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चौरी-चौरा कांड जिसके कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन लिया वापस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज चौरी-चौरा शताब्दी समारोह का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे. इस कार्यक्रम के अंतर्गत पूरे साल आयोजन होंगे और 4 फरवरी 2022 को इसका समापन होगा.

By BBC News हिन्दी
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चौरी-चौरा कांड जिसके कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन लिया वापस

चौरी-चौरा घटना के सौ साल पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह का वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 फरवरी को करने जा रहे हैं. सुबह 11 बजे वो इसका उद्घाटन करेंगे.

उत्तर प्रदेश सरकार चौरी-चौरा की घटना के सौ साल पूरे होने पर इस शताब्दी समारोह का आयोजन कर रही है. इस मौके पर एक डाक टिकट का भी विमोचन किया जाएगा.

यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के सभी 75 ज़िलों में आयोजित किया जाएगा. चौरी-चौरा घटना की याद में इस समारोह के अंतर्गत पूरे साल आयोजन होंगे और 4 फरवरी 2022 को इसका समापन होगा. इसके तहत विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाएंगी.

क्या है चौरी-चौरा की घटना

महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी.

इस घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी. इससे पहले यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी.

महात्मा गांधी
Getty Images
महात्मा गांधी

इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था. महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था. 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं.

उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था.

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इसके बाद गांधीजी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ़्तार कर लिया गया था. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था. गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.

इसके तहत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे. उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही. खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था.

चौरी-चौरा शहीद स्मारक

1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया. इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई. इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था. इसे लोगों के चंदे के पैसे से बनाया गया. इसकी लागत तब 13,500 रुपये आई थी.

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बाद में भारत सरकार ने शहीदों की याद में एक अलग शहीद स्मारक बनवाया. इसे ही हम आज मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं. इस पर शहीदों के नाम खुदवा कर दर्ज किए गए हैं. बाद में भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई. इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस.

चौरी-चौरा क्या है और कहाँ है

चौरी-चौरा दरअसल दो अलग-अलग गांवों के नाम थे. रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था.

उन्होंने जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी. इसलिए शुरुआत में सिर्फ़ रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था.

बाद में जो बाज़ार लगने शुरू हुए, वो चौरा गांव में लगने शुरू हुए. जिस थाने को 4 फरवरी 1922 को जलाया गया था, वो भी चौरा में ही था. इस थाने की स्थापना 1857 की क्रांति के बाद हुई थी. यह एक तीसरे दर्जे का थाना था.

BBC Hindi
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English summary
Chauri-Chaura scandal due to which Mahatma Gandhi withdrew the non-cooperation movement
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