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क्या कर्नाटक के बागी विधायक ठहराए जा सकते हैं अयोग्य, जानें क्या एंटी डिफेक्शन लॉ

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नई दिल्ली। कर्नाटक में सरकार के भविष्य का फैसला करने के लिए सबकी नजरें विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट पर टिकी हुईं हैं। वहीं कांग्रेस ने आज कहा कि संविधान की 10 वीं अनुसूची के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। गुरुवार को स्पीकर ने विधानसभा की कार्रवाई को शक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया। अब ऐसी चर्चा है कि, कांग्रेस अपने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराकर उन्हें झटका दे सकती है।

अगर विधायक को अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो...

अगर विधायक को अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो...

सामान्य रूप से विश्वास मत के पहले पार्टी अपने विधायकों को व्हिप जारी करती है। अगर विधायक उस दौरान उपस्थित नहीं होते हैं तो उन्हें अयोग्यता का सामना करना पड़ता है। अगर विधायक को अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो विचाराधीन विधायक मौजूदा विधानसभा के लिए उपचुनाव नहीं लड़ सकता है। वह वर्तमान विधानसभा में ना तो मंत्री बन सकता है और ना ही विधान परिषद का हिस्सा हो सकता है। हालांकि विधायक अगली विधानसभा के लिए चुनाव लड़ सकता है। विधायकों या सांसदों की अयोग्यता एंटी डिफेक्शन लॉ(दल-बदल विरोधी कानून) के तहत होती है। जिसे 'आया राम, गया राम सिंड्रोम' को रोकने के लिए लाया गया था।

क्या है संविधान की दसवीं अनुसूची?

क्या है संविधान की दसवीं अनुसूची?

दरअसल 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने एक दिन में दो दल बदले और 15 दिनों के भीतर तीन दलों में अंदर-बाहर हुए। जिसके बाद इस तरह की स्थितियों को रोकने के लिए दलबदल निरोधक कानून लाया गया। भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे लोकप्रिय रूप से 'दल बदल विरोधी कानून' कहा जाता है, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा लाया गया है। इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि संसद की स्थिरता बनी रहे।

यहां काम नहीं करता दल-बदल विरोधी कानून

यहां काम नहीं करता दल-बदल विरोधी कानून

यह मतदान उस स्थिति में काम नहीं करता है जब किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है और तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है। जैसा की हाल के दिनों में गोवा में देखने को मिला। जब कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक पार्टी को छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। उनकी संख्या एक तिहाई के नियमों को पूरी कर रही थी। जिसके चलते उन पर एंटी डिफेक्शन लॉ लागू नहीं हुआ। वहीं दूसरी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।

कर्नाटक के मामले में क्या कहता है एंटी डिफेक्शन लॉ

कर्नाटक के मामले में क्या कहता है एंटी डिफेक्शन लॉ

अब बात कर्नाटक के परिदृश्य की करें तो स्पीकर पर इस बागी विधायकों के इस्तीफों पर फैसला ना करने का आरोप लगा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को इस संबंध में फैसला लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी है, लेकिन साथ में यह भी कहा है कि, स्पीकर बागी विधायकों को विधानसभा आने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। बता दें कि ,वर्ष 2003 को संसद को 91वां संविधान संशोधन करना पड़ा, जिसमें व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि सामूहिक दल-बदल को भी असंवैधानिक करार दिया गया। इस संशोधन के ज़रिये मंत्रिमंडल का आकार भी 15 फीसदी सीमित कर दिया गया। हालाँकि, किसी भी कैबिनेट सदस्यों की संख्या 12 से कम नहीं होगी। इस संशोधन के द्वारा 10वीं अनुसूची की धारा 3 को खत्म कर दिया गया, जिसमें प्रावधान था कि एक-तिहाई सदस्य एक साथ दल बदल कर सकते थे।

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English summary
Can Karnataka congress rebels be disqualified, know all about Anti Defection Law
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