शराबबंदी वाकई लागू की जा सकती है?
दिसंबर 2017 में आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले के निडामर्रु गांव में 55 साल की वरालक्ष्मी समेत 25 महिलाएं धरने पर बैठी थीं. इनकी मांग थी कि इनके गांव में शराब की दुकान नहीं होनी चाहिए. इसके बाद इन्होंने गांव के एक तालाब में छलांग लगा दी. आज इस गांव के आस-पास कोई भी शराब की दुकान नहीं है. वरालक्ष्मी कहती हैं, "हमने 16 दिनों तक प्रदर्शन किया.
दिसंबर 2017 में आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले के निडामर्रु गांव में 55 साल की वरालक्ष्मी समेत 25 महिलाएं धरने पर बैठी थीं. इनकी मांग थी कि इनके गांव में शराब की दुकान नहीं होनी चाहिए. इसके बाद इन्होंने गांव के एक तालाब में छलांग लगा दी.
आज इस गांव के आस-पास कोई भी शराब की दुकान नहीं है.
वरालक्ष्मी कहती हैं, "हमने 16 दिनों तक प्रदर्शन किया. लगभग 40 महिलाओं ने इसमें भाग लिया. हमने अपना संयम खोते हुए घोषणा कर दी कि हम मरने जा रहे हैं और हमने मछली के तालाब में छलांग लगा दी."
महिलाएं पड़ोसी गांव का उदाहरण देख चुकी थीं जहां बूढ़ों समेत कॉलेज जाने वाले लड़के तक शराबी हो चुके थे. वरालक्ष्मी कहती हैं कि इसी कारण महिलाएं शराब के ख़िलाफ़ सड़कों पर आईं.
यह अनोखी घटना केवल निडामर्रु तक सीमित नहीं रही बल्कि साल 2018 में अचायम्मा नामक महिला के नेतृत्व और चिवातम गांव के लोगों के कारण ज़िले की 10 शराब की दुकानें बंद हुईं.
वरालक्ष्मी और अचायम्मा जैसी कई महिलाएं कई सालों से शराब के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं.
वरालक्ष्मी याद करते हुए कहती हैं, "मैंने मुख्यमंत्री एनटी रामा राव के आगे राज्य में शराबबंदी के लिए प्रदर्शन किया. मैंने अपनी आंखों से बदलाव देखा है. शराबबंदी के बाद गांव ख़ुशहाल हैं. आज वह बच्चों की शिक्षा या दूसरे ज़रूरी सामानों पर पैसा ख़र्च करते हैं."
शराबबंदी आंदोलन कई सालों पहले शुरू हुआ था जो हालिया आंध्र प्रदेश चुनावों का अहम बिंदु बन चुका था. राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने सरकार का रोडमैप जारी किया था जिसमें पूरे राज्य में दो अक्तूबर 2019 से शराबबंदी लागू की गई थी.
चरमबद्ध तरीक़े से होगी शराबबंदी
नई शराब नीति के अनुसार, एक अक्तूबर 2019 से शराब की दुकानें आंध्र प्रदेश बेवरेजस कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा संचालित की जाएंगी. राज्य में शराब की दुकानें 20 फ़ीसदी तक घटाई जाएंगी. पहले इनकी संख्या 4,380 थी जो अब 3,500 हो चुकी हैं.
इसके अलावा शराब की दुकानों का समय सुबह 10 बजे से रात 11 बजे की जगह सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक होगा. इसके साथ ही 'परमिट रूम' सुविधा को भी हटा दिया गया है.
सरकारी अधिकारी ने यह घोषणा की कि वे गांवों में सभी शराब की दुकानों को बंद कर चुके हैं. यहां तक कि शराब पर लगाए गए उत्पाद शुल्क को भी बढ़ाया गया.
