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Chhapaak: इन 7 वजहों से 7वें आसमान पर पहुंचने में नाकाम रह गई फिल्म छपाक!

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बेंगलुरू। हिंदी फिल्म इंड्स्ट्री यानी बॉलीवुड में छपाक पहली फिल्म नहीं है, जो कंट्रोवर्सी के चलते औंधे मुंह गिरी है, लेकिन दीपिका पादुकोण स्टारर ऐसी कई फिल्में हैं, जो बिना किसी विवाद के भी बुरी तरह से फ्लॉफ रहीं थी। इनमें दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म लफंगे परिंद (प्रदीप सरकार) कार्तिक कॉलिंग कार्तिक, ब्रेक के बाद, खेले हम जी जान से (आशुतोष गोवरीकर, चांदनी चौक टू चाइना, फाइंडिंग फैननी, तमाशा और छपाक अब इस फेहरिस्त में शामिल हो गई है।

Flop

फौरी तौर इसलिए यह नही कहना बेमानी होगा कि दीपिका की फिल्म अकेले जेएनयू प्रकरण के चलते फ्लॉफ हुई है। पिछले 10 दिनों के छपाक के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन तकरीबन 32 करोड़ रुपए दर्ज किया गया है जबकि उसके मुकाबले अजय देवगन स्टारर तानाजी करीब 175 करोड़ रुपए कमा लिए हैं।

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एक संवेदशील विषय पर बनी बॉयोपिक फिल्म छपाक का बजट महज 40 करोड़ रुपए था और फिल्म का 10 दिन का कलेक्शन महज 32 करोड़ रुपए है, जो फिल्म के फ्लॉफ करार दिए जाने के लिए काफी है। एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर बेस्ड फिल्म छपाक के बॉक्स कलेक्शन पर ग्रहण के लिए जेएनयू प्रकरण तात्कालिक कारण जरूर कहा जा सकता है, लेकिन फिल्म के फ्लॉफ होने के लिए जेएनयू ही बड़ा कारण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि ऐसे संवेनशील और बोल्ड विषयों पर निर्मित फिल्मों को दर्शकों को खूब प्यार मिला है और उन्होंने बॉक्स ऑफिस पर भी राज किया है।

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आमिर प्रोडक्शन की फिल्म सीक्रेट सुपर स्टार बड़ा उदाहरण है, जिसका लाइफटाइम बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 966 करोड़ रुपए है। सीक्रेट सुपरस्टार फिल्म मुस्लिम परिवेश और उनके धार्मिक मान्यताओं पर प्रश्न उठाने वाली फिल्म थी, लेकिन फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई की। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि फिल्म सीक्रेट सुपर स्टार एक बेहद लो बजट फिल्म थी, जिसकी पूरी लागत महज 15 करोड़ रुपए थी और फिल्म ने 966 करोड़ कमाकर इतिहास रच दिया।

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इसी श्रेणी में बॉयोपिक फिल्म रही पान सिंह तोमर ने भी बॉक्स ऑफिस पर करिश्मा किया और महज 7 करोड़ में निर्मित फिल्म पान सिंह तोमर ने अपनी लागत की तीन गुना कमाई करने में कामयाब रही। पान सिंह तोमर की कुल कमाई लगभग 21 करोड़ रुपए थे। इस क्रम में विवादित बैंडिट क्वीन, वाटर, फायर, ब्लैक फ्राइडे, उड़ता पंजाब को भी रखा जा सकता है, जिन्होंने विवादों को धता बताकर बॉक्स ऑफिस पर राज किया।

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बॉयोपिक फिल्म मंटो, हसीना पारकर , ठाकरे, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सचिन और अलीगढ़ को भी दर्शकों प्यार नहीं मिला जबकि अधिकांश फिल्मों के किरदार ऐतिहासिक लीजेंड्स में शुमार थे। बॉयोपिक फिल्म छपाक के फ्लॉफ होने में जेएनयू प्रकरण को इसलिए तात्कालिक कारण माना जा सकता है।

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क्योंकि फिल्म छपाक की विषय वस्तु और उसका कथानक थियेटर में फिल्म देखने जाने वाले पारंपरिक भारतीय दर्शकों के मिज़ाज से इतर था। माना जाता है कि भारतीय दर्शक हैप्पी एंडिंग और डिप्रेसिव फिल्मों को पंसद नहीं करता है। वह फिल्म में अभी भी एंजॉय ढूंढने जाता है, लेकिन एसिड सर्वाइवर पर बेस्ड फिल्म में पांरपरिक दर्शकों के लिए ऐसा कुछ नहीं था।

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खूबसूरत दीपिका पादुकोण को फिल्म छपाक में एसिड सर्वाइवर के रूप में देखना किसी भी पारंपरिक फिल्म दर्शक को पंसद नहीं आ सकता था। इसलिए अच्छी रेटिंग और क्रिटिक्स की प्रशंसा के बाद भी पारंपरिक दर्शक थियेटर नहीं पहुंचे। फिल्म छपाक को मल्टीप्लेक्स दर्शकों को प्यार नसीब हुआ,लेकिन उनकी संख्या सीमित हैं और शहर तक ही सीमित हैं।

