राजस्थान में कांग्रेस-बीजेपी के लिए चुनौती बन पाएगी बीटीपी? : ग्राउंड रिपोर्ट
बीते विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल जनसंख्या वाले दक्षिण राजस्थान में बीजेपी-कांग्रेस के प्रत्याशियों को पछाड़ते हुए दो सीटें जीतने वाली 'भारतीय ट्राइबल पार्टी' (बीटीपी) ने सबको चौंका दिया था.
राजधानी दिल्ली से क़रीब 800 किलोमीटर दूर, हम राजस्थान के आदिवासी ज़िले डूंगरपुर में हैं.
प्रदेश के इस दक्षिणी छोर पर छोटे से गांव उनराडा में सुबह-सुबह एक अहम चुनावी रैली शुरू हो रही है.
लेकिन बीजेपी-कांग्रेस की भव्य रैलियों से इतर, यहां स्थानीय आदिवासी प्रत्याशी एक पुरानी बोलेरो गाड़ी के दरवाज़े से लटककर 'जोहार हमारा नारा है, सारा देश हमारा है' का नारा लगाते हुए अपनी पार्टी के पर्चे गांव-गांव उड़ाते आगे बढ़ रहे हैं.
ये हैं राजस्थान के राजनीतिक क्षितिज पर हाल ही में उभरी 'भारतीय ट्राइबल पार्टी' के बांसवाड़ा प्रत्याशी कांतिलाल रोत.
भारतीय ट्राइबल पार्टी
बीते विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल जनसंख्या वाले दक्षिण राजस्थान में बीजेपी-कांग्रेस के प्रत्याशियों को पछाड़ते हुए दो सीटें जीतने वाली 'भारतीय ट्राइबल पार्टी' (बीटीपी) ने सबको चौंका दिया था.
इसी जीत के आधार पर बीटीपी ने लोकसभा चुनावों में भी दस्तक दी है. उसने बांसवाड़ा और उदयपुर जैसी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों और जोधपुर, जलोर और राजसमंद की सामान्य लोकसभा सीटों पर भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं.
बीटीपी स्थानीय आदिवासियों की आवाज़ बनकर उभरने की कोशिश कर रही है. वह बीजेपी और कांग्रेस के घमासान से दूर राजस्थान की आदिवासी जनता के सामने एक तीसरा विकल्प पेश करने की कोशिश कर रही है.
हमने बीटीपी के जनाधार वाली बांसवाड़ा-डूंगरपुर और उदयपुर की आदिवासी बहुल जनसंख्या वाली सीटों का दौरा किया और लोकसभा चुनाव में इस पार्टी के असर की पड़ताल की.
राजस्थान में पारा 43 डिग्री पार कर गया है लेकिन कड़ी धूप में भी कांति भाई रोत से मिलने आने वाले समर्थकों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा.
यहां उन्हें 'कांति भाई आदिवासी' नाम से पहचाना जाता है. कुछ ही मिनटों में उनके पैतृक गांव उनराडा से एक बाइक रैली शुरू होने वाली है.
इस बीच वह लगातार स्थानीय आदिवासियों से मिलते हैं और उनके साथ मिर्ची-रोटी खाते हैं. उनके गांव का एक बुज़ुर्ग एक हज़ार रुपये का चंदा लेकर आता है जिसे वह 'इससे डीज़ल डलवाऊँगा' कहते हुए अपनी जेब में रख लेते हैं और बुज़ुर्ग को धन्यवाद देते हैं.
थोड़ी देर में सैकड़ों मोटर साइकिलों और एक पुरानी बोलेरो गाड़ी पर 'भारतीय ट्राइबल पार्टी' के बांसवाड़ा प्रत्याशी कांतिलाल रोत का काफ़िला चुनावी रैली के लिए निकल जाता है.
बताया गया कि पैसों की कमी के कारण इस मोटर साइकल रैली में शामिल हर व्यक्ति अपनी गाड़ी के पेट्रोल के पैसे का ख़र्च ख़ुद उठा रहा है.
रास्ते में 'जय जोहार' के नारे लगाते हुए कांतिलाल का क़ाफ़िला गुजरात बॉर्डर के पास बिच्छिवाड़ा क़स्बे के खजूरी गांव पहुँचता है.
'आदिवासियों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते'
यहां 'एक ही तीर, एक कमान, एक आदिवासी, एक सम्मान' के नारों से गूंजती आदिवासियों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए कांतिलाल स्थानीय वोटरों से उनके लिए एक अलग 'भील प्रदेश' बनाने का वादा करते हैं.
