क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कश्मीर में बंदूकों के साये में बचपन, बनीं 'पहली कश्मीरी'

भारत प्रशासित कश्मीर की पहली महिला आईपीएस रुवेदा सलाम को सम्मानित किया गया है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़
BBC
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़

"जब मैं किसी दूसरी जगह जाती हूं तब एहसास होता है कि कश्मीर कितना पिछड़ गया है"- ये कहना किसी और का नहीं बल्कि कश्मीर की पहली महिला आईपीएस अफ़सर रुवेदा सलाम का है.

देश की सबसे कम उम्र की पायलट और कश्मीर की पहली महिला फ़ाइटर पायलट आयशा अज़ीज़ का भी कुछ ऐसा ही मानना है.

20 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में हुए एक ख़ास समारोह में देशभर की 112 ऐसी महिलाओं को सम्मानित किया गया जो अपने-अपने क्षेत्र में कोई मुक़ाम हासिल करने वाली पहली महिला बनी हैं.

समारोह का नाम भी बेहद ख़ास था- 'फर्स्ट लेडीज़' यानी कुछ हासिल करने वाली पहली महिलाएं.

कश्मीर में इसराइल दिखा रहा है भारत को रास्ता?

'ना डर, ना सरेंडर' से सुलझेगी कश्मीर समस्या?

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़
BBC
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़

इन 112 महिलाओं को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने चुना था. इस ख़ास सम्मान समारोह का मक़सद उन महिलाओं के सफर और चुनौतियों का सम्मान करना था जिससे जूझ कर वो आज इस मुक़ाम तक पहुंची हैं.

इसी समारोह में कश्मीर की दो महिलाओं को भी सम्मानित किया गया- आयशा अज़ीज़ और रुवेदा सलाम.

आयशा भारत की सबसे कम उम्र की पायलट हैं साथ ही वह कश्मीर की पहली महिला पायलट भी हैं. वहीं रुवेदा डॉक्टर होने के साथ ही कश्मीर की पहली आईपीएस अधिकारी हैं.

आयशा ने महज़ 16 साल की उम्र में ही पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था. 2016 में उन्होंने बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से ग्रेजुएशन पूरी की जिसके बाद उन्हें कॉमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिला.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़
BBC
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रपति, रुवेदा सलाम, आयशा अज़ीज़

'आसान नहीं था सफर'

रुवेदा फिलहाल तमिलनाडु में तैनात हैं. रुवेदा को उनके काम के लिए कई सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है. लॉ एंड ऑर्डर को बिगड़ने नहीं देना ही उनकी प्राथमिकता है.

आयशा और रुवेदा मानती हैं कि उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचना इतना आसान नहीं था.

रुवेदा कहती हैं कि जब मैं किसी दूसरे राज्य में जाती हूं तब एहसास होता है कि कश्मीर कितना पिछड़ा हुआ है. वो कहती हैं, "राजनीति के चलते कश्मीर करीब 20 साल पिछड़ गया है."

अपनी स्टूडेंट लाइफ़ को याद करते हुए वो कहती हैं, "कश्मीर में रहने के दौरान पढ़ाई काफी प्रभावित हुई. दूसरे राज्यों में लोगों को जो चीज़ें बहुत आसानी से मिल जाती हैं, कश्मीर में रहते हुए हमें उन्हीं चीज के लिए तरसना पड़ता है."

"मेरी पूरी पढ़ाई मिलिटेंसी के दौरान हुई. कभी हड़ताल, कभी बिजली कटौती, कभी इंटरनेट नहीं, कभी बर्फ़... ऐसे में पढ़ाई जारी रखना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती होती थी."

कुछ ऐसा ही अनुभव आयशा का भी है. हालांकि वो कश्मीर में ज्यादा नहीं रहीं लेकिन कश्मीर से उनकी जड़ें अब भी जुड़ी हुई हैं.

आयशा बताती हैं कि जिस समय हिज़बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत हुई थी उस समय वो कश्मीर में ही मौजूद थीं.

वो कहती हैं, "मैं उस समय वहीं पर थी. बहुत मुश्किल हालात थे. कहीं बाहर नहीं निकल सकते थे और सारी दुकानें भी बंद रहती थीं. यहां तक कि हम किताबें भी नहीं खरीद पाते थे. वहां आगे बढ़ना काफ़ी मुश्किल है, ख़ासतौर पर उनके लिए जो लोग करियर में कुछ करना चाहते हैं."

'कश्मीर की समस्याएं अलग हैं'

रुवेदा कहती हैं कि उनका बचपन ख़ून-खराबे से भरा था. "90 के दशक में तो हालात इतने ख़राब थे कि एक साल तक मेरा स्कूल बंद रहा."

"दूसरे राज्यों में लोगों को जहां मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने में साढ़े चार साल लगते हैं वहीं मुझे कश्मीर में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने में छह साल का समय लगा."

"दूसरे राज्यों की समस्याएं कश्मीर से बिल्कुल अलग हैं. 2013 में हैदराबाद पुलिस अकेडमी में मेरी ट्रेनिंग हुई. वहां की सड़कें, वहां के लोगों की सोच और जो वहां काम हुआ है जब मैं उसके बारे में सोचती हूं तो लगता है कि कश्मीर काफी पिछड़ गया है. वहां लोग विकास के बारे में सोचते हैं."

रुवेदा कहती हैं, "जब मैं दूसरों राज्यों में हो रहे विकास को कश्मीर से जोड़कर देखती हूं तो लगता है कि कश्मीर 20 साल पीछे चल रहा है. जिन भी जगहों पर राजनीतिक परेशानियां होती हैं वहां विकास नहीं हो सकता."

कश्मीर में भारतीय सैनिक
Getty Images
कश्मीर में भारतीय सैनिक

रुवेदा कहती हैं "जब मैं छोटी थी तो मुझे समझ ही नहीं आता था कि आख़िर हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता है? मैं सवाल करती थी कि क्यों हमारे यहां बिजली नहीं है? क्यों हमारे यहां इंटरनेट नहीं है? क्यों हमारे यहां लोग विकास के बारे में नहीं सोचते? आख़िर ऐसा क्यों होता है?"

"लेकिन बड़े होने के बाद राजनीति और प्रगति के बीच के नाते से मेरा परिचय हुआ."

आयशा और रुवेदा दोनों ही मानती हैं कि कश्मीर पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. वहां की जो समस्याएं हैं उन पर थोड़ी सी तवज्जो देकर उन्हें दूर किया जा सकता है.

हालांकि वो ये भी मानती हैं कि कश्मीर में समस्याएं चाहे जितनी भी गंभीर क्यों ना हों लेकिन अगर कोशिश की जाए तो कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है.

रुवेदा चाहती हैं कि कश्मीर की लड़कियां आगे आएं. आयशा का भी मानना है कि कश्मीर के लोगों को 'तमाम तरह के फ़साद छोड़कर' विकास के बारे में सोचने की ज़रूरत है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Childhood in the shadow of guns in Kashmir became first Kashmiri
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X