Reality Check: गैजेट में बन चुके है कार, राइड के लिए ओला-उबर पर डिपेंड करते हैं लोग
बेगलुरू। ऑटो सेक्टर में संभावित मंदी को दरकिनार करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का तर्क भले ही लोगों को समझ न आए, लेकिन उबर और ओला को लेकर उनकी टिप्पणी में जरूर दम हैं। भारतीय के लिए कार स्टेट्स सिंबोल आज भी है और घर के सामने अगर खुद की कार खड़ी हो तो लोग उसे गर्व का विषय मानते हैं। लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि बदलते दौर में शहरों में ट्रैफिक की समस्या ने इस सिंबोल को थोड़ा धक्का जरूर पहुंचा है, जिससे लोगों ने कार का कार पार्किंग में छोड़ना शुरू कर दिया है। इसकी अन्य वजहें भी शामिल है। मसलन मेट्रो सेवाओं का विस्तारीकरण और उबर और ओला रेडियो टैक्सी की उपलब्धता इनमें प्रमुख हैं।
वतर्मान समय में सभी मेट्रोपोलिटन सिटीज में मेट्रो परियोजना पहुंच चुकी है और जहां नहीं पहुंची है वहां निर्माण कार्य तेजी से जारी है। अभी कुल 9 शहरों में मेट्रो सेवा संचालित की जा रही है, जहां लोग एक इलाके से दूसरे इलाके जाने अथवा ऑफिस से घर पहुंचने के लिए मेट्रों को प्राथामिकता दे रहे हैं। मेट्रो सेवा को प्राथमिकता देने वाले लोगों के पास कार नहीं है यह कहना गलत होगा, लेकिन उनकी कारें अब कार पार्किंग में अधिक खड़ी रहने लगी हैं। यही नहीं, इमरजेंसी की हालत में भी कार पार्किंग में ही खड़ी रहती है, क्योंकि सड़क पर आसानी से मौजूद रेडियो टैक्सियां उनकी जगह पर तेजी से बेरोक-टोक और झंझट के पहुंचा दे रही है।
उबर और ओला टैक्सी सर्विस लोगों के जेब पर भी फिट बैठ रही है और लोगों ट्रैफिक पुलिस के नियमों से बचाने में भी सहयोग कर रहे हैं। वर्तमान समय में अपनी गाड़ी कोई भी शहरी तभी कार पार्किंग से निकालना पसंद करता है, जब उसको फैमिली ड्राइव पर जाना होता है। हालांकि उबर और ओला यहां भी कार मालिकों को मात दे रही है। क्योंकि इसके लिए प्रीमियम सर्विस और कार रेंट सर्विस भी उक्त दोनों कंपनियां लोगों तक पहुंचा रही है। तो वितमंत्री के तर्क को झटके में दरकिनार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बदलते दौर में सुविधाओं और सरलता को लोग अधिक वरीयता दे रहे हैं, जिससे पैसे के साथ साथ समय की भी बचत हो रही है।
हालांकि ऑटो सेक्टर में आई मंदी के लिए पूरी तरह से मेट्रो सेवाओं और ओला-उबर रेडियो टैक्सियों को दोषी इसलिए नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि सड़कों पर आज भी ट्रैफिक कम नहीं हुए हैं। बात चाहे राजधानी दिल्ली की जाए अथवा अन्य मेट्रोपोलिटन शहरों की, जहां मेट्रो रेल से लेकर उबर-ओला और ऑटो सर्विस भी यात्रियों से भरे होते हैं। सड़कों पर ट्रैफिक नहीं कम हुआ, लोग जरूरी और गैर-जरूरी दोनों कामों के लिए कारों का प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन वृहद स्तर पर कार ड्राइविंग की प्राथमिकता में कमी जरूर आई है, जिसके लिए सरलता और सुविधा मंदी के अपेक्षा ज्यादा जिम्मेदारा है।
एक उदाहरण से इसको समझा जा सकता है। ओटीटी प्लेटफार्म पर टीवी सीरियल्स, फिल्म और वीडियोज देखने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है, क्योंकि यह सुविधाजनक है। मूवमेंट में होते हुए भी कोई अपना पसंदीदा सीरियल्स और वीडियोज मिस नहीं कर रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके घरों से टेलीविजन गायब हो चुके हैं।