रैली के दौरान बीबीसी से विशेष बातचीत में आदिवासियों को लोकतंत्र के पुराने अनुयायी बताते हुए वह कहते हैं, "जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान सभा में कहा था कि आदिवासियों को आप लोकतंत्र नहीं सिखा सकते. क्योंकि इस धरती पर अगर कोई सबसे पुराना लोकतांत्रिक है तो वह ट्राइबल लोग है. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस ने हमारे इसी लोकतांत्रिक स्वभाव का इस्तेमाल कर हमारा शोषण किया."
वो कहते हैं, "पहले लोगों के पास विकल्प नहीं था इसलिए इन पार्टियों को वोट जाता था. लेकिन आज जब इनकी अपनी पार्टी बीटीपी मैदान में हैं तो सारा ट्राइबल वोट सिर्फ़ हमें ही मिलेगा. क्योंकि अब ट्राइबल अपनी मर्ज़ी से वोट देगा."
गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी ज़िलों को मिलाकर क्षेत्र के आदिवासियों के लिए एक नए 'भील प्रदेश' की माँग करने वाली बीटीपी का कहना है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने आदिवासियों के हितों को सिरे से नज़रंदाज किया है.
"आज भी हमारे क्षेत्र में ऐसे गांव हैं जहां बिजली और साफ़ पानी नहीं पहुंचा है. कोई विकास नहीं हुआ है और ऊपर से वन अधिकार कानून समेत आदिवासियों से जुड़े कई क़ानूनों के साथ छेड़-छाड़ कर यह सरकार हमें आरक्षण के मूल अधिकार से भी दूर करना चाह रही है. और जब यह सब होता है कांग्रेस और बीजेपी में से कोई हमारी पैरवी नहीं करता. आरक्षित सीटों पर चुनकर गए सांसद भी नहीं. इसलिए अब यहां लोग बीजेपी को नहीं, भारतीय ट्राइबल पार्टी को वोट देंगे. और जो आदिवासी अब भी नरेंद्र मोदी की सरकार को वोट देगा वो आदिवासी संघ का पिछलग्गू है."
'लड़ाई आदिवासियों को आज़ाद कराने की'
हाल ही में उदयपुर स्थित मुस्लिम संस्था 'अंजुमन' के सदर के रूप में पहचाने जाने वाले मोहम्मद ख़लील को भारतीय ट्राइबल पार्टी ने राजस्थान का प्रदेश सचिव नियुक्त कर क्षेत्र के मुस्लिम वोटरों को भी लुभाने की कोशिश की है.
इस बारे में बात करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर वेलाराम घोघरा कहते हैं कि दक्षिण राजस्थान में मुस्लिम जनसंख्या के साथ साथ पिछड़ी जातियों के वोट भी उनकी नई आदिवासी पार्टी को मिलेंगे.
उनके मुताबिक, "यहां मुसलमान बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ठगा हुआ महसूस करते हैं. दोनों की बड़ी पार्टियों ने उनके मुद्दों को हमेशा दरकिनार किया है, ऐसे में भारतीय ट्राइबल पार्टी एक सहयोगी के तौर पर यहां के मुस्लिम साथियों का साथ देगी और उन्हें संरक्षण भी देगी. हमें पूरा विश्वास है कि यहां के मुस्लिम और पिछड़ी जातियों का समर्थन इस बार बीटीपी को मिलेगा."
खजूरी गांव की सभा समाप्त कर अगले पड़ाव की ओर निकलने से पहले कांतिलाल इतना कहते हैं कि उनकी लड़ाई आदिवासियों को आज़ाद करवाने की है.
"हमारे लोगों को आज तक ग़ुलाम बनकर रखा है. राजनीतिक दृष्टि से कहूं या धार्मिक दृष्टि से, बीजेपी और कांग्रेस ने हमें हमेशा ग़ुलाम बना कर रखा. इस बार चुनाव में हमारी लड़ाई हर तरह से आदिवासियों को आज़ाद करवाने की लड़ाई है."
बीजेपी की लहर
लेकिन चंदे और कार्यकर्ताओं की कमी के लिए संघर्ष करती इस साल भर पुरानी पार्टी के लिए जीत की राह आसान नहीं है. डूंगरपुर से कुल सौ किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल इलाक़े कोटड़ा में बीजेपी लहर साफ़ महसूस की जा सकती है.
