चंद्रयान-2 सुनाएगा 'चंदामामा' के रहस्यों की कहानी
बेंगलुरु। श्रीहरिकोटा से लॉन्चिंग के ठीक 29 दिन बाद चंद्रयान आज सुबह 9 बजकर 30 मिनट पर चांद की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर लिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चेयरमैन के. सिवन के अनुसार चंद्रयान 2 की चंद्रमा की कक्षा में सफल प्रवेश करके सबसे बड़ी बाधा को पार कर चुका है। इसके बाद कुछ चरणों को पार करते हुए 7 सितंबर को एक और परीक्षा को पार करते हुए चंद्रयान-2 चंद्रमा पर साफ्ट लैंडिंग करके विज्ञान की दुनिया में एक नया इतिहास रचेगा। आइए जानते हैं कि चंद्रमा में सफल लैंडिंग के बाद चंद्रयान-2 वहां रहकर कैसे काम करेगा और हमारे 'चंदामामा' से जुड़े कौन-कौन से रहस्यों से दुनिया को रुबरू करवाएगा।
भारत चांद के अपरिचित दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश
धरती
के
एकमात्र
प्राकृतिक
उपग्रह
चंद्रमा
पर
भारत
ने
अपना
दूसरा
महत्वाकांक्षी
मिशन
'चंद्रयान-2'
बीती
22
जुलाई
को
आंध्र
प्रदेश
के
श्रीहरिकोटा
में
सबसे
ताकतवर
जीएसएलवी
मार्क-IIIGSLV
Mk
III
रॉकेट
लॉन्चर
से
लॉन्च
किया
था।
इस
चार
टन
के
अंतरिक्षयान
में
ऑर्बिटर,
लैंडर
(विक्रम)
और
रोवर
(प्रज्ञान)
शामिल
हैं।
बता
दें
चंंद्रयान-1
में
सिर्फ
ऑर्बिटर
था,
जो
चंद्रमा
की
कक्षा
में
घूमता
था।
इस
मिशन
के
तहत
इसरो
चांद
के
दक्षिणी
ध्रुव
पर
लैंडर
को
उतारने
की
योजना
है।
चंद्रयान-2
का
वजन
3,877
किलो
है।
यह
चंद्रयान-1
मिशन
(1380
किलो)
से
करीब
तीन
गुना
ज्यादा
है।
लैंडर
के
अंदर
मौजूद
रोवर
की
रफ्तार
1
सेमी
प्रति
सेकंड
है।
चंद्रयान-2
वास्तव
में
चंद्रयान-1
मिशन
का
ही
नया
संस्करण
है।चंद्रयान-2
भारत
की
चाँद
की
सतह
पर
उतरने
की
पहली
कोशिश
है।
यह
लैंडिंग
चांद
के
दक्षिणी
ध्रुव
पर
होगी।
इसके
साथ
ही
भारत
चांद
के
दक्षिणी
ध्रुव
पर
मानव
निर्मित
यान
उतारने
वाला
पहला
देश
बन
जाएगा।
इसरो
के
वैज्ञानिकों
की
मानें
तो
चंद्रमा
की
कक्षा
में
प्रवेश
करने
के
बाद
चंद्रयान-2
31
अगस्त
तक
चंद्रमा
की
कक्षा
में
परिक्रमा
करता
रहेगा।
इस
दौरान
एक
बार
फिर
कक्षा
में
बदलाव
की
प्रक्रिया
शुरू
होगी।
यान
को
चांद
की
सबसे
करीबी
कक्षा
तक
पहुंचाने
के
लिए
कक्षा
में
चार
बदलाव
किए
जाएंगे।
इस
तरह
तमाम
बाधाओं
को
पार
करते
हुए
यह
सात
सितंबर
को
चंद्रमा
के
दक्षिणी
ध्रुव
पर
लैंड
करेगा
वैज्ञानिकों
का
कहना
है
कि
चाँद
का
यह
इलाक़ा
काफ़ी
जटिल
है।
यहां
पानी
और
जीवाश्म
मिल
सकते
हैं।
चंद्रयान-2
पृथ्वी
का
एक
चक्कर
कम
लगाएगा
चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद इसरो स्पेसक्राफ्ट की दिशा में 5 बार (20, 21, 28 और 30 अगस्त तथा 1 सितंबर को) और परिवर्तन करेगा। इसके बाद यह चंद्रमा के ध्रुव के ऊपर से गुजरकर उसके सबसे करीब- 100 किलोमीटर की दूरी की अपनी अंतिम कक्षा में पहुंच जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर 2 सितंबर को चंद्रयान-2 से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। चंद्रयान-2 की 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने की उम्मीद है।
इसरो चेयरमैन सिवन ने बताया कि चंद्रमा की सतह पर 7 सितंबर 2019 को लैंडर से उतरने से पहले धरती से दो कमांड दिए जाएंगे, ताकि लैंडर की गति और दिशा सुधारी जा सके और वह धीरे से सतह पर उतरे। ऑर्बिटर और लैंडर में फिट कैमरे लैंडिंग जोन का रियल टाइम असेस्मेंट उपलब्ध कराएंगे। लैंडर का डाउनवर्ड लुकिंग कैमरा सतह को छूने से पहले इसका आंकलन करेगा और अगर किसी तरह की बाधा हुई तो उसका पता लगाएगा।
