छत्तीसगढ़ में आधार नहीं तो ज़मानत के बाद भी रिहाई नहीं
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के नए नियमों से रिहा नहीं हो पा रहे कई ज़मानत पाए अभियुक्त.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक आदिवासी को ज़मानत मिलने के बाद भी जेल से रिहाई नहीं मिल सकी. वजह - उसके आधार कार्ड का सत्यापन नहीं हो पाया.
कुछ हफ़्ते पहले का मामला होता तो इस शख़्स को ज़मानत मिलने के साथ ही रिहाई मिल जाती, लेकिन हाल ही में बनाए गए नियम के बाद ऐसा नहीं हो सका.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बीते दिनों ज़मानत के बाद रिहाई के लिए आधार कार्ड को ज़रूरी बना दिया है.
अदालत ने कहा था कि राज्य में किसी भी मामले में ज़मानत मिलने पर जेल में बंद व्यक्ति और उसकी ज़मानत देने वाले शख़्स के आधार कार्ड ले लिए जाएंगे.
एक हफ़्ते के भीतर उनका सत्यापन होगा और उसके बाद ही ज़मानत पर रिहाई हो सकेगी.
छत्तीसगढ़ की जेलों में इस फ़ैसले के बाद से काफ़ी उलझन का माहौल है. कहीं अभियुक्त के पास आधार कार्ड नहीं है, तो कहीं ज़मानत देने वाले के पास.
और जिन मामलों में दोनों के आधार कार्ड हैं वहां कई स्तरों पर होने वाला सत्यापन टेढ़ी खीर बना हुआ है.
नतीजा - ज़मानत मिलने के बाद भी कई लोग जेल में ही पड़े हुए हैं.
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देश की कई योजनाओं के लिए आधार कार्ड को ज़रूरी बनाने के ख़िलाफ़ अभियान चला रहीं अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा हाईकोर्ट के इस आदेश से हैरान हैं.
रीतिका कहती हैं, "ज़मानत देते वक़्त आधार की क्या भूमिका है? इसका एक ही जवाब है कि सरकार लोगों की 360 डिग्री प्रोफ़ाइल तैयार करना चाहती है. जैसे-जैसे आधार का दायरा बढ़ रहा है, बैंक, फ़ोन, एयरपोर्ट, अमेज़न सब इसे मांगने लगे हैं. सरकार एक ही नंबर से जान जाएगी कि कौन किसकी ज़मानत दे रहा है, किससे बात कर रहा है, कहां आता-जाता है, कौन सी क़िताबें पढ़ता है. यह सब लोकतंत्र के लिए ख़तरे के संकेत हैं."
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के अधिवक्ता सतीश वर्मा बताते हैं कि भारतीय क़ानून के हिसाब से ज़मानत मिलने के बाद किसी को एक मिनट भी जेल में नहीं रखा जा सकता. लेकिन नए नियम के बाद मामला बदल गया है. इसके अलावा पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों से सत्यापन करवाना भी आसान नहीं है.
आधार कार्ड का सत्यापन लंबी प्रक्रिया है. सवाल यह है कि इस प्रक्रिया के दौरान कोई अभियुक्त जितने दिन जेल में रहेगा, उसकी भरपाई किस रूप में होगी? उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?" एडवोकेट वर्मा कहते हैं.
'यह निर्देश व्यावहारिक नहीं है'
छत्तीसगढ़ स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष प्रभाकर सिंह चंदेल ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर कहा है कि हाईकोर्ट का निर्देश व्यावहारिक और विधिसम्मत नहीं है.
प्रभाकर चंदेल के मुताबिक़ "अभियुक्त की ओर से सक्षम ज़मानत मिलते ही वह रिहाई का पात्र हो जाता है. यह विडंबना है कि जारी निर्देश का पालन करने से अभियुक्त क़ानून के दिए गए रिहाई के अधिकार से वंचित हो रहा है."
साथ ही चंदेल ने अपने पत्र को पुनर्विचार याचिका मानने का भी अनुरोध किया है.
दुर्ग ज़िले के एक वक़ील पीयूष भाटिया ने भी हाईकोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिस पर सुनवाई होनी बाक़ी है.
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