कोटड़ा के छोटे से बाज़ार में सिलाई की दुकान चलाने वाली दीपा देवी कहती हैं, "मैं आदिवासी हूँ और मोदी जी को वोट दूंगी."
उनके साथ ही खड़ी लसरी देवी बताती हैं कि उनके घर में न तो उज्ज्वला स्कीम वाला गैस सिलिंडर पहुंचा है और न ही बिजली. फिर भी उन्होंने, "पिछली बार भी फुलवा (बीजेपी) को ही वोट दिया था और इस बार भी फुलवा को ही देंगी."
बीजेपी को वोट देने का कारण पूछने पर ये महिलाएँ सिर्फ़ इतना ही बता पाती है कि उनके 'घर में सब मोदी जी को ही वोट दे रहे हैं इसलिए वो भी देंगी.'
कोटड़ा से क़रीब बीस किलोमीटर आगे आदिवासी गांव भीलवन में रहने वाली दस्सू मज़दूरी करके अपना गुज़ारा करती हैं. दस्सू के पति घर में ही लोहे की कुल्हाड़ियां बनाकर परिवार के लिए चार पैसे जोड़ने का प्रयास करते हैं. राजस्थान के अंतिम छोर पर रहने वाला यह परिवार आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है.
55 वर्षीय दस्सू बताती हैं, "हमें बोरवेल और अच्छी सिंचाई व्यवस्था की ज़रूरत है ताकि हम ठीक से खेती कर सकें. और बोरवेल को चलाने के लिए गांव में बिजली की भी ज़रूरत है. बिना खेती के मुझे इस बुढ़ापे में इतनी धूप में मज़दूरी करनी पड़ती है. अब इस उम्र में मुझसे इतनी गरमी में मज़दूरी नहीं होती."
चुनाव के बारे में पूछने पर दस्सू का परिवार भी यही कहता है कि वोट तो वह 'फुलवा' यानी बीजेपी को ही डालेंगे.
कांग्रेस को वोट
भीलवन से तीस किलोमीटर आगे हम गुजरात बॉर्डर पर मौजूद बडली गांव पहुँचते हैं. यहां रहने वाले मेवाराम आदिवासी बताते हैं कि उन्होंने बीते विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को वोट डाला था और अब लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को ही वोट डालेंगे.
लेकिन अपने गांव पर छाए बीजेपी के प्रभाव पर वह जोड़ते हैं, "यहां आधे लोग बीजेपी को वोट देते हैं और आधे कांग्रेस को. हमारे गांव के आदिवासी वोटर दोनों पार्टियों के बीच मिले-जुले हैं. मैं कांग्रेस को इसलिए वोट दूँगा क्योंकि कांग्रेस सरकार में आने के बाद किसानों का कर्ज़ा माफ़ी किया और बूढ़ी महिलाओं की पेंशन भी बढ़ाई."
बीटीपी को समर्थन
उदयपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले कोटड़ा के बडली और भीलवन गांव में आज भी ज़्यादातर आदिवासी बीटीपी से परिचित नहीं हैं. लेकिन दूसरी ओर बांसवाड़ा सीट पर इस पार्टी के समर्थक बड़ी तादाद में मौजूद हैं.
खजूरी गांव से निकलते हुए हमारी मुलाक़ात कांतिलाल रोत की सभा को पंडाल के बाहर से खड़े होकर सुन रहे सूर्या प्रकाश गमेडी से होती है.
बीटीपी के बारे में पूछने पर वो बताते हैं, "मैं बीटीपी को सपोर्ट करना चाहता हूँ. क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां सालों से हम आदिवासियों की तकलीफ़ें देखती रही हैं. लेकिन देखने के सिवा उन्होंने हमारे लिए कभी कुछ नहीं किया. साफ़ पानी और ज़मीन जैसे हमारे बुनियादी मुद्दों पर भी कभी कोई सुनवाई नहीं हुई. इसलिए हमने अब हमारा अपना आदमी खड़ा किया है और हम उसे जिताकर दिल्ली भेजेंगे."
राजस्थान में उभर रही इस नई आदिवसी पार्टी का सूरज लोकसभा चुनावों में कितना चमकेगा, यह तो 23 मई के बाद साफ़ हो पाएगा. लेकिन हार हो या जीत, भारतीय ट्राइबल पार्टी के पास इस चुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं है.