बंगाल में TMC का वही हाल तो नहीं होने जा रहा, जो त्रिपुरा में लेफ्ट का हुआ?
नई दिल्ली- लोकसभा चुनाव 2019 के लगभग हर दौर में पश्चिम बंगाल (West Bengal) में हिंसा देखने को मिली है। ज्यादातर मामलों में खूनी हिंसा का आरोप वहां की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (Trinmool Congress-TMC) के कार्यकर्ताओं पर लगा है। यह भी तथ्य है कि उसके निशाने पर मुख्य तौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यकर्ता ही रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) या उनकी पार्टी का गुस्सा किसके खिलाफ है। इसका कारण ये है कि 2011 के विधानसभा चुनाव में जब दीदी ने 34 साल पुराने लेफ्ट फ्रंट (Left Front) की सरकार को सत्ता से बेदखल किया था, तब वहां बीजेपी (BJP) को महज 4 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन, 2018 के पंचायत चुनाव आते-आते बीजेपी बंगाल (West Bengal) की मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभर आई। इस बार इन दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में हो रही हिंसक झड़पें, वहां जमीनी स्तर पर बीजेपी (BJP) के बहुत मजबूती के साथ उभरने के एक बहुत बड़े संकेत के तौर पर लिया जाना चाहिए। ऐसे में इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि बंगाल वैसा परिणाम देगा, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर पा रहा है।
दोगुना हो सकता है बीजेपी का वोट शेयर?
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबरों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में इस दफे बीजेपी का वोट शेयर 16 फीसदी से दो गुना भी हो सकता है। यह वही बंगाल है, जहां 1977 से 2011 तक शासन करने वाले लेफ्ट फ्रंट (Left Front) का वोट शेयर 2011 में 40 फीसदी से गिरकर 25 फीसदी ही रह गया था और उसके अधिकतर वोट टीएमसी (TMC) की और शिफ्ट हो गया था। लेकिन, इस बार बंगाल की बदली राजनीति में भाजपा (BJP) को उसी बदले समीकरण का फायदा मिलने का अनुमान साफ तौर पर नजर आ रहा है।
लेफ्ट फ्रंट के साथ हुआ,तो टीएमसी के साथ भी हो सकता है
अगर पिछले 15 साल में बंगाल के बदले सियासी समीकरण को समझने की कोशिश करें तो टीएमसी (TMC) और लेफ्ट फ्रंट के सपोर्ट बेस में आए बदलाव को आसानी से महससू किया जा सकता है। राज्य में 30 फीसदी मुसलमान और 24 फीसदी दलित आबादी है। इन दोनों समुदायों पर पहले लेफ्ट फ्रंट की पकड़ थी, जो अब बहुत ही कम रह गया है। पिछले तकरीबन 8 वर्षों से इनमें से ज्यादातर पर दीदी का दबदबा कायम था। लेकिन, मौजूदा परिस्थितियों में अधिकतर मुसलमान वोट टीएमसी (TMC) के साथ हैं, जबकि दलितों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी की ओर झुकता हुआ देखा जा रहा है।
ममता ने लेफ्ट का वोट बेस ऐसे छीना था
ममता बनर्जी (Mamta Banerjee)ने राजनीतिक हथकंडों के अलावा कई कल्याणकारी योजनाओं के जरिए भी लेफ्ट का वोट बेस अपनी ओर कर लिया था। इनमें इमामों की मासिक सैलरी, किफायती आवास योजना (Nijoshree) और फूड सिक्योरिटी प्रोग्राम (खाद्य साथी) आदि शामिल हैं। इनमें से 'खाद्य साथी' का लक्ष्य करोड़ों गरीब हैं, जिन्हें टीएमसी एक तरह से अपना कोर वोटर मानकर चलती रही है। ऐसा करके ममता बनर्जी ने लेफ्ट फ्रंट को गरीबों और कामकाजी वर्ग (working class)की पार्टी से हटाकर खुद अपने लिए जगह बनाई है। लेकिन, बीजेपी ने पिछले दो वर्षों में इस बड़े वोट बैंक पर अपने सरकार की योजनाओं के माध्यम से इसमें भी सेंध लगाने की कोशिश की है।
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ममता की राजनीति से बीजेपी को ऐसे हुआ फायदा
टीएमसी और लेफ्ट फ्रंट के सोशल बेस में हुए बदलाव को बीजेपी ने अपने हक में करने का रास्ता ढूंढ़ लिया। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी के पक्ष में वोटरों की गोलबंदी के लिए उसका दो मुख्य आधार रहा है- धार्मिक और सामाजिक वर्ग। ममता की राजनीति से बीजेपी को मिडिल क्लास हिंदू, शहरों में रहने वाला बंगाली समाज और गांवों में रहने वाली अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) एवं अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) को काफी संख्या में अपने साथ जोड़ने का मौका मिला है और उसने इसमें काफी सफलता भी पाई है।
क्या बंगाल में त्रिपुरा दोहरा सकेगी बीजेपी?
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले त्रिपुरा में बीजेपी की मौजूदगी को किसी ने सीरियसली नहीं लिया था। जब चुनाव नतीजे आए तो सब हैरानी में पड़ गए थे। तब उसने तीन दशकों से पुरानी लेफ्ट फ्रंट सरकार को उखाड़कर राजनीतिक विश्लेषकों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन, 2014 में बीजेपी को पश्चिम बंगाल में सिर्फ 2 सीटें मिली थीं। इस आधार पर लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि बीजेपी के लिए बंगाल में त्रिपुरा दोहराना इतना आसान रहेगा। ये भी सच है कि एरिया के हिसाब से बंगाल की तुलना त्रिपुरा से नहीं की जा सकती। ऐसे में लोग बंगाल में बीजेपी को दहाई अंक में भी सीटें देने की कल्पना नहीं करना चाहते। लेकिन, पश्चिम बंगाल में लेफ्ट फ्रंट का जनाधार पूरी तरह से खत्म होने और कांग्रेस के गैर-मुस्लिम वोट बैंक के बीजेपी में शिफ्ट होने की संभावानाएं भी खारिज नहीं की जानी चाहिए। त्रिपुरा में भी कांग्रेस के साथ ऐसा हो चुका है। इस हकीकत से भी इनकार नहीं करना चाहिए कि टीएमसी (TMC) समर्थकों का एक वर्ग ऐसा है, जो ममता सरकार के रवैये से बहुत ही असंतुष्ट है। अगर ऐसे सारे वोट को जोड़ें तो उनका आंकड़ा 35% प्रतिशत की सीमा को पार कर जाता है, जिसे सीटों में बदलें, तो नतीजे चौंकाने वाले होने की पूरी गुंजाइश है। वैसे यह देखना ज्यादा दिलचस्प होगा कि बीजेपी अपना मिशन बंगाल 2019 में ही पूरी तरह से पूरा कर लेती है, कि उसे 2021 तक और इंतजार करना पड़ेगा?
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