मोदी सरकार ने कोर्ट में की अपील, कहा- प्रमोशन में SC/ST आरक्षण पर हो पुनर्विचार
नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले एनडीए सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी और एसटी आरक्षण को लेकर याचिका दायर की है। केंद्र सरकार ने अपना याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि 2006 के नागराज फैसले के चलते एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है। बता दें कि, 2006 के नागराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब सरकार उस वर्ग के पिछड़ेपन का आंकड़ा पेश करे।
मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश आरएफ नरीमन, न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, न्यायाधीश संजय किशन कौल और इंदू मल्होत्रा की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि एससी-एसटी आरक्षण के विषय पर 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा की क्या जरूरत आ गई है? केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से झेल रहा है। इसलिए 2006 के फैसले पर पुनर्विचार की तत्काल जरूरत है।
केंद्र ने कहा कि एससी-एसटी पहले से ही पिछड़े हैं इसलिए प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है। वेणुगोपाल ने कहा कि आंकड़े जमा करना संभव नही है। लोग नौकरी में आते हैं और रिटायर हो जाते हैं। यह एक लगातार चलने वाला काम है। ऐसे में उस डिपार्टमेंट में एससी/एसटी का प्रतिनिधित्व कितना है ये पता लगाना संभव नही है। कोर्ट ने फिर पूछा कि पिछड़ापन कैसे साबित होगा? आरक्षण देने का आधार क्या होगा? तो वेणुगोपाल ने जवाब दिया की इस वर्ग का पिछड़ापन एक माना हुआ तथ्य है। जो सैंकड़ों साल पुराना है।
केंद्र सरकार ने कहा कि साल में होने वाले प्रमोशन में एससी-एसटी कर्मचारियों के लिए 22.5 फीसदी आरक्षण मिलनी चाहिए। ऐसा करने से ही उनके प्रतिनिधित्व की कमी की भरपाई हो सकती है।
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