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छत्तीसगढ़: सारकेगुडा 'फ़र्ज़ी मुठभेड़' को लेकर थाने में धरने पर बैठे आदिवासी

छत्तीसगढ़ के सारकेगुडा 'फ़र्ज़ी मुठभेड़' के मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर तीन गांवों के आदिवासी बासागुडा थाने के अन्दर धरने पर बैठ गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं करती है तबतक वो धरने पर बैठे ही रहेंगे. छत्तीसगढ़ पुलिस का कहना है कि वो सात साल पुराने सारकेगुडा 'फ़र्ज़ी मुठभेड़' 

By सलमान रावी
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बासागुड़ा थाना
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छत्तीसगढ़ के सारकेगुडा 'फ़र्ज़ी मुठभेड़' के मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर तीन गांवों के आदिवासी बासागुडा थाने के अन्दर धरने पर बैठ गए हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं करती है तबतक वो धरने पर बैठे ही रहेंगे.

छत्तीसगढ़ पुलिस का कहना है कि वो सात साल पुराने सारकेगुडा 'फ़र्ज़ी मुठभेड़' के मामले से सम्बंधित कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती है.

पुलिस का कहना है कि मामले की प्राथमिकी 29 जून 2012 को दर्ज की गयी थी जिसमें सारकेगुडा, कोट्टागुडा और राजपेंटा के ग्रामीणों को अभियुक्त बनाया गया था. ये प्राथमिकी 'मुठभेड़' के बाद दर्ज की गयी थी.

थाना प्रभारी
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क्या है मामला?

बासागुडा थाना के प्रभारी संतोष ठाकुर का कहना था कि जबतक सरकार या अदालत का निर्देश नहीं होता है तब तक पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं करेगी.

शुक्रवार को सुबह से ही सारकेगुडा में आदिवासी ग्रामीणों की उसी जगह पर बैठक चलती रही जहां पर सुरक्षा बलों ने दावा किया था कि उन्होंने 28 और 29 जून की रात को मुठभेड़ में 17 माओवादियों को मारा था.

ग्रामीणों ने बैठक के दौरान एक प्राथमिकी का प्रारूप तैयार किया. इस बैठक में ग्रामीणों के साथ सामजिक कार्यकर्ता हिमांशु और सोनी सोरी भी शामिल थे.

प्राथमिकी के प्रारूप पर जिन लोगों ने हस्ताक्षर किये या अंगूठे का निशान लगाया, उनमें मारे गए 17 लोगों के परिजन हैं.

ग्रामीण
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क्या है मांग?

ग्रामीणों की तरफ़ से बात करते हुए कोट्टागुडा गाँव की कमला काका ने बीबीसी को बताया कि न्यायमूर्ति वी की अग्रवाल की एक सदस्य समिति ने अपनी रिपोर्ट में मुठभेड़ को फ़र्ज़ी बताया है, इसलिए घटना में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए.

मगर बासागुडा के थाना प्रभारी संतोष ठाकुर ने ग्रामीणों से कहा कि न्यायमूर्ति अग्रवाल की रिपोर्ट में प्राथमिकी दर्ज करने की कोई अनुशंसा नहीं की गयी है.

ग्रामीणों ने प्राथमिकी का जो प्रारूप तैयार किया है, उसमें पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, पूर्व पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन, बस्तर के तत्कालीन आईजी, बीजापुर के तत्कालीन एसपी, सीआरपीएफ़ के तत्कालीन डीआईजी एस इलांगो, उप समादेष्टा और बासागुडा थाने के तत्कालीन प्रभारी इब्राहीम ख़ान को नामज़द किया है जबकि 190 सुरक्षा बल के जवानों को भी अभियुक्त कहा गया है.

ग्रामीण
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बैठक के बाद आदिवासी ग्रामीण तीन किलोमीटर पैदल सफ़र कर बासागुडा थाना पहुंचे.

शुक्रवार को इलाक़े में साप्ताहिक हाट का भी दिन था और कई गेन के लोग जमा थे.

पुलिस ने सभी को थाने के अन्दर आने की अनुमति दी और कुर्सियां भी लगायीं. लेकिन जब पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार किया तो ग्रामीण थाने के अंदर ही धरने पर बैठ गए.

बीबीसी से बात करते हुए हिमांशु का कहना था कि ग्रामीण अपनी मांग मनवाने के लिए गांधीवादी तरीक़ों का सहारा लेंगे. जैसे धरना और सत्याग्रह.

वहीँ कमला काका का कहना था कि 'निर्दोष' लोगों को गोली मार दी गयी तो जो लोग इसके लिए ज़िम्मेदार थे उनपर तो कानूनी कार्यवाही तो होनी ही चाहिए.

सोनी सोरी ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा कि पुलिस अगर प्राथमिकी दर्ज नहीं करती है तो ग्रामीण संघर्ष और तेज़ करेंगे.

वो कहती हैं, "जिनके अपने उस घटना में मारे गए हैं, ज़रा उनके दिल का हाल समझिये. जब निर्दोष लोगों को मारा गया और जब आयोग ने भी रिपोर्ट में मरने वालों को निर्दोष पाया है तो फिर या तो मरने वालों को ज़िंदा लौटाएं, नहीं तो फिर सुरक्षा बलों ने भी अपराध किया है और आपराधिक मामला उनपर चलना ही चाहिए."

हालांकि सरकार ने घटना में घायल लोगों को और मरने वालों के परिजनों को मुआवज़ा देने का दावा किया था. मगर सारकेगुडा के ही पुलाया सारके हैं जिनको दो गोलियां लगीं थीं मगर उन्हें मुआवज़ा नहीं मिला.

यहीं की रहने वाली वयोवृद्ध चिनाक्का इरपा भी मुझे अपनी पीठ के नीचे लगी गोली का निशान दिखाते हुए कहतीं हैं कि उन्हें चलने में और उठने बैठने में बहुत तकलीफ़ होती है.

शनिवार सुबह तक धरना जारी है. इससे पहले बीती रात को पुलिस ने धरने पर बैठे ग्रामीणों के लिए खाने का इंतज़ाम भी किया था.

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English summary
Chhattisgarh: Adivasis sitting on dharna in police station for 'fake encounter'
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