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Chandrayaan2 मिशन कहीं इसलिए तो नहीं फेल हो गया ?

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बेंगलुरू। चंद्रयान 2 की सफलता के लिए लैंडर विक्रम से कनेक्टविटी एक महत्वपूर्ण कड़ी है, लेकिन पिछले 7 सितंबर से अब तक हॉर्ड लैंडिंग के चलते चांद की सतह पर पड़े लैंडर विक्रम का इसरो द्वारा संपर्क स्थापित नहीं किया जा सका है, जिससे भारतीय चंद्र मिशन की ही नहीं, गगनयान मिशन पर भी आंशकाओं की बारिश और संभावनाओं को पलीता लग सकता है।

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हालांकि अभी सब कुछ खत्म नहीं हो गया है, क्योंकि अभी ऐसा लगता है कि एक दिन लैंडर विक्रम अपने पैरों पर उठ खड़ा होगा और इसरो की खो चुकी उम्मीद पर एक चांद नहीं, बल्कि चार चांद लगा देगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक अभी भी उसके पास एक पूरा सप्ताह है।

तकनीकी पक्ष कहता है कि लैंडर विक्रम और उसके भीतर मौजूद रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर एक चंद्र दिवस ( धरती के 14 दिन के समतुल्य) का वक्त गुजारना था। पिछले 7 सितंबर से 16 सितंबर के अंतराल में एक भी लैंडर विक्रम से संपर्क नहीं हो पाने इसरो समेत पूरा देश निराशा में गोते लगा रहा है। क्योंकि जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा है, विक्रम से संपर्क करना जटिल होता जाएगा।

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अंतरिक्ष वैज्ञानिको के मुताबिक चांद की सतह पर भयानक माइनस डिग्री में मौजूद लैंडर की बैटरी खत्म हो रही है। चिंता इसी बात की है कि लैंडर विक्रम की बैटरी खत्म हो गई तो पूरे मिशन का मकसद फेल जाएगा, क्योंकि लैंडर विक्रम दोबारा चार्ज करने के लिए कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है। अंतरिक्ष मामलों के जानकारों के मुताबिक हर गुजरते मिनट के साथ मिशन चंद्रयान 2 की उम्मीदें धूल धूसरित हो रहीं हैं, क्योंकि संपर्क नहीं का मतलब साफ है कि लैंडर विक्रम इसरो के संपर्क से दूर और दूर होता जा रहा है।

बावजूद इसके इसरो की टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क की टीम लैंडर विक्रम से लगातार संपर्क साधने की कोशिश में दिन-रात लगी हुई है। माना जा रहा है कि चंद्रयान 2 मिशन पर आर्बिटर के साथ गया लैंडर विक्रम हुआ हादसा इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि लैंडर रोवर तय मानकों के आधार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में कामयाब हो गई होती तो आज भारत चांद के अब तक अभेद्द किले यानी चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर पहुंचने वाला देश होता।

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लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि लैंडर रोवर हार्ट लैंडिंग के चलते चांद की सतह पर गि गया। लैंडर विक्रम के साथ हुआ यह हादसा चांद की सतह से महज 2.1 किमी पहले हुआ और उसका संपर्क इसरो से पूरी तरह टूट गया और अब तक दोबारा उससे संपर्क साधने मे इसरो नाकाम रहा है।

इसरो के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक चंद्रयान 2 के आर्बिटर ने हार्ड लैंडिंग के बाद चांद की सतह पर पड़े लैंडर विक्रम को खोज निकाला था, जिसके बाद इसरो समेत पूरे देश को मिशन चंद्रयान 2 की सफलता की ओर उम्मीद जग गई थी, लेकिन 10 दिन से अधिक बीत जाने के बाद भी इसरो लैंडर विक्रम से पुनः संपर्क कर पाने में अक्षम हैं।

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हालांकि बाद में मिशन में भारत की मदद के लिए अमेरिकी की राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अन्तरिक्ष प्रशासन (NASA)भा आगे आई है, लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा है। ऐसी स्थिति में लैंडर विक्रम के जिंदा होने की सारी उम्मीद सौर पैनल है, जो उसकी बैटरियों को चार्ज करने में मदद कर रहीं है या आगे कर सकती है।

आज सबसे बड़ा सवाल जो हर किसी के जह्न में चल रहा है, वह यह है कि आखिर चंद्रयान 2 लैंडर विक्रम चांद की सतह पर पूर्व संभावित सॉफ्ट लैंडिंग में नाकाम क्यूं हुआ, क्योंकि चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिक की बजाय हार्ड लैंडिंग की वजह से लैंडर विक्रम से संपर्क करना मुश्किल हो गया।

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इसरो के मुताबिक उसके द्वारा भेजे गए रेडियो संकेतों को रिसीब ही नहीं कर पा रहा है। माना जा रहा है कि चांद की सतह पर बड़े-बड़े गड्ढों में लार्ड लैंडिंग के चलते लैंडर विक्रम का काफी नुकसान पहुंचा हुआ होगा, लेकिन अगर लैंडर विक्रम की चांद की सतह पर पूर्व संभावित सॉफ्ट लैंडिंग होती तो चंद्रयान 2 मिशन की 100 फीसदी सफलता सुनिश्चित थी।

यह भी पढ़ें-Chandrayaan 2 के बाद अब गगनयान की तैयारी, जानिए क्या है मिशन Gaganyaan

चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर पहली बार नहीं पहुंचा भारत

चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर पहली बार नहीं पहुंचा भारत

इसरो के अनुसार चंद्रयान 2 चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला पहला देश है, जिससे भारत के साथ पूरी दुनिया को फायदा होगा। इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव होंगे, जिससे भविष्य के चंद्र अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्नोलॉजी को बनाने और उन्हें तय करने में मदद मिलेगी।

स्वदेशी तकनीक से इसरो ने बनाया था लैंडर विक्रम

स्वदेशी तकनीक से इसरो ने बनाया था लैंडर विक्रम

स्वदेशी तकनीकी के सहारे से निर्मित लैंडर विक्रम पहले चंद्रयान 2 मिशन का हिस्सा नहीं था, क्योंकि भारत ने चंद्रयान 2 मिशन के लिए रूस से लैंडर के लिए समझौता किया था, लेकिन 2012-13 के दौरान रूस ने भारत को लैंडर देने से मना कर दियाा था, जिसके बाद इसरो ने चंद्रयान 2 के लिए खुद लैंडर विक्रम को विकसित किया। कई चंद्रमा की सतह पर रूसी लैंडर सफलतापूर्वक उतर चुके हैं, यही कारण था कि भारत ने चंद्रयान 2 मिशन के लिए रूसी लैंडर को चुना था, लेकिन अगर रूस ने मदद की होती तो आज चंद्रयान 2 मिशन मंझधार में नहीं फंसा होता, क्योंकि चंद्रयान 2 मिशन की अहम कड़ी ही लैंडर था।

चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक सफलता से अटका चंद्रयान 3

चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक सफलता से अटका चंद्रयान 3

इसरो की चंद्रयान 2 की आंशिक सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन किया, लेकिन इससे चंद्रयान मिशन पर तात्कालिक ग्रहण तो लग गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भावुक इसरो चीफ के.सिवन की पीठ थपथपाकर भविष्य के चंद्रयान मिशन को जारी रखने के संकेत जरूर दिए, लेकिन चंद्रयान-3 को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होना जताता है कि आगे चंद्रयान मिशन को कितनी तवज्जो सरकार देने वाली है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसरो गगनयान मिशन पर भी काम कर रही है और फिर चंद्रयान 2 के पूरे अभियान की समीक्षा के बाद ही चंद्रयान-3 की रुपरेखा तैयार होगी।

चंद्रयान 2 की लांचिग की तारीख में अचानक हुआ था बदलाव

चंद्रयान 2 की लांचिग की तारीख में अचानक हुआ था बदलाव

पारंपरिक रूप से इसरो अपने अभियान से पूर्व फेल अभियानों की स्टडी करता है और अगर चंद्रयान 2 फेल हुआ तो इसरो इसकी पूरी समीक्षा के बाद ही अगले मिशन की रूपरेखा तैयार करेगी। चंद्रयान 2 मिशन की महत्वपूर्व कड़ी लैंडर पर गहन समीक्षा इसलिए भी जरूरी है कि रूस द्वारा किए गए इनकार के बाद स्वदेशी तकनीक से निर्मित लैंडर विक्रम ही मिशन की असलता का प्रमुख कारण बनकर उभरा है। इससे पहले इसरो ने चंद्रयान 2 की लांचिग की तारीख को अचानक बदल दिया। चंद्रयान1 के प्रक्षेपण से पूर्व दुनिया के सभी फेल अभियानों की समीक्षा की गई ताकि संभावित चूकों को रोकने के उपाय किए जा सके। यही प्रकिया मंगलयान के वक्त भी अपनाई गई थी। हालांकि चंद्रयान 2 अभियान से पूर्व भी इसरो ने चीन, रूस और अमेरिका के आरंभिक फेल अभियानों का अध्ययन किया था।

60 फीसदी होती है चंद्र अभियान में सफलताओं का औसत

60 फीसदी होती है चंद्र अभियान में सफलताओं का औसत

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 6 दशक में चंद्र मिशन में सफलता 60 प्रतिशत मौकों पर मिली है। इस दौरान 109 चंद्र मिशन शुरू किए गए, जिसमें 61 सफल हुए और 48 असफल रहे। वर्ष 2009 से 2019 के बीच पूरे विश्व में भारत समेत कुल 10 मिशन लॉन्च किए गए, जिसमें से 5 भारत ने, 3 अमेरिका और एक-एक चीन और इजरायल ने लांच किया था, जो सफल रहे थे। मालूम हो, वर्ष 1990 से अब तक अमेरिका, जापान, भारत, यूरोपियन यूनियन, चीन और इजरायल 19 लुनार मिशन लॉन्च कर चुके हैं।

इसरो 2022 में अंतरिक्ष में भेजेगा मानवयुक्त गगनयान

इसरो 2022 में अंतरिक्ष में भेजेगा मानवयुक्त गगनयान

चंद्रयान-2 मिशन के बाद अब इसरो गगनयान मिशन पर लग गई है, जो एक मानवयुक्त स्पेस मिशन होगा। इस मिशन की तैयारी इसरो और भारतीय वायुसेना द्वारा शुरू भी कर दी गई हैं। इसरो गगनयान मिशन के लिए तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में सात दिन की यात्रा के लिए भेजेगा। गगनयान के अंतर्गत इसरो अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगा और उन्हें वहां से वापस लेकर आएगा। इस मिशन पर 10 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। इससे पहले, 2 अप्रैल 1984 को भारत के पहले अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा रूस के सोयूज टी-11 में बैठकर अंतरिक्ष यात्रा पर जा चुके हैं।

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English summary
India's mission to moon mission Chandrayaan2 failed due to lander vikram hard landing in moon surface.Lander vikram failed to receive signal and ISRO failed to connect.
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