चिदंबरम ने एक लेख के जरिए मोदी सरकारी की कश्मीर नीति पर बोला हमला, जानिए क्या लिखा
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटे एक साल पूरे होने वाले हैं। इसको लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने अखबार में एक लिखा है और मोदी सरकार को उसकी कश्मीर नीति में पूरी तरह से नाकाम ठहराने की कोशिश की है। अपने लेख के लिए आंकड़े जुटाने के लिए चिदंबरम ने गैर-आधिकारिक (भारत सरकार से अलग) लेकिन, कुछ चुनिंदा स्रोतों का सहारा लिया है। उन्होंने एक तरह से पूरे देश के लोगों पर भी यह कहकर उंगली उठाने की कोशिश की है कि लोग यह तो कहते हैं कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है, लेकिन वहां के लिए की तकलीफों को नजरअंदाज कर देते हैं।
कश्मीर नीति में नाकाम सरकार- चिदंबरम
इंडियन एक्सप्रेस में छपी अपनी लेख की शुरुआत पी चिदंबरम ने एक नेता के कथित बयान से करते हैं कि 'जम्मू और कश्मीर एक बड़ा जेल है।' उनका कहना है इनकी तरह बहुत सारे लोग 5 अगस्त,2019 के बाद से बिना लिखित आदेश से अपने ही घर में नजरबंद हैं। वो आरोप लगाते हैं कि आर्टिकल 370 खत्म करने का मकसद राज्य को बांटने, उसकी हैसियत संघ शासित प्रदेश की करने और उसे सीधे केंद्र सरकार के अधीन लाने, राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने, कश्मीर घाटी के 75 लाख लोगों को दबाने और अलगाववादी और आतंकवाद को कुचलना था। उनका दावा है कि इनमें से किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है और उनके मुताबिक मौजूदा बांटने वाली नीति से कभी हासिल किया भी नहीं जा सकता है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में ज्यादा नुकसान का आरोप
अपनी लेख में आरोपों और दावों के लिए पी चिदंबरम ने कुछ रिपोर्ट (मुख्य स्रोत: रिपोर्ट ऑफ द फोरम फॉर ह्यूमैन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर, जुलाई, 2020,) का हवाला दिया है। मसलन, 2001 से 2013 के बीच आतंकवादी घटनाएं 4,522 से घटकर 170 रह गईं और मौतों का आंकड़ा (नागरिक, सुरक्षा बल और आतंकी) 3,552 से घटकर 135 रह गया। लेकिन, 2014 के बाद खासकर 2017 के बाद ज्यादा सख्ती दिखाई गई, जिससे हिंसा की घटनाओं में इजाफा हुआ। इसके लिए उन्होंने 'साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल' का स्रोत इस्तेमाल किया है। इसके मुताबिक 2017 में सीजफाइयर उल्लंघन-881, घुसपैठ-136-आतंकी घटनाएं-398 और कुल मौत-357 सामने आए। इसी तरह 2018 में सीजफाइयर उल्लंघन-2,140, घुसपैठ-143-आतंकी घटनाएं-597 और कुल मौत-452, जबकि 2019 में सीजफाइयर उल्लंघन-3,168, घुसपैठ-7-आतंकी घटनाएं-369 और कुल मौत-283 और 2020 (जून-जुलाई तक) में सीजफाइयर उल्लंघन-646, घुसपैठ-उपलब्ध नहीं-आतंकी घटनाएं-229 और कुल मौत-205 होने के दावे किए गए हैं।
कश्मीर में 'कब्र की शांति'- चिदंबरम
आधिकारिक स्रोतों से अलग दावों के आधार पर चिदंबरम के आरोपों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। उनका कहना है एक समय 144 नाबालिकों समेत 6,605 राजनीतिक लोगों को हिरासत में लिया गया। महबूबा मुफ्ती समेत कई अभी भी कैद हैं। कठोर पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट का 444 केसों में इस्तेमाल किया गया। राजनीतिक नेताओं की सुरक्षा या तो छीन ली गई या कम कर दी गई, जिससे उनका बाहर निकलना रुक गया। सेना और अर्धसैनिक बलों से घाटी भर दी गई। 370 के बाद अतिरिक्त 38,000 जवानों की तैनाती गई। पूरे साल धारा-144 लगी रही। लॉकडाउन के बाद प्रशासन को सब कुछ पर ताला लगाने का और मौका मिल गया। अगर यह 'शांति' है तो जॉन केनेडी ने इसे 'कब्र की शांति' कहा है। सभी मुख्य मौलिक अधिकार निलंबित हैं। सभी तरह के अधिकारों पर रोक लगाई गई है, मीडिया के लिए जम्मू-कश्मीर में कोई जगह नहीं छोड़ी गई है। मुबीन शाह, मियां अब्दुल कयूम, गौहर गीलानी, मसरत जहरा और सफूरा जफगर के मामलों में कानून को ताक पर रख दिया गया और न्याय पाने में दिक्कत हो रही है।
'घाटी को 40,000 करोड़ का नुकसान- 4,97,000 बेरोजगार'
इसके बाद उन्होंने कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुमान का हवाला देते हुए कहा है कि अगस्त 2019 के बाद से सिर्फ कश्मीर घाटी में 40,000 करोड़ का नुकसान हुआ है और 4,97,000 लोग बेरोजगार हुए हैं। पर्यटकों की संख्या लगातार घटती गई है- 6,11,534 (2017) से 3,16,424 (2018) और 43,059 (2019) पर्यटक आए हैं। फल, कपड़े, कालीन, आईटी, कम्युनिकेशन और ट्रांसपोर्ट उद्योग चौपट हो गई है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट अभी तक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून की संवैधानिकता, 4जी सेवाओं की शुरुआत और अनलॉफुल ऐक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ऐक्ट पर अनेकों पीआईएल पर सुनवाई का निर्णय नहीं कर पाया है, जिससे कि वहां कई तरह के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
नई डोमिसाइल पॉलिसी पर भी सवाल
चिदंबरम ने नई डोमिसाइल पॉलिसी पर सवाल उठाते हुए यह भी दावा है कि अब जम्मू में भी इसपर नाराजगी देखी जा रही है और लद्दाख में तो प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है। उन्होंने मोदी सरकार के साथ पूरे देश के लोगों की ओर भी यह कहकर उंगली उठाई है कि लोग जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न अंग तो मानते हैं, लेकिन हैरानी होती है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के संकट की परवाह नहीं है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि लद्दाख में चीन की घुसपैठ और पाकिस्तान के साथ उसकी साठगांठ ने देश के बाद भाग के लोगों को भी थोड़ा हिलाया है, लेकिन वह काफी नहीं है। उन्होंने कहा है कि देश के लोग लॉकडाउन का मतलब समझते हैं, जरा कश्मीरियों की सोचें जिनके पास ऐसा लॉकडाउन है, जो खुलकर बोल भी नहीं सकते, अखबार नहीं पढ़ सकते, टेलीविजन, मोबाइल इंटरनेट नहीं देख सकते-अस्पताल, पुलिस स्टेशन, कोर्ट और चुने हुए प्रतिनिधियों तक नहीं पहुंच सकते। उनके मुताबिक कश्मीर का नया मुद्दा अब यही है।