लॉन्चिंग की तारीख एक हफ्ते आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख 7 सितंबर को ही पहुंचेगा। इसे समय पर पहुंचाने का मकसद यही है कि लैंडर और रोवर तय अवधि के हिसाब से काम कर सकें। समय बचाने के लिए चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा। पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर अब 4 चक्कर लगाएगा। इसकी लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है। रोशनी 21 सितंबर के बाद कम होनी शुरू होगी। लैंडर-रोवर को 15 दिन काम करना है, इसलिए समय पर पहुंचना जरूरी है।
एक साल और बढ़ाया जा सकता है समय
चंद्रयान-2 में तीन हिस्से हैं - ऑर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान'। लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरकर प्रयोग का हिस्सा बनेगा जबकि ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा कर शोध को अंजाम देगा। इसरो अधिकारियों का कहना है कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के जीवन काल को एक साल और बढ़ाया जा सकता है। करीब 978 करोड़ रुपये के मिशन चंद्रयान-2 से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक, कक्षा में सारे बदलाव के बाद अंत में ऑर्बिटर के पास 290.2 किलोग्राम ईंधन होना चाहिए ताकि चंद्रमा के चक्कर लगा सके। अभी इतना ईंधन है कि चंद्रमा की कक्षा में दो साल तक चक्कर लगाया जा सकता है। हालांकि, सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। मालूम हो कि चंद्रयान 1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा जा गया है। चंद्रयान-1 के खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्यों के बाद आगे चांद की सतह पर, सतह के नीचे और बाहरी वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण की सीमा का अध्ययन करेगा।
लैंडर
'विक्रम'
पता
करेगा
कि
चांद
पर
भूकंप
आते
या
नहीं
विक्रम
के
लिए
लैंड
करते
वक़्त
15
मिनट
का
वो
वक़्त
काफ़ी
जटिल
है
और
इतने
जटिल
मिशन
को
कभी
अंजाम
तक
इसरो
ने
नहीं
पहुंचाया
है।
लैंडर
वो
है
जिसके
ज़रिए
चंद्रयान
पहुंचेगा
और
और
रोवर
का
मतलब
उस
वाहन
से
है
जो
चाँद
पर
पहुंचने
के
बाद
वहां
की
चीज़ों
को
समझेगा।
मतलब
लैंडर
रोवर
को
लेकर
पहुंचेगा।
लैंडर
यह
जांचेगा
कि
चांद
पर
भूकंप
आते
हैं
या
नहीं।
रोवर
'प्रज्ञान'
खनिज
तत्वों
का
पता
लगाएगा
चंद्रयान-2
के
हिस्से
ऑर्बिटर
और
लैंडर
पृथ्वी
से
सीधे
संपर्क
करेंगे
लेकिन
रोवर
सीधे
संवाद
नहीं
कर
पाएगा।
लैंडर
के
अंदर
मौजूद
रोवर
की
रफ्तार
1
सेमी
प्रति
सेकंड
है।
रोवर
चांद
की
सतह
पर
खनिज
तत्वों
की
मौजूदगी
का
पता
लगाएगा।
वहीं,
लैंडर
और
रोवर
चांद
पर
एक
दिन
(पृथ्वी
के
14
दिन
के
बराबर)
काम
करेंगे।
लैंडर
यह
जांचेगा
कि
चांद
पर
भूकंप
आते
हैं
या
नहीं।
जबकि,
रोवर
चांद
की
सतह
पर
खनिज
तत्वों
की
मौजूदगी
का
पता
लगाएगा।
दक्षिणी
धुव्र
पर
ही
लैंडिंग
क्यों?
चंद्रमा
का
दक्षिणी
धुव्र
एक
ऐसा
क्षेत्र
है
जहां
के
रहस्यों
से
अभी
दुनिया
वाकिफ
नही
है।
वैज्ञानिकों
को
यहां
कुछ
नया
मिलने
की
संभावना
हैं।
इस
इलाके
का
अधिकतर
हिस्सा
छाया
में
रहता
है
और
सूरज
की
किरणें
न
पड़ने
से
यहां
बहुत
ज़्यादा
ठंड
रहती
है।
वैज्ञानिकों
का
अंदाज़ा
है
कि
हमेशा
छाया
में
रहने
वाले
इन
क्षेत्रों
में
पानी
और
खनिज
होने
की
संभावना
हो
सकती
है।
हाल
में
किए
गए
कुछ
ऑर्बिट
मिशन
में
भी
इसकी
पुष्टि
हुई
है।
पानी
की
मौजूदगी
चांद
के
दक्षिणी
धुव्र
पर
भविष्य
में
इंसान
की
उपस्थिति
के
लिए
फायदेमंद
हो
सकती
है।
यहां
की
सतह
की
जांच
ग्रह
के
निर्माण
को
और
गहराई
से
समझने
में
भी
मदद
कर
सकती
है।
साथ
ही
भविष्य
के
मिशनों
के
लिए
संसाधन
के
रूप
में
इसके
इस्तेमाल
की
क्षमता
का
पता
चल
सकता
है।