जन चैतन्य वेदिका से जुड़े वी लक्ष्मण रेड्डी कहते हैं कि सरकार शराब की दुकानें चलाती है तो वह गांवों में शराब की दुकानों के चलन को बढ़ावा नहीं देती. लक्ष्मण रेड्डी ने आंध्र प्रदेश सरकार को शराबबंदी की नीति का ड्राफ़्ट जमा किया है.
वे कहते हैं, "सरकार द्वारा नियुक्त किए गए कर्मचारी सरकारी दुकानों में काम करेंगे. तो इस वजह से अधिकतम खुदरा मूल्य के उल्लंघन का सवाल नहीं उठता है. इसके साथ ही शराब की ग़ैर-क़ानूनी बिक्री या अधिक मुनाफ़ा कमाने का सवाल नहीं है."
यह मॉडल पहले ही दिल्ली, तमिलनाडु, केरल और राजस्थान में अपनाया जा रहा है. सरकार इन राज्यों में शराब की दुकानें चलाती है.
केरल स्टेट बेवरेजस कॉर्पोरेशन का कहना है कि इस साल 3 सितंबर से 10 अक्तूबर के बीच राज्य में 487 करोड़ रुपये की शराब की बिक्री हुई. पिछले साल इसी समय में 457 करोड़ रुपये की शराब की बिक्री हुई.
साल 2014 में केरल की यूडीएफ़ सरकार ने शराबबंदी को लेकर अधिसूचना जारी की थी. इसके परिणामस्वरूप राज्य में 713 बार बंद हुए थे. सरकारी दुकानों में शराब की बिक्री सीमित है और रविवार को ड्राई डे घोषित है.
हालांकि, 2018 में केरल की वामपंथी सरकार ने इस अधिसूचना को वापस ले लिया और कुछ नियमों को नरम कर दिया.
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था, "शराबबंदी के परिणाम पूरी दुनिया में सकारात्मक नहीं रहे हैं. शराबबंदी के कारण अवैध शराब और ड्रग्स के आदी होने का ख़तर बढ़ सकता है. इसके साथ ही काला बाज़ारी को भी बढ़ावा मिलेगा. इसी कारण शराब के व्यापार को प्रतिबंधित करने के बजाय सरकार के नियंत्रण में रखना समझदारी है."
तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन राज्य में शराब की दुकानों का संचालन करता है. जयललिता सरकार ने 2003 में इसका फ़ैसला लिया था. यह कॉर्पोरेशन आज 5,152 दुकानों का संचालन करता है. तमिलनाडु ने 2014-15 में शराब से 24,164 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया था जो 2018-19 में बढ़कर 31,157 करोड़ रुपये हो गया.
किन राज्यों में पूर्ण रूप से है शराबबंदी
गुजरात, बिहार, मिज़ोरम और नागालैंड में पूर्ण रूप से शराबबंदी है. 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू हुई. बिहार आबकारी और निषेध अधिनियम 2016 के तहत पटना हाई कोर्ट में इस साल 8 जुलाई तक 2.08 लाख मामले दायर किए गए थे. जिसमें से केवल 2,629 मामलों पर सुनवाई पूरी हुई थी.
सितंबर 2019 में बिहार सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि इस अधिनियम के तहत 1.67 लाख लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.
शराबबंदी के प्रयोग
हरियाणा ने भी 1996 में राज्य में शराबबंदी का प्रयोग किया था. लेकिन 1998 में इसे हटा लिया गया. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि शराबबंदी के दौरान प्रदेश राजस्व के मामले में 1200 करोड़ रुपये पीछे चला गया.
1993 में आंध्र प्रदेश में भी शराबबंदी को लेकर प्रयोग किए गए.
अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की राज्य सचिव रमादेवी के मुताबिक, "1993 में जब राज्य की महिलाओं ने नेल्लोर ज़िले के कलेक्ट्रेट में नीलामी प्रक्रिया में बाधा डाली तब वहां से यह आंदोलन शुरू हुआ."
