नागरिकता कानून पर हिंसा के बीच अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हसन रिजवी का बड़ा बयान
नई दिल्ली- नागरिकता (संशोधन) कानून को लेकर मचे बवाल के बीच राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ने एक बड़ी बात कही है। आयोग के अध्यक्ष सैयद गयूरुल हसन रिजवी का कहना है कि नया कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है और न ही भारतीय मुसलमानों को इससे डरने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि भारतीय मुसलमान न तो घुसपैठिए हैं और न ही शरणार्थी ही हैं, इसलिए उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है।
यह कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं- रिजवी
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गयूरुल हसन रिजवी ने कहा है कि नागरिकता (संशोधन) कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। उन्होंने ये भी कहा है कि भारतीय मुसलमानों को इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वे न तो घुसपैठिए हैं और न ही शरणार्थी ही हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि उम्मीद है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स या एनआरसी की वजह से भारतीय मुसलमानों को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़े। उनके मुताबिक, "यह कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। यहां तक कि पारसी, क्रिश्चियन, सिख, जैन और बौद्ध भी अल्पसंख्यक हैं।" उन्होंने बताया कि, "कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह कानून मुसलमान-विरोधी है, लेकिन यह सच नहीं है, क्योंकि इसमें भारतीय मुसलमानों का कोई जिक्र नहीं है।"
'भारतीय मुसलमान घुसपैठिए या शरणार्थी नहीं'
रिजवी ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को इस कानून से डरने की इसलिए जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने दो टूक कहा कि, "भारतीय मुसलमानों को कोई खतरा नहीं है।" रिजवी ने साफ किया कि, "भारतीय मुसलमान न तो घुसपैठिए हैं और न ही शरणार्थी। एक भारतीय मुसलमान एक सम्माननीय नागरिक है और उन्हें देश से बाहर भेजने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। गृहमंत्री ने भी यही कहा है।" दरअसल, इस कानून के खिलाफ उत्तर-पूर्व के अलावा भी देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं।
इन इलाकों में लागू नहीं होगा ये कानून
बता दें कि नया नागरिकता कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से 31 दिसंबर, 2014 से पहले तक भाग कर भारत आने वाले हिंदू, पारसी, सिख,जैन,क्रिश्चियन और बौद्ध शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार देता है। हालांकि, इसके तहत बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन, 1873 के 'इनर लाइन' के दायरे में आने वाले इलाके शामिल नहीं होते। इस संबंध में जारी अधिसूचना के मुताबिक, 'संविधान की छठी अनुसूचि में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी इलाके और बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन, 1873 के 'इनर लाइन' से जुड़े क्षेत्रों में यह लागू नहीं होगा।'