टीवी घरों में आज भी मौजूद हैं, लेकिन उसके स्विच ऑन की फ्रिक्वेंसी कम हो गई है। टेलीविजन घरों में महज एक गजेट बनकर गए हैं, जैसे कुछ दिनों पहले कलाई घड़ी हो गई थी। कुछ ऐसा ही कारों के साथ हो रहा है। लोग कार खरीद रहे हैं, लेकिन स्टेट्स सिंबोल के लिए न की जरूरत के लिए। शायद यही कारण है कि ऑटो सेक्टर में मंदी की संभावना व्यक्त की जा रही है।
वैसे, ऑटो सेक्टर में मंदी की संभावना पर तब कुठाराघात होता है जब भारतीय बाजारों में लांच हो रही नईं कारों की बुकिंग के लिए हायतौबा मचने की खबर आती है। अभी एक महीने पहले भारतीय बाजार में लांच हुई एमजी हेक्टर कार को इतनी बुंकिग हुई कि कंपनी को बुंकिग बंद करनी पड़ गई। इसी तरह का सामना कीया सेल्टोज कंपनी को भी करना पड़ा जब प्रोडक्शन से अधिक कार की बुंकिंग आ गई और उसे नई बुंकिंग रोकनी पड़ी।
सवाल यह है कि ये लोग कौन हैं जो लगातार नई कार खरीद रहे हैं। जवाब एक ही है कि कार अब स्टेट्स सिंबोल से निकलकर गजेट में तब्दील हो गई हैं, जो घर की शोभा बढ़ाने के लिए खरीदी जा रही है बाकी राइड के लिए सभी ओला-उबर और मेट्रो को प्राथमिकता दे रहे हैं।
ऑटो सेक्टर में संभावित मंदी के लिए जानकारों ने तर्क दिए कि लोगों की आय वृद्धि दर में आई कमी इसके लिए जिम्मेदार है, जिससे लोगों की क्रय शक्ति और बचत प्रोत्साहन में कमी आई है, लेकिन किसी भी विशेषज्ञ ने परिवहन के लिए शहरों और सेमी अर्बन इलाकों बढ़ी सुविधाओं पर एक बार भी ध्यान नहीं दिया। दिल्ली-एनसीआर में ओला-उबर कंपनियां 250 से 300 किलोमीटर के लिए गाड़ियां रेंट पर दे रही है, जिससे लोग जयपुर, चंड़ीगढ़ और हरियाणा जाने के लिए खुद की कार निकालने के बजाय ओला और उबर की सर्विस को प्राथमिकता देने लगे हैं।
ऑटो सेक्टर में आई मंदी के लिए कुछ हद तक कार निर्माण में जुटी कंपनियों का कलकुलेशन भी जिम्मेदार हैं। कंपनियों ने बढ़ती मांग के आधार पर आपूर्ति के लिए साल दर साल कारों के प्रोडक्शन को बढ़ाने की योजना को तैयार करती हैं, लेकिन मांग घटने पर प्रोडक्शन कम कम करने के बजाय मंदी का रोना रोने लगती है। मांग और आपूर्ति के ऊपर ही पूरी अर्थव्यवस्था कामय है, लेकिन ऑटो सेक्टर में जुड़ी हुईं कंपनियों को मांग और आपूर्ति के साथ साथ कार ग्राहकों के चेंज ऑफ बिहैवियर और बदलते आप्सन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बदलते दौर में लोग बैग तक लेकर चलना पसंद नहीं करते है, कार लेकर कौन चलना पसंद करेगा।
हालात ये हैं कि सड़कों पर चलने वाले पांरपरिक टैक्सी और ऑटो चालक वालों को भी उबर और ओला की सर्विस के चलते खाली बैठना पड़ रहा है। सुखद और सुविधा के नाम पर कोई समझौता नहीं होने के चलते ज्यादातर लोग उबर और ओला की रेडियो टैक्सी की ओर शिफ्ट हो रहे हैं और घर में खरीदी हुई कारों को घर में सजा के लिए रखते हैं। इनई कारों की लांचिंग के समय कारों की बुंकिंग इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि लोग पुरानी कार बेंचकर सजावट के लिए नई लेना चाहते हैं।
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