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चूंकि एसिड सर्वाइवर पर बेस्ड फिल्म छपाक में मसाले की गुंजाइश नहीं थी, इसलिए मल्टीप्लेक्स दर्शकों को भी फिल्म ने ज्यादा आकर्षित नहीं किया, जिससे दोबारा लौटकर फिल्म देखने वालों दर्शकों की संख्या कम रही और एक बार देखने के बाद दर्शक अपने परिवार और बच्चों को छपाक दिखाने के परहेज करता दिखा, क्योंकि मां-बाप द्वारा मान लिया गया कि एसिड सर्वाइवर के गेटअप में दीपिका को देखकर बच्चों का डरना तय है।

यह भी पढ़ें- Video: कैसे दीपिका बनीं 'छपाक' की मालती, पहली बार लक्ष्मी से इसी रूप में की थी मुलाकात

जेएनयू प्रकरण इसलिए नहीं है छपाक की फ्लॉफ की असल वजह

जेएनयू प्रकरण इसलिए नहीं है छपाक की फ्लॉफ की असल वजह

तात्कालिक नुकसान के तौर पर देखा जाए तो निश्चित तौर पर जेएनयू विवाद भी इन वजहों में से एक माना जा सकता है। फिल्म एक्ट्रेस से फिल्म निर्माता बन चुकी दीपिका पादुकोण व्यक्तिगत तौर पर कहां जाती है, किसके साथ खड़ी होती है, इससे किसी भी दर्शक को कभी फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन दीपिका जब उन छात्रों के साथ जाकर खड़ी हो गईं, जिन पर वर्ष 2016 से देशद्रोही नारे लगाने और देशविरोधी कार्रवाई करने का आरोप लगा हो, तो देश के मौजूदा माहौल के चलते उनकी बात बिगड़ गई। निः संदेह दीपिका की फिल्म को जेएनयू प्रकरण की वजह से नकारात्मक रिस्पॉन्स मिला, लेकिन इसका प्रभाव तात्कालिक था, जिसका नुकसान फिल्म को भुगतना पड़ा। असली वजह कुछ और थी।

राष्ट्रवाद के माहौल में तानाजी से पिछड़ गई दीपिका की छपाक

राष्ट्रवाद के माहौल में तानाजी से पिछड़ गई दीपिका की छपाक

दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक अजय देवगन की वीर रस से परिपूर्ण तानाजी से इसलिए मुकाबला नहीं कर पाई, क्योंकि देश ही नहीं, बॉलीवुड में मौजूदा दौर में देशभक्ति की थीम पर तैयार फिल्में का जलवा है। माना जा रहा है कि मौजूदा दौर में बॉलीवुड में देशभक्ति की थीम पर बनी फिल्में पसंद की जा रही है, इसलिए तानाजी ने बाजी मार ली। अजय देवगन मार्का एक्शन और देशभक्ति की थीम ने उन दर्शकों को भी अपनी तरफ खींच लिया, जो क्रिटिक्स और अच्छी रेटिंग के चलते छपाक देखने का मन बनाया हुआ था।। पिछले कुछ सालों में देशभक्ति की थीम, पीरियड्स ड्रामा फिल्में काफी सफलता मिली है। इनमें छपाक की निर्देशक मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित राजी एक बड़ा उदाहरण है।

फिल्म छपाक की रिलीज के लिए निर्माता दीपिका ने चुना गलत दिन

फिल्म छपाक की रिलीज के लिए निर्माता दीपिका ने चुना गलत दिन

ऐसा समझा जाता है कि अगर संवेदशील मुद्दे पर निर्मित फिल्म छपाक को किसी सोलो डेट पर रिलीज किया जाता तो एसिड सर्वाइवर पर बनी फिल्म को दर्शक जरूर मिल जाते, लेकिन तानाजी जैसे देशभक्ति थीम पर बनी फिल्म के सामने छपाक जैसी फिल्म को रिलीज करके फिल्म छपाक की निर्माता दीपिका पादुकोण ने बतौर निर्माता अपरिपक्वता दिखाई। फिल्म अगर सोलो रिलीज होती तो बढ़िया बिजनेस करने में सफल हो सकती थी, क्योंकि दीपिका पादुकोण के नाम पर उनके चाहने वाले जरूर वीकडेज फिल्म की टिकट जरूर खरीदते और फिल्म छपाक निःसंदेह तीन दिन में 18 करोड़ से 38 करोड़ कमाने में सफल हो सकती थी। बॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में हैं, जिन्होंने बड़े नाम और छोटे दर्शन देकर वीकडेज में 35-40 करोड़ रुपए कमाए हैं। इनमें सलमान खान स्टारर ट्यूबलाइट का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।

इसलिए 3 राज्यों में टैक्स फ्री होने के बाद भी थियेटर से नदारद रहे दर्शक!

