सेक्रेड गेम्स से डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर सेंसरशिप की बहस
डिजिटल वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म 'नेटफ़्लिक्स' पर रिलीज़ हुई वेब सिरीज़ 'सेक्रेड गेम्स' अपनी बात रखने की आज़ादी के मुद्दे को लेकर चर्चा में है.
इस शो में 'अश्लील' भाषा के इस्तेमाल और कुछ अनुचित समझे जाने वाले दृश्यों को दिखाए जाने पर देश भर में बहस छिड़ गई है.
चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि नेटफ़्लिक्स जैसे डिजिटल वीडियो प्लेटफ़ॉर्म्स पर दिखाए जा
डिजिटल वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म 'नेटफ़्लिक्स' पर रिलीज़ हुई वेब सिरीज़ 'सेक्रेड गेम्स' अपनी बात रखने की आज़ादी के मुद्दे को लेकर चर्चा में है.
इस शो में 'अश्लील' भाषा के इस्तेमाल और कुछ अनुचित समझे जाने वाले दृश्यों को दिखाए जाने पर देश भर में बहस छिड़ गई है.
चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि नेटफ़्लिक्स जैसे डिजिटल वीडियो प्लेटफ़ॉर्म्स पर दिखाए जाने वाले कॉन्टेंट पर किसी तरह की सेंसरशिप होनी चाहिए या नहीं?
किसी भी फ़िल्म को थिएटर में रिलीज़ करने से पहले सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफ़िकेशन से प्रमाण-पत्र हासिल करना अनिवार्य है.
इस सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफ़िकेशन को कुछ लोग बोलचाल की भाषा में सेंसर बोर्ड भी कहते हैं. लेकिन डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म के लिए ऐसी कोई संस्था नहीं है.
युवा पीढ़ी की पसंद
भारत में 3 सालों में 'नेटफ़्लिक्स जैसे डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म का तेज़ी से विकास हुआ है. देश में ऐसे प्लेटफ़ॉर्म्स की संख्या अब 30 बताई जाती है.
इन पर आए कॉन्टेंट को देखकर अब इन्हें नियंत्रित करने के लिए एक नियामक संस्था की माँग शुरू हो चुकी है.
कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर चटपटे कंटेट के बीच गालियों के प्रयोग को युवा पीढ़ी पसंद कर रही है.
ऑनलाइन सिरीज़ बनाने वाली मीडिया कंपनी एआईबी के प्रोग्राम अक्सर ऐसे होते हैं जिनमे 'गंदी' गालियों का इस्तेमाल आम है लेकिन युवाओं में ये लोकप्रिय है.
एआईबी के यूट्यूब पेज के 33 लाख फ़ॉलोअर हैं.
परिवार के साथ
इसी तरह यूट्यूब पर 38 लाख फ़ॉलोअर वाली मीडिया कंपनी 'द वायरल फ़ीवर' (टीवीएफ़) भी ऐसी वेब सिरीज़ बनाती है.
इसके शोज़ में 'अश्लील' शब्द आम तौर से इस्तेमाल किए जाते हैं. कुछ लोगों की राय में इस तरह के शो को परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता. इसलिए गंदी भाषा और अश्लील दृश्यों पर कैंची चलाकर ही इसे पेश करना चाहिए.
लेकिन टीवीएफ़ के संस्थापकों में से एक समीर सक्सेना कहते हैं कि ये एक आज़ाद मध्यम है और इसे आज़ाद ही बने रहने देना चाहिए.
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इंटरनेट पर कंट्रोल
समीर जैसे लोगों का तर्क ये है कि ऐसे प्रोग्राम देखने वाले काफ़ी समझदार होते हैं.
ऐसे प्रोग्राम को सेंसर करना मौलिक अधिकारों के हनन जैसा होगा.
देश भर में डिजिटल वीडियो प्लेटफ़ॉर्म से क़रीब 10 करोड़ से अधिक लोग जुड़े हैं. इनमें ज़्यादातर नौजवान पीढ़ी के लोग हैं.
खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इंटरनेट को कंट्रोल न करने की वक़ालत की है.
'नेटफ्लिक्स' के शो 'सेक्रेड गेम्स' में ऐसे दृश्य हैं जिनमें इंदिरा गांधी को आपातकाल के लिए और उनके बेटे राजीव गांधी की बोफ़ोर्स घोटाले और शाह बानो मामले के लिए आलोचना की गई है.