वो कहती हैं, "महिलाओं का केवल एक ही नारा था. कई लोगों को शराब से प्रभावित हुए, कई परिवार बर्बाद हो गए. जब नेल्लोर में यह प्रदर्शन हुआ तो नीलामी को बंद करना पड़ा. वहां से शुरू होकर यह आंदोलन कृष्णा, गुंटूर और कई अन्य ज़िलों में फ़ैल गया. एनटी रामा राव ने अपने चुनावी घोषणापत्र में शराबबंदी का वादा किया. 1994 में जीत के बाद जो उन्होंने पहली फ़ाइल साइन की वो थी राज्य में पूरी तरह से शराब पर प्रतिबंध लगाने की."
लेकिन सितंबर 1995 में सत्ता की चाबी चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आई और 1997 में उन्होंने केवल 16 महीने पहले शराब पर लगाए गए प्रतिबंध को ख़त्म कर दिया. अधिकारियों के मुताबिक इन 16 महीनों में राज्य को 1200 करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हुआ था.
लेकिन रमादेवी कहती हैं कि चंद्रबाबू नायडू ने राजस्व में हो रहे घाटे की भरपाई के लिए इसे हटा तो लिया लेकिन इससे उन्होंने जनकल्याण की पूरी तरह अनदेखी की.
वे कहती हैं, "जब शराबबंदी हुई तो लोगों को इस बदलाव में खुद को ढालने में थोड़ा वक्त लगा. इस दौरान कुछ लोगों की गुडुंबा (काले गुड़, यूरिया, सड़े-गले फल, चंदन की जली लकड़ी और कई अन्य हानिकारक रसायन के मिश्रण से बनी शराब), अवैध अर्क इत्यादि पीकर मौत हो गई. लिहाज़ा सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया. लेकिन वास्तव में सच्चाई यह थी कि जिन दिनों शराबबंदी लागू थी तो अपराध दर, विशेष कर महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा में बहुत कमी आ गई थी. तब हमें कई ऐसे उदाहरण देखने को मिले."
शराब की बिक्री और राजस्व
आंध्र प्रदेश ने इससे 2018-19 में 6,222 करोड़ का राजस्व कमाया जबकि पूरे राज्य की कमाई 1,05,062 करोड़ रुपये थी. लेकिन विभाजन से राज्य पर 16 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज भी चढ़ गया. हालांकि, आबकारी के अधिकारियों के कहना है कि इसका तुरंत कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा क्योंकि एक अनुमान के मुताबिक 2019-20 में आबकारी से 8,818 करोड़ रुपये का राजस्व आने की संभावना है.
रिज़र्व बैंक ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कहा कि जीएसटी के लागू किए जाने के बाद से राज्य सरकारों के राजस्व में पेट्रोल की बिक्री पर लगाए जाने वाले टैक्स से 15-16% और आबकारी की कमाई से अपने राजस्व का 10-15% इकट्ठा करती हैं.
नई आबकारी नीति को लेकर आंध्र प्रदेश में शराब उद्योग से जुड़े बड़ी कारोबारियों की प्रतिक्रियाएं नपी तुली रहीं. आंध्र प्रदेश में जुलाई 2019 में आए यूनाइटेड स्पिरिट्स के नतीजों के दौरान इस पर बात की गई. यूनाइटेड स्पिरिट्स शराब के कई ब्रांड बनाती है. आंध्र प्रदेश के राजस्व में उससे 3-4 फीसदी कमाई होती है.
यूनाइटेड स्पिरिट्स के प्रबंध निदेशक आनंद कृपालु कहते हैं, "यह पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है और सरकार का निर्णय स्वागत योग्य कदम है. वर्तमान सरकार ने खुदरा व्यापार अपने हाथों में ले लिया है. सरकारी ठेकों के ज़रिए यूनाइटेड स्पिरिट्स के ब्रांड की बिक्री बहुत कम होती है."
