बर्खास्त हो सकती हैं सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने वाली चारो राज्य सरकारें!
बेंगलुरू। संसद के दोनों सदनों में पारित और राष्ट्रपति की मुहर के बाद गजेटेड हुई नागरिकता संशोधन एक्ट पर देश के नागरिकों में भ्रांतियां फैलाने और राजनीतिक रोटियां सेंकने की लगातार कोशिश हो रही है। पहले केरल, फिर पंजाब, फिर राजस्थान और पश्चिम बंगाल में सीएए के खिलाफ विधानसभा में पास किया प्रस्ताव पूरी तरह से असंवैधानिक है। यह महज राजनीतिक दलों का एक सियासी दांव कहा जा सकता है, जो झूठ के पुलिंदों से इतर कुछ नहीं हैं।
यह इसलिए क्योंकि केंद्रीय सूची में संबद्ध नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ किसी भी राज्य को अधिकार ही नहीं है कि वो उसके खिलाफ प्रस्ताव ला सके। अगर कोई राज्य सरकार ऐसा करता है, तो असंवैधानिक प्रक्रिया माना जाएगा और ऐसी सरकारों को केंद्र सरकार द्वारा बर्खास्त भी किया जा सकता है।
संवैधानिक दृष्टि से किसी भी राज्य के पास से सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास करने और सीएए लागू नहीं करने का अधिकार नहीं है। इसकी पुष्टि खुद पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी कर दी है। एक बयान जारी कर सिब्बल ने उन राज्य सरकारों की आंखें खोलने की कोशिश की है, जो सीएए (नागरिकता संसोधन विधयेक) के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव ला चुकी है अथवा प्रस्ताव लाने का विचार कर रही हैं।
माना जा रहा है कि राज्य सरकारें सीएए के खिलाफ उठे आंदोलन में राजनीतिक रोटियां सेंकने और बीजेपी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए यह आत्मघाती कदम उठा रही है, क्योंकि उनका मानना है कि एक साथ चार राज्यों की सरकारों बर्खास्त करने से मोदी सरकार जरूर हिचकेगी।
गौरतलब है सबसे पहले केरल की लेफ्ट सरकार की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन ने विधानसभा में प्रस्ताव पास किया, जिसे केरल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने असंवैधानिक करार देते हुए मंजूरी नहीं, तो केरल सरकार ने 15 राज्यों से समर्थन हासिल करने के लिए पत्र भेजा।
दिलचस्प बात यह है कि केरल सरकार ने बिहार में भी सीएए के खिलाफ समर्थन पत्र भेजा था, जहां बीजेपी-जदयू की गठबंधन सरकार है। सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लाने वाला दूसरा राज्य थी पंजाब, जहां अभी कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार है।
हालांकि संवैधानिक