दिल्ली दंगे पर चार्जशीट: शाहीन बाग की 'दादियों' को कौन दे रहा था 'दिहाड़ी'
नई दिल्ली- दिल्ली पुलिस ने फरवरी में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे को लेकर कोर्ट में जो चार्जशीट दायर की है, उससे रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। दिल्ली पुलिस के दावों के मुताबिक जिन साजिशकर्ताओं ने दंगों की साजिश रची वे पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली में भड़की हिंसा में भी शामिल थे और उन्होंने ने ही बाद में जगह-जगह महिलाओं के धरने भी आयोजित करवाए। यही नहीं चार्जशीट के मुताबिक शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया में महिलाओं का जो धरना बहुत ही चर्चित हुआ था, उसमें महिलाओं को दिहाड़ी देकर बैठाने के भी दावे किए गए हैं। इसके पक्ष में पुलिस ने गवाहों के बयान और व्हाट्सऐप मैसेज की डीटेल लगाई है।
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दिहाड़ी लेकर धरना दे रही थीं शाहीन बाग की 'दादियां'-चार्जशीट
दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में दिल्ली दंगों को लेकर पिछले हफ्ते दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है, उसके मुताबिक दिल्ली के शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जो महिलाएं धरने पर बैठी थीं, उन्हें उसके लिए दिहाड़ी दी जाती थी। दिल्ली पुलिस के मुताबिक ये दिहाड़ी वही लोग देते थे, जिन्होंने इस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साजिश रची। चार्जशीट में यह भी दावा किया गया है कि आरोपियों ने धरने पर महिलाओं को इसलिए बिठाया ताकि उनके असल और खतरनाक मकसद को 'सेक्युलर कवर', 'जेंडर कवर' और 'मीडिया कवर' से ढकने में आसानी रहे। पुलिस ने यह दावा गवाहों के बयानों और व्हाट्सऐप चैप के आधार पर किया है।
दिहाड़ी और लॉजिस्टिक उपलब्ध करवाने में किए खर्च
चार्जशीट के मुताबिक, 'शिफा-उर-रहमान (जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी के सदस्य और जामिया एलुमनी एसोसिएशन के अध्यक्ष) और दूसरे लोगों ने कैश के रूप में और बैंक अकाउंट में भी काफी फंड जुटाए और इस फंड का इस्तेमाल कई प्रदर्शन स्थलों पर लॉजिस्टिक उपलब्ध कराने और महिला प्रदर्शनकारियों को दिहाड़ी देने में किया। एलुमनी एसोसिएशन ऑफ जामिया मिलिया इस्लामिया ने जामिया मिलिया के गेट नंबर 7 के पास वाले धरना स्थल पर माइक, पोस्टर, बैनर, रस्सियां आदि भी उपलब्ध करवाए। एएजेएमआई ने प्रदर्शन में इस्तेमाल करने के लिए बसों का भी भाड़ा दिया। अकेले जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट नंबर 7 के प्रदर्शन वाली जगह पर एएजेएमआई ने रोजाना 5,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच खर्च किए। '
दिसंबर की हिंसा से लेकर दिल्ली दंगों तक साजिश रची गई
दिल्ली पुलिस के मुताबिक सीएए के खिलाफ 2019 के दिसंबर में जामिया मिलिया इस्लामिया के पास जो हिंसा भड़की थी, वह फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों का ही 'शुरुआती रूप' था, जिसमें 53 लोगों की मौत हुई। पुलिस ने यह भी दलील दी है कि शाहीन बाग और जामिया में जो धरना-प्रदर्शन चल रहा था उस वाली जगह को दंगाइयों ने फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों से 'जानबूझकर' दूर रखा। यही नहीं, 2019 के दिसंबर की घटनाओं के उलट बाद के प्रदर्शनों में महिलाओं (स्थानीय और बाहर से भेजकर ) को आगे करके रखा गया और ऐसा हर इलाके में देखा गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि, 'शुरुआती दंगों' (दिसंबर, 2019) राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचने में नाकाम रह गया था। इसलिए साजिशकर्ताओं ने 'इस प्रदर्शनों पर धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ाया, बड़े पैमाने पर लोगों को उतारा, ज्यादा स्वीकार्य सिविल सोसाइटी की भागीदारी बढ़ाई और पुलिस से बचने के लिए महिलाओं और बच्चों को कवच बनाकर उनका शोषण किया।'
दिसंबर, 2019 की हिंसा में ज्यादा सफल नहीं हो सके साजिशकर्ता
चार्जशीट में पुलिस ने दावा दिया है कि 'दो हफ्ते पहले (दिसंबर) के अनुभवों ने मुख्य साजिशकर्ताओं को आधी सफलता और आधी नाकाम से रूबरू कराया और तब जाकर उन्होंने महसूस किया कि असल मकसद पूरा करने के लिए 'सेक्युलर कवर, जेंडर कवर और मीडिया कवर' की जरूरत थी।' इसमें आगे कहा गया है कि, 'गहन छानबीन और जांच के विश्लेषण से यही पता चलता है कि मुख्य साजिशकर्ताओं की जबर्दस्त कोशिश के बावजूद दिसंबर, 2019 की घटनाएं फरवरी, 2020 के कत्लेआम के मुकाबले बहुत ही छिटपुट थी।
दिसंबर हिंसा से सबक लेकर फरवरी के दंगों को दिया अंजाम
मुख्य साजिशकर्ताओं ने 2019 के दिसंबर की हिंसा से सबक सीखकर जब फरवरी, 2020 में साजिश को अंजाम देने शुरू किए तो उन्होंने इसके लिए उत्तरपूर्वी दिल्ली के चुना जो आर्थिक, सामाजिक और जनसांख्यिकीय मैट्रिक्स के लिहाज से बड़े पैमाने पर लोगों को गोलबंद करने और हिंसा के लिए एक आदर्श और अनोखा इलाका था......' इसमें दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडरिटी ग्रुप और पिंजरा तोड़ ने बिना महिलाओं को कवच के रूप में इस्तेमाल किए सांप्रदायिक मुहिम छेड़ने में प्रभावी भूमिका निभाई।' (तस्वीरें-फाइल)
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