राहुल गांधी का बयान
राहुल गांधी ने अपने एक ट्वीट में कहा, "बीजेपी/आरएसएस का मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित किया जाना चाहिए. मेरा मानना है कि ये स्वतंत्रता एक मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार है."
इस ट्वीट में उन्होंने कहा कि इस काल्पनिक कहानी से उनके पिता की छवि पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.
कांग्रेस अध्यक्ष की तारीफ़ की जा रही है. शो के डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने राहुल गांधी के बयान को सराहा है.
उधर, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अपमान करने के इल्ज़ाम के आधार पर इस शो की कुछ सामग्री को हटाने पर याचिका दाखिल की गई है.
इंटरनेट पर उपलब्ध चीज़ों पर मौजूदा क़ानून किस हद तक लागू होते हैं, इसपर भी सवाल कम नहीं हैं.
ऐसे में अदालतों को किसी नतीजे पर पहुँचने में दिक़्क़त हो सकती है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
क़ानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि पारंपरिक मीडिया पर सेंसरशिप के मामले में भारतीय क़ानून काफ़ी आधुनिक और उदार हैं (कम से कम सिद्धांत में).
संविधान का आर्टिकल-19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है, चाहे संचार का माध्यम कुछ भी हो.
आर्टिकल 19 (2) आम लोगों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए जायज़ प्रतिबंधों को सही ठहराता है.
आईटी अधिनियम में कई प्रावधान हैं जिनका उपयोग ऑनलाइन सामग्री को सेंसर करने के लिए किया जा सकता है.
दिलचस्प बात ये भी है कि इन सभी मामलों में प्रशासन को बिना अदालतों में गए भी फ़ैसले लेने का हक है.
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आईटी क़ानून के तहत
सरकार के सामने भी एक बड़ी दुविधा है. इंटरनेट एक ग्लोबल प्रक्रिया है. इस पर विदेश से कंटेंट डाउनलोड करके किसी दूसरे देश में दिखाया जाना आम बात है.
दूसरा अभिव्यक्ति की आज़ादी का मुद्दा है. सरकार कोई ऐसा क़दम नहीं उठाना चाहेगी जिससे उसके ख़िलाफ़ अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने का इल्ज़ाम लगाया जा सके.
सरकार पहले ही आईटी क़ानून के अंतर्गत कई गिरफ़्तारियाँ कर चुकी है जिसके कारण उसकी ज़बरदस्त आलोचना की गई है.
दरअसल, ये समस्या केवल भारत में बहस का मुद्दा नहीं है. हर लोकतांत्रिक देश में इस पर बहस चल रही है.
जर्मनी में हाल में एक नया नियम आया है जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सूचित करने के 24 घंटे के बाद भड़काऊ भाषण न हटाने पर जुर्माना लगाया जाएगा.
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स
अमरीकी संविधान के पहले संशोधन (फ़र्स्ट अमेंडमेंट) के तहत सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और दूसरे ऑनलाइन आउटलेट्स को ये तय करने का अधिकार है कि वो किस तरह से अपनी बात रखेंगे.
समीर कहते हैं, "हम सभी एक ऐसा इंटरनेट चाहते हैं, जहां हम मिलने, क्रिएटिविटी को बढ़ाने, व्यवस्थित करने, सहयोग करने, बहस करने और सीखने के लिए स्वतंत्र हैं."
लेकिन इस पर आलोचना ये कहकर की जाती है कि इन प्लेटफॉर्म्स को आज़ादी दिए जाने का मतलब ये नहीं है कि वे जो चाहें वो करें.
भारत की संस्कृति
समीर सक्सेना कहते हैं, "ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स को सेल्फ रेगुलेशन की छूट होनी चाहिए. कई प्लेटफॉर्म्स ऐसा करते भी हैं. लेकिन इस से इस बात का डर भी पैदा होता है कि असली संदेश या असली आवाज़ भी दब जाती है."
नेटफ़्लिक्स ने जब भारत में प्रवेश किया था तो इसने वादा किया था कि कंपनी भारत की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए कंटेट बनाएगी.
इसीलिए नेटफ़्लिक्स ने भारत आने के बाद अपने विदेशी प्रोग्रामों को एडिट करके दिखाया, लेकिन शायद ज़रूरत से ज़्यादा.
इसके और हॉटस्टार जैसे प्लेटफॉर्म के ख़िलाफ़ इलज़ाम है कि इन्होंने अधिकारियों के डर से कभी-कभी ज़रूरत से ज़्यादा सेल्फ-सेंसरशिप भी की है.
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