चंद्रयान-2 मिशन: लेकिन कोई भारतीय कब जाएगा चांद पर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर चांद पर अपना उपग्रह भेजने की घोषणा कर दी है. इससे पहले अक्तूबर 2008 में इसरो ने चंद्रयान-1 उपग्रह को चांद पर भेजा था. इसरो ने इस बार चंद्रयान-2 की घोषणा की है. इस उपग्रह को 15 जुलाई को सुबह 2:51 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से छोड़ा जाएगा. कुल लागत 600 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर चांद पर अपना उपग्रह भेजने की घोषणा कर दी है. इससे पहले अक्तूबर 2008 में इसरो ने चंद्रयान-1 उपग्रह को चांद पर भेजा था.
इसरो ने इस बार चंद्रयान-2 की घोषणा की है. इस उपग्रह को 15 जुलाई को सुबह 2:51 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से छोड़ा जाएगा. इसकी कुल लागत 600 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है.
3.8 टन वज़नी चंद्रयान-2 को यानी जीएसएलवी मार्क-तीन के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा.
चंद्रयान-2 बेहद ख़ास उपग्रह है क्योंकि इसमें एक ऑर्बिटर है, एक 'विक्रम' नाम का लैंडर है और एक 'प्रज्ञान' नाम का रोवर है. पहली बार भारत चांद की सतह पर 'सॉफ़्ट लैंडिंग' करेगा जो सबसे मुश्किल काम होता है.
भारत अपने उपग्रह की छाप चांद पर छोड़ेगा यह बहुत ही अहम मिशन है. भारत चांद की विज्ञान की खोज में जा रहा है और इसरो का मानना है कि मिशन कामयाब होगा.
चंद्रयान-1 कितना सफल रहा
चंद्रयान-1 का मिशन दो साल का था लेकिन उसमें ख़राबी आने के बाद यह मिशन एक साल में ही समाप्त हो गया. उस लिहाज़ से अगर देखा जाए तो इसरो कहता है कि उसने चंद्रयान-1 से सबक़ लेते हुए चंद्रयान-2 मिशन में सारी कमियों को दूर कर दिया है.
इसरो ने कहा है कि उसने चंद्रयान-2 को इस तरह से बनाया है कि उसका ऑर्बिटर सालभर चंद्रमा की कक्षा में काम करे और लैंडर एवं रोवर धरती के 14 दिन के लिए चांद की सतह पर काम करेंगे.
लैंडर और रोवर 70 डिग्री के अक्षांश पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहे हैं. आज तक किसी और देश ने कोई भी मिशन इतने दक्षिणी बिंदु पर आज तक नहीं किया है. भारत वहां जा रहा है जहां पर आज तक किसी देश ने जाने की हिम्मत नहीं की है.
इसरो का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव में चांद की सतह पर पानी के कण मिलेंगे और अगर पानी मिलता है तो आने वाले दौर में कभी वहां रहना पड़े तो यह उसके लिए रास्ता खोल सकता है.
पानी की खोज और पानी मिल जाए तो वहां रहने की उम्मीद, यह चंद्रयान-2 के दो मक़सद हैं.
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का लक्ष्य अभी तक अपनी जनता को इससे लाभ पहुंचाना था. उसमें इसरो बहुत हद तक कामयाब रहा है.
भारत के किसान हों, मछुआरे हों या आप और हम जो एटीएम से पैसे निकाल पा रहे हैं वह केवल अपने ही उपग्रहों के मदद से होता है. आने वाले वक़्त में इसरो विज्ञान का काम करना चाहता है, उसमें पीछे नहीं रहना चाहता है.
इसरो की मंशा है कि वह जल्द ही 2022 तक 'गगनयान' से एक भारतीय को भारत की ज़मीन से और भारत के रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका वादा कर चुके हैं कि भारत की स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह से पहले यह मिशन पूरा कर लिया जाएगा.
भारत से और कौन आगे
चीन हर हालत में भारत से कहीं न कहीं बहुत आगे है लेकिन भारत अपनी क़ाबिलियत में पीछे नहीं है. अंतरिक्ष विभाग इसको पूरा कर रहा है.
भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में बहुत सफलताएं हासिल की हैं और वह करता जा रहा है. एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत के पास सबसे ज़्यादा उपग्रह हैं.
दुनिया में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के दबदबे को लोग मानते हैं और वह कहते हैं कि भारत का यह कार्यक्रम लोगों के फ़ायदे के लिए है.