इसलिए 3 राज्यों में टैक्स फ्री होने के बाद भी थियेटर से नदारद रहे दर्शक!

जेएनयू प्रकरण का तात्कालिक नुकसान फिल्म छपाक को निःसंदेह मिला, लेकिन लगातार 10 दिनों तक फिल्म छपाक को देखने के लिए थियेटर में दर्शक नहीं मिले उसके पीछे फिल्म की विषय वस्तु और उसकी कहानी थी, जो दर्शकों को थियेटर में खींच नहीं पाए, क्योंकि दर्शकों के पास तानाजी-द अनसंग वॉरियर के रूप में एक विकल्प मौजूद था। छपाक का यह हाल तब हुआ जब तीन-तीन राज्यों में फिल्म रिलीज के दिन छपाक को टैक्स फ्री घोषित कर दिया था। टैक्स फ्री होने के बाद आधे हुए टिकट की कीमत के बाद भी दर्शक छपाक देखने नहीं गए, जिसका जेएनयू से कोई लेना-देना नहीं था, क्योंकि आज भी पारंपरिक भारतीय दर्शक फिल्म को मनोरंजन के लिए देखता है।

पारंपरिक भारतीय दर्शक प्रायः डिप्रेसिव फिल्म से बचता है

पारंपरिक भारतीय दर्शक प्रायः डिप्रेसिव फिल्म से बचता है

भारतीय दर्शकों की बात करें तो ऑडिएंस ऐसे कंटेंट पर पैसे खर्च करने से बचता है जहां उसे डिप्रेसिव यानी जिंदगी में उदासी भरने वाली बातें, चीजें और वाकये देखने को मिले। ऐसे में दीपिका की फिल्म एक एसिड सर्वाइवर पर बनी थी जिसमें लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर एसिड का भयावह असर देखने को मिलता है। भारीय दर्शक ऐसे वाक्यों पर बनी फिल्मों को पचा नहीं पाते। उनके लिए सिनेमा का मतलब मनोरंजन है। नए जमाने में भले ही फिल्में कई तरह के संदेश देने में कामयाब हो रही हों लेकिन सबकी स्क्रिप्ट में हर तरह के दर्शक के लिए कुछ न कुछ मसाला होता है। लेकिन छपाक में ऐसा कुछ नहीं मिला इसलिए दर्शकों ने शानदार रिव्यू के बावजूद फिल्म ठुकरा दी।

फिल्म को नहीं, एसिड सर्वाइवर दीपिका को दर्शकों ने कहा न

फिल्म को नहीं, एसिड सर्वाइवर दीपिका को दर्शकों ने कहा न

भारत में ऑडिएंस ढाई घंटे सिनेमा हॉल में एक या दो,कभी कभी तीन तीन हीरोइनों की सुंदरता का सुख भोगता है। फिल्म भले ही एक्शन बेस्ड हो लेकिन हीरोइन की सुंदरता से दर्शक कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में कभी नहीं रहता। खासकर जब फिल्म दीपिका पादुकोण जैसी खूबसूरत हीरोइन की हो तो वो यह जरूर चाहेगा कि दीपिका की सुंदरता पूरी फिल्म में दिखे। दीपिका ने निश्चित तौर पर एक प्रोड्यूसर होने के नाते रिस्क लिया और करियर के शिखर पर ऐसी फिल्म की जहां उन्हें बदरंग चेहरे के साथ दर्शकों से रूबरू होना पड़ा। दीपिका को इसके लिए सलाम किया जाना चाहिए लेकिन दर्शकों ने जिन वजहों से फिल्म को नकारा, उनमें से एक ये वजह हो सकती है।

पारंपरिक मसालों की गैर-मौजूदगी ने बिगाड़ा छपाक का खेल

पारंपरिक मसालों की गैर-मौजूदगी ने बिगाड़ा छपाक का खेल

भारत का बहुसंख्यक और पारंपरिक दर्शक आज भी मनोरंजक और हैप्पी एंडिंग पसंद करता है। हालांकि शहरों के ऑडिएंस की मानसिकता बदली है लेकिन शहरों के ऑडिएंस फिल्म हिट करा देने की स्थिति में नहीं है अभी भी। कस्बाई ऑडिएंस एक्शन पैक्ड हीरो, बड़ी बड़ी गाड़ियों, महंगी लोकेशन औऱ सुंदर हीरोइनों वाली फिल्मों को तवज्जो देता है। जो वो जिंदगी में नहीं कर पाया, वही पाने की ललक उसे थिएटर ले आती है और ऐसी फिल्में हिट होकर इस वजह को पुख्ता करती जा रही हैं।

Comments
English summary
The JNU episode can be said to be the immediate reason for eclipse on the box collection of the film Chhapak based on the life of Acid Attack Survivor Laxmi Agarwal, but the JNU controversy cannot be considered as a big reason for the film to be a flop, because such sensitive and Films produced on bold themes have received a lot of love from the audience before and they have also ruled the box office.
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