया था और बाद में श्रीलंकाई हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन ने आधिपत्य जमा लिया। इसके तहत इस बंदरगाह के चारों ओर की 1,500 एकड़ जमीन चीन ने कब्जा कर लिया।
वहीं पाकिस्तान से हाल ही में भारत कच्छ सीमा पर हरामीनाला से करीब 10 किमी दूर स्थित 55 वर्ग किमी जमीन जो चीन कंपनी ने लीज पर ली हैं । गौर करने वाली बात ये हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंगों में पाकिस्तान इस क्षेत्र में दो बार मात खा चुका था, इसलिए अब पाकिस्तान यहां चीन को जगह देकर उसे ढाल के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। उसे लगता है कि चीन की मौजूदगी के रहते भारत अब इधर कोई दुस्साहस नहीं करेगा। वहीं, दशकों से चीन भी भारत को घेरने में लगा हुआ है।
कच्छ बॉर्डर के पास जमीन लीज पर लेने से पहले चीन पाक में कराची के पास स्थित ग्वादर पोर्ट भी विकसित करा चुका है। जिसका संचालन चीन ही करता है। इतना ही नहीं पाकिस्तान चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस चुका हैं। कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में वह पाकिस्तान के आर्थिक गलियारे पर कब्जा देने के लिए पाकिस्तान को मजबूर कर सकता है। वहीं हांगकांग पर चीन ने 150 साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हांगकांग को 99 साल की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा था।
इसके अलावा चीन की पैनी नजर बांग्लादेश के पायरा बंदरगाह पर भी है। बांग्लादेश का पायरा बंदरगाह चीन के कब्जे में जा सकता है। दरअसल, दिसंबर 2016 में चीन और बांग्लादेश ने वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) को लेकर समझौता किया था। ओबीओआर को 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई) के नाम से भी जाना जाता है। जिसे चीनी 21वीं सदी का 'सिल्क रूट' कहते हैं। अब भारत को चुनौती देने के लिए चीन धीरे-धीरे नेपाल में अपनी पैठ बना रहा है। वह नेपाल में अपनी राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक छाप छोड़ रहा है। पिछला इतिहास देखे तो चीन संबंधित देश को विकास के नाम पर कर्ज में इस हद तक फंसा देता है कि उसे अपने उद्देश्य के पूरा होने को लेकर कोई संदेह ही नहीं रहता है। चीन अपने प्रभुत्व के विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति के जरिये दादागीरी करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार कर रहा है।
चीन की प्रभुत्व विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति