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एग्जिट पोल को इसलिए नजरअंदाज कर रहे हैं चंद्रबाबू नायडू

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नई दिल्ली- जिस दिन से एग्जिट पोल के नतीजे सामने आए हैं, विपक्षी पार्टियों के ज्यादातर नेता अंदर ही अंदर परेशान हैं। मायावती जैसी नेता तो उसके बाद विपक्षी दलों की बैठक में जाने तक से इनकार कर चुकी हैं। क्योंकि, सार्वजनिक तौर पर विपक्षी दल के नेता भले ही एग्जिट पोल के नतीजों को नकार रहे हों, लेकिन अंदर ही अंदर उनके दिलों में खलबली मची हुई लगती है। लेकिन, राजनीति का एक चेहरा ऐसा है, जो सभी भविष्यवाणियों को नकार कर अभी भी मोदी को कुर्सी से हटाने की मुहिम में जुटा है। टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) एग्जिट पोल के नतीजों को मानने के लिए कत्तई तैयार नहीं हैं। वे अपने मिशन में लगातार जुटे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें यह यकीन है कि 23 तारीख को परिणाम मोदी के खिलाफ ही आने वाला है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे की असल वजह ये है कि मोदी सत्ता में वापसी करें या न करें, कोई गैर-एनडीए सरकार बने या न बने, आंध्र प्रदेश में उनकी सरकार दोबारा आए या न आए, नायडू को हर हाल में दिल्ली की राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखना है।

कड़ी मेहनत कर रहे हैं चंद्रबाबू

कड़ी मेहनत कर रहे हैं चंद्रबाबू

गैर-मोदी सरकार बनवाने की कवायद में जुटे चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) सोनिया गांधी (Sonia Gandhi), राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से दो-दो बार मुलाकात कर चुके हैं। वे लखनऊ जाकर बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी मिल आए हैं और उनके नजरिए की जानकारी सोनिया और राहुल को भी दे चुके हैं। वे एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, सीपीआई नेता एस सुधाकर रेड्डी, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी जैसे तमाम गैर-एनडीए दलों के नेताओं से भी मुलाकात कर चुके हैं। यहां तक कि रविवार को आए एग्जिट पोल से भी वे विचलित नहीं होते हुए अपने मिशन में जुटे ही हुए हैं। केंद्र में एनडीए और आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) की सरकार बनने की संभावना को साफ तौर पर खारिज करते हुए वे कोलकाता जाकर ममता बनर्जी से आगे की रणनीतियों पर भी मंथन करके आ चुके हैं। दिल्ली लौटकर उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा है, "मैं 23 मई तक अपनी कोशिशें जारी रखूंगा।"

'राष्ट्रहित का काम कर रहे हैं'

'राष्ट्रहित का काम कर रहे हैं'

सच्चाई ये है कि चंद्रबाबू (Chandrababu Naidu)को इस बार आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh)में जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) से बहुत ही कठिन चुनौती मिल रही है। लेकिन, उनकी पार्टी के नेता मान रहे हैं कि अगर ऐसे समय में भी वो राज्य से बाहर दिल्ली में बैठे हैं, तो इसके पीछे उनका मकसद राष्ट्रहित को तबज्जो देना है। टीडीपी (TDP) के एक नेता खंबामपति राममोहन राव का मानना है कि, "वे ये सब राष्ट्रहित के लिए कर रहे हैं। केंद्र में बदलाव लाना समय की मांग है।" वे दावा करते हैं कि 1996-1998 में केंद्र में यूनाइटेड फ्रंट (UF) की सरकार बनवाने में भी चंद्रबाबू का अहम रोल रहा था। राव दावा करते हैं कि,"हमें लगता है कि वे कई पार्टियों को एंटी-एनडीए प्लेटफॉर्म पर ले आएंगे।"

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दिल्ली बगैर सूनी रहेगी चंद्रबाबू की राजनीति!

दिल्ली बगैर सूनी रहेगी चंद्रबाबू की राजनीति!

चंद्रबाबू नायडू के दिलो-दिमाग में जो सियासी उथल-पुथल इस वक्त मचा हुआ है, उसका विश्लेषण एक जानकार ने बहुत ही सटीक तरीके से करने की कोशिश की है। पॉलिटिकल एनालिस्ट पालवई राघवेंद्र रेड्डी का साफ मानना है कि वे राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए ही अभी भी इतनी मेहनत कर रहे हैं। वे कहते हैं," नायडू राज्य में चाहे चुनाव जीतें अथवा हारें, उनका अगला पड़ाव दिल्ली में है। आंध्र प्रदेश में नतीजे चाहे जो भी आए, उन्हें नेशनल पॉलिटिक्स में प्रासंगिक बने रहना है।" उनके मुताबिक अगर आंध्र प्रदेश में वे चुनाव हार जाते हैं, तो भी जगन मोहन रेड्डी के सीएम बनने की स्थिति में वो विधानसभा में विपक्ष में नहीं बैठना चाहेंगे। वो कहते हैं कि, "उस स्थिति में नायडू अपने बेटे लोकेश या किसी दूसरे टीडीपी नेता को विपक्ष का नेता बना देंगे और खुद दिल्ली से राजनीति करेंगे।" लेकिन, अगर आंध्र प्रदेश में उनकी सत्ता में वापसी हो जाती है, तो भी उन्हें दिल्ली की सत्ता (चाहे जो भी रहे) से मदद की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि, उन्होंने चुनाव के दौरान जो वादे किए हैं उसे पूरे करने के लिए और राज्य में राजधानी के निर्माण और पोलावारम (Polavaram) जैसे प्रोजेक्ट के लिए उन्हें केंद्र की सहायता पर ही निर्भर रहना है। रेड्डी तो यहां तक मानते हैं कि अगर केंद्र में एनडीए के भी नंबर कुछ कम रह गए, तो नायडू फिर से उन्हें सपोर्ट भी कर सकते हैं। वे कहते हैं, "अगर मोदी केंद्र में फिर से सरकार बना लेते हैं और आंध्र प्रदेश में नायडू को सत्ता दोबारा मिल जाती है, तो वे एनडीए को जरूरत नहीं रहने पर भी उससे हाथ मिला सकते हैं, क्योंकि राज्य को चलाने के लिए उन्हें दिल्ली का सहयोग चाहिए।"

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English summary
Chandrababu Naidu working hard to stay relevant in Delhi
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