उनका कहना है कि, "यह नीति पहले ही कई राज्यों में लागू है. हम उन राज्यों से सीखने की कोशिश करेंगे. फिलहाल उत्पाद शुल्क में भी वृद्धि हुई है. वाइन बेल्ट की दुकानें बंद कर दी गई हैं. इस संदर्भ में, अगर हम सरकारी शराब की दुकानों को लेकर सही रणनीति बनाते हैं तो आंध्र प्रदेश में अब भी हमारे लिए बहुत संभावनाएं हैं."
वहीं एक अन्य कंपनी रेडिको खेतान लिमिटेड ने 2018-19 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि शराब पर प्रतिबंध से देश में बनने वाली विदेशी शराब (आईएफएमएल) पर विपरीत असर पड़ेगा.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "इतिहास बताता है कि शराबबंदी भारत में लंबे वक्त तक नहीं चली. जीएसटी आने के बाद शराब से होने वाला राजस्व राज्य सरकारों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है."
क्या शराबबंदी का फायदा पड़ोसी राज्यों को मिलेगा?
तेलंगाना में शराब बेचने के लाइसेंस के लिए आवेदन करने की अंतिम तारीख़ 16 अक्तूबर को ख़त्म हो चुकी है. राज्य के आबकारी उपायुक्त सी विवेकानंद रेड्डी कहते हैं कि बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष आवेदनों की संख्या 10 गुनी बढ़ गई है.
वे कहते हैं, "कई नए व्यापारियों ने लाइसेंस पाने के लिए आवेदन पत्र लिया है. पहले तीन दिनों में ही लोगों का रिस्पॉन्स बहुत अच्छा था."
"सबसे अधिक आवेदन सीमावर्ती ज़िलों नालगोंडा, महबूबनगर और खम्मम से आए हैं. शराब की दुकान का लाइसेंस फ़ीस 2 लाख रुपये है. राज्य में शराब की कुल 2,216 दुकानें हो जाएंगी."
राजनीतिक एजेंडा बनाम सामाजिक परिवर्तन
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के रिसर्च के मुताबिक यह पता चला है कि 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं. उनमें से 3 करोड़ लोगों को शराब की लत है. इन तीन करोड़ लोगों में 6 फ़ीसदी आंध्र प्रदेश की आबादी से हैं.
आज की तारीख़ में शराब की लत छुड़ाने वाले राज्य में केवल एक ही सरकारी नशामुक्ति केंद्र मौजूद हैं. लक्ष्मण रेड्डी कहते हैं कि इस संख्या को बढ़ाए जाने की ज़रूरत है.
ऐसा नहीं है कि आंध्र प्रदेश वो पहला राज्य है जहां शराबबंदी को लेकर मुहिमें चलाई गई हैं. इससे पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक में शराबबंदी को लेकर आवाज़ें उठी थीं.
महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की आत्महत्या के संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को 2015 में लिखी अपनी चिट्ठी में शराब की लत को इन आत्महत्याओं की एक वजह बताया था.
वहीं कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले कई जगहों पर महिलाओं ने शराबबंदी को लेकर मोर्चा खोल लिया. उन्होंने शराबबंदी को राजनीतिक दलों की घोषणापत्र में शामिल करने की मांग करते हुए कहा कि ऐसा नहीं किए जाने पर वो वोट नहीं देंगी.
वरलक्ष्मी और अच्यम्मा कहती हैं कि आंध्र प्रदेश सरकार का फ़ैसला इसे कैसे लागू किया जाता है उस पर निर्भर करता है.
मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क मंत्री नारायण स्वामी कहते हैं कि शराब बेल्ट की दुकानों के संचालन को लेकर 2,872 और इसी तरह अवैध शराब बनाने के 4,788 मामले दर्ज किए गए.
अच्यम्मा कहती हैं, "अगर सरकार तय समयानुसार शराब की दुकानें चलाती हैं तो यह पर्याप्त होगा. गांवों में शराब न मिलने पर वहां इसकी खपत में निश्चित ही थोड़ी कमी ज़रूर होगी. अगर पूरे जतन से इसे लागू करने का प्रयास किया गया तो वही काफी होगा."