Chandrayaan-2:चांद पर प्रयोग का काम शुरू, 3डी मैपिंग और पानी की मात्रा पता लगाने में जुटा ऑर्बिटर
नई दिल्ली- इसरो ने गुरुवार को कहा है कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अच्छी तरह काम कर रहा है और अब उसने चांद पर प्रयोग करने भी शुरू कर दिए हैं। बता दें कि ऑर्बिटर पर 8 पेलोड्स मौजूद हैं, जिसके जरिए अगले कई वर्षों तक चांद को लेकर प्रयोग किए जाने हैं। अच्छी खबर ये है कि यह काम अब शुरू हो गया है। ये जानकारी इसरो के प्रमुख के सिवन ने अहमदाबाद में दी है। इस दौरान इसरो चीफ ने एजेंसी की कुछ और अहम परियोजनाओं पर फोकस करने की भी जानकारी दी है। जिसमें सूरज पर एक प्रोब मिशन भेजने और भारतीय स्पेसक्राफ्ट में अंतिरक्ष में इंसान भेजने जैसी परियोजनाएं भी शामिल हैं। उन्होंने ये भी बताया है कि इसरो छोटे सैटेलाइट भेजने के लिए रॉकेट बनाने पर भी काम कर रहा है।
चांद पर प्रयोग करने में जुट गया है ऑर्बिटर
इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ठीक उसी दिशा में काम कर रहा है, जैसा कि उससे उम्मीद है। ऑर्बिटर पर अलग-अलग तरह के प्रयोगों के लिए कुल 8 पेलोड्स या वैज्ञानिक उपकरण मौजूद हैं और ये सभी अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। इसरो चीफ के सिवन के मुताबिक, "चंद्रयान2 का ऑर्बिटर अच्छी तरह काम कर रहा है। सभी पेलोड्स का ऑपरेशन शुरू हो गया है और वह बहुत ही अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। हमें लैंडर से कोई सिग्नल नहीं मिला है, लेकिन ऑर्बिटर बहुत अच्छे तरीके से काम कर रहा है। एक राष्ट्रीय स्तर की समिति अब इस बात की पड़ताल कर रही है कि लैंडर के साथ असल में क्या दिक्कत आ गई।"
पानी की मात्रा के अलावा इन प्रयोगों में भी जुटा है
इसरो से मिली जानकारी के मुताबिक ऑर्बिटर को आने वाले सात-साढ़े सात साल तक अपने पेलोड्स के जरिए चांद की सतह पर कई तरह के परीक्षण करने हैं। इसे चांद की सतह का नक्शा तैयार करना है और उसके विकास को लेकर संकेत या सुरगा देना है। यही नहीं चंद्रमा के सतह की 3डी मैपिंग तैयार करने में भी ऑर्बिटर ही सहायता करने वाला है। ऑर्बिटर ये भी पता लगाएगा कि चांद पर मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम जैसे पदार्थ मौजूद हैं या नहीं। ऑर्बिटर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी ये पता लगाने की है कि चांद के ध्रुवीय क्षेत्र में आइस्ड वॉटर की अनुमानित मात्रा कितनी है। ऑर्बिटर इन सारे प्रयोगों के अलावा बाकी कई प्रयोग भी अगले कुछ वर्षों तक करता रहेगा। पहले इसके लिए सिर्फ एक वर्ष निर्धारित की गई थी, लेकिन मंगलयान के ऑर्बिटर की तरह इसकी मियाद भी बढ़ा दी गई है। गौरतलब है कि पहले मार्स ऑर्बिटर की मियाद सिर्फ 6 महीने की थी, जो अब भी सक्रिय है।
लैंडर से टूट गया था संपर्क
इसरो की तरफ से ये उम्मीद वाली खबर उस निराशा के बाद आई है, जब चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया था और उसके बाद वह चांद की लंबी अंधेरी रातों में गुम हो चुका है। उसपर मौजूद 6 पहियों वाले प्रज्ञान रोवर को 14 दिनों तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुप की सतह का भौतिक परीक्षण करना था। अब वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि लैंडर में किस तरह की खराबी आई थी, जिसके चलते वह चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की बजाय क्रैश लैंडिंग कर गया।
चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी का पता लगाया था
बता दें कि चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्रमा मिशन है। इससे पहले 2008 में चंद्रयान-1 भेजा गया था, जिसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जानबूझकर क्रैश करा दिया गया था। चंद्रयान-1 मिशन ने तब इतिहास रच दिया था, जब उसने चंद्रमा पर पानी (आइस्ड वॉटर) की मौजूदगी का पता लगाया था। अब चंद्रयान-2 उसी की मात्रा का पता लगाने में जुट गया है।
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