Chandrayaan-2: लैंडर विक्रम से संपर्क के लिए क्या कर रहा है ISRO, जानिए
नई दिल्ली- इसरो ने लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने के अगले दिन ही चांद पर उसे खोज निकाला था। तब से इसरो के वैज्ञानिक लगातार इस उम्मीद में उससे दोबारा संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं कि कभी न कभी लैंडर विक्रम उनके सिग्नलों का जवाब जरूर देगा। चांद की परिक्रमा कर रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के कैमरों ने जितनी जल्दी लैंडर विक्रम का पता लगा लिया है, उससे वैज्ञानिकों को पूरा विश्वास है कि लैंडर विक्रम से संचार बहाल करने में भी कामयाबी जरूर मिलेगी। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कई दिनों से कोई संपर्क नहीं रहने के बावजूद इसरो के वैज्ञानिक उस तक अपना सिग्नल कैसे पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
अभी इसरो का क्या कहना है?
मंगलवार को इसरो की ओर से जारी बयान में यह बात दोहरायी गई है कि चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क स्थापित करने का प्रयास जारी है। इसरो के बयान में यह बताया गया,'विक्रम लैंडर का चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने पता लगा लिया है, लेकिन अभी तक उससे कोई संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। लैंडर से संचार बहाल करने के लिए सभी संभव प्रयास किए जा रहे हैं।' अब सबके मन में यही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जो लैंडर संपर्क टूटने की वजह से ही चांद की सतह पर प्लानिंग के मुताबिक 'सॉफ्ट लैंडिंग' नहीं कर पाया और उसके 'हार्ड लैंडिंग' की आशंका को खारिज नहीं किया गया है, ऐसी स्थिति में इसरो के वैज्ञानिक उसमें नई जान फूंकने के लिए क्या कर रहे हैं?
विक्रम लैंडर से कैसे संपर्क किया जा रहा है?
इसरो ने आधिकारिक तौर पर लैंडर विक्रम से संचार स्थापित करने की प्रक्रिया तो साझा नहीं की है, लेकिन टीओआई की खबर के मुताबिक कुछ वैज्ञानिकों ने इसरो के संभावित प्रयासों पर कुछ बेहद तथ्यात्मक प्रकाश डाला है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसरो को पता है कि विक्रम से किस फ्रीक्वेंसी पर संचार स्थापित हो सकता है और उसी के अनुसार वह रोजाना उस तक कई कमांड भेजने की कोशिश कर रहा है। इसरो को उम्मीद है कि जैसे ही विक्रम को उसकी फ्रीक्वेंसी मिलेगी वह तत्काल उसपर प्रतिक्रिया देने लगेगा। हालांकि, विक्रम ने अभी तक उसतक भेजे गए किसी कमांड का रेस्पॉन्स नहीं दिया है। विक्रम तक सिग्नल भेजने के लिए इसरो बेंगलुरु के पास ब्यालालु स्थित डीप स्पेस नेटवर्क सेंटर में लगे 32 मीटर की एंटीना का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा वह ऑर्बिटर में लगे संचार उपकरणों के जरिए भी लैंडर से संपर्क की कोशिशें कर रहा है।
लैंडर विक्रम तक कैसे पहुंचेगा सिग्नल?
विक्रम लैंडर में तीन ट्रांसपोन्डर्स लगे हुए हैं और उसके ऊपर गुंबदनुमा भाग में एक एंटीना भी लगा हुआ है। लैंडर को इसरो या ऑर्बिटर से आने वाले सिग्नल को समझकर वापस जवाब देना है। लेकिन, 72 घंटों के बाद भी उसने ऑर्बिटर या सीधे ग्राउंड स्टेशन के सिग्नल्स का जवाब नहीं दिया है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसरो ने अभी तक यह नहीं बताया है कि लैंडर में लगाए गए ये तमाम उपकरण किस स्थिति में हैं यानि उन्हें किसी तरह का नुकसान तो नहीं हुआ है या उसमें कोई टूट-फूट तो नहीं हुई है। इसके बाद एक सवाल और उठता है। वह यह है कि लैंडर में लगे सारे उपकरणों को चलाने के लिए पॉवर चाहिए यानि क्या लैंडर के उपकरणों को जरूरी पावर सप्लाई मिल रही है।
विक्रम में पावर सप्लाई की क्या स्थिति है?
लैंडर विक्रम के बाहरी हिस्से में सोलर पैनल लगा हुआ है। अगर यह योजनानुसार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करता तो यह खुद से पावर जेनरेट करना शुरू कर देता। इसके अलावा उसमें एक बैटरी सिस्टम भी इंस्टॉल किया हुआ है। लेकिन, अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि लैंडर में पावर जेनरेशन और सप्लाई की क्या स्थिति है। क्योंकि, हार्ड लैंडिंग की स्थिति में इसके डैमेज होने का खतरा है। इसरो की ओर से अभी तक इन सब उपकरणों की पड़ताल करने की कोशिशें जारी हैं।
कब तक उम्मीद बची है?
लॉन्चिंग से पहले की इसरो के अनुमानों के मुताबिक लैंडर विक्रम को एक पूरे लूनर डे तक सूरज की रौशनी मिलनी थी यानि धरती के 14 दिनों के बराबर। मतलब, 14 दिन पूरे होने तक इसरो अपने प्रयासों को जारी रख सकता है और अगर यह बात तय हो जाती है कि लैंडर को नुकसान पहुंच चुका है, तब भी उसे उम्मीदें छोड़नी पड़ सकती हैं। लेकिन, 14 दिन बाद वहां की रात इतनी सर्द हो जाएगी, जिसमें अगर लैंडर की नियंत्रित लैंडिंग हुई होती तब भी उसे सुरक्षित रख पाना लगभग नामुमकिन होता।
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