नौकरशाह से बने राजनीति के धुरंधर, ऐसा रहा है छत्तीसगढ़ के पहले सीएम अजीत जोगी का करियर
नई दिल्ली- छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की हालत नाजुक बताई जा रही है और फिलहाल वह कोमा में हैं। शनिवार को उन्हें हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद वो कोमा में चले गए। अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री तो रहे ही हैं, आज की तारीख में भी प्रदेश के सबसे कद्दावर नेताओं में उनकी गिनती होती है। वह हमेशा से राजनीति में नहीं थे। उनका करियर इंजीनियरिंग से शुरू हुआ और फिर वो बड़े नौकरशाह बन गए। फिर अचानक एक दिन राजनीति में उनका सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया। उनके सियासी और नौकरशाही करियर से कई विवाद भी जुड़े हुए हैं और ऐसा कई मौके आए हैं, जब वह मौत के मुंह से भी वापस आ चुके हैं। आइए उनके पूरे करियर पर एक नजर डालते हैं।
छत्तीगढ़ के पहले मुख्यमंत्री
जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिया तो अजीत जोगी वहां के पहले मुख्यमंत्री बने। उस समय का उनका एक बयान बहुत चर्चित है कि, 'हां, मैं सपनों को सौदागर हूं और मैं सपने बेचता हूं।' हालांकि, बाकी के किसी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने उनका सपना खरीदना स्वीकार नहीं किया। 1999 में शहडोल लोकसभा सीट से वह चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद जब नया राज्य बना तो स्थानीय कांग्रेस में ऐसा समीकरण बना कि जोगी को सीएम बनने का मौका मिल गया। 2000 से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक उनके पास ये पद रहा, लेकिन, फिर से वह इस पद पर वापसी नहीं कर सके। इससे पहले 1986 से 1998 तक उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा में बिठाए रखा था। पहली बार 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते थे।
नौकरशाही से अचानक मारी राजनीति में एंट्री
अजीत जोगी मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट थे और उसके बाद वे आईपीएस बने। दो साल बाद ही उन्हें आईएएस बनने का मौका मिला और फिर लंबे वक्त तक कलेक्टर जैसे दबदबे वाले पद पर रहने का मौका मिला। उन्होंने जिस तरह से कलेक्टर रहते हुए राजनीति में एंट्री मारी थी वैसे उदाहरण शायद ही ढूंढ़ने से मिल कहीं पाएंगे। बात 1985 की है। अजीत जोगी इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में भारी वोट देकर मतदाताओं ने चुनकर प्रधानमंत्री बनाया था। एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे। पार्टी ने पहले उन्हें पार्टी के एसटी-एससी कमिटी का सदस्य बनाया फिर कलेक्टर के पद के बदले राज्यसभा की सदस्यता दिला दी।
2003 के बाद कैसा रहा सियासी सफर
जब 2003 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल हो गई तो अजीत जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन लड़े और फिर से लोकसभा में दाखिल हुए। लेकिन, 2008 में उन्होंने संसद सदस्यता छोड़कर मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और एमएलए बन गए। लेकिन, जब 2008 के विधानसभा चुनाव में डॉक्टर रमन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एकबार फिर से वापसी का मौका नहीं दिया तो एक साल बाद अजीत जोगी फिर से 2009 के चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए महासमुंद लोकसभा क्षेत्र पहुंच गए। वे फिर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें भाजपा उम्मीदवार के हाथों ये सीट गंवा देनी पड़ी।
नई पार्टी बनाई, लेकिन नाकाम रहे
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे अजीत जोगी का विवादों से हमेशा नाता रहा और इसी तरह की एक विवाद की वजह से 2016 में उन्हें कांग्रेस से अलग हो जाना पड़ा। दरअसल, 2014 में प्रदेश के अंतागढ़ में हुए एक उपचुनाव को लेकर एक ऑडियो टेप सामने आया, जिसकी गाज उनके बेटे अमित जोगी पर गिरी और कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। इसी से नाराज होकर जोगी ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी ) के नाम से एक नई पार्टी बनाई और अगला चुनाव कांग्रेस से लड़ने का ऐलान कर दिया। बाद में 2018 के चुनाव में उन्होंने बसपा के साथ मिलकर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा, लेकिन ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाई और कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली। अजीत जोगी अपने अलावा पार्टी को सिर्फ 4 ही सीट दिलवा पाए।
विवादों से हमेशा जुड़ा रहा नाम
अजीत जोगी के नाम सबसे बड़ा विवाद उनके आदिवासी होने को लेकर रहा। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2018 में उनके आदिवासी होने के पक्ष में फैसला दिया। अजीत जोगी से एक विवाद उनकी बेटी की कथित खुदकुशी से भी जुड़ा है। घटना 12 मई, 2000 की है। अजीत जोगी इंदौर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के स्वागत में लगे हुए थे, उसी दौरान उनकी बेटे ने इंदौर स्थित उनके घर पर ही जान दे दी। जानकारी के मुताबिक वह जहां शादी करना चाहती थी, जोगी उसके लिए राजी नहीं थे। उसका शव उस समय इंदौर के ही कब्रिस्तान में दफनाया गया। लेकिन, अजीत जोगी ने बाद में कोशिश की थी कि शव को निकालकर अपने पैतृक गांव ले जाएं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। लेकिन, जब वे छत्तीसगढ़ के सीएम बने तो एक दिन रातों-रात वो उस शव को निकालकर सरकारी विमान से बिलासपुर मंगवा लिया और फिर उसे वहां क्रिश्चियन रीति से दफना दिया। 2003 में अजीत जोगी पर बीजेपी विधायकों को खरीदने की कोशिश के भी आरोप लगे थे, इसका एक स्टिंग ऑपरेशन भी आया था। 2004 में अजीत जोगी के साथ एक भीषण कार ऐक्सिडेंट हुआ था, जिसमें उनकी जान तो बच गई, लेकिन वे हमेशा के लिए लकवाग्रस्त होकर रह गए। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया था कि विरोधियों के जादू-टोने की वजह से वह हादसा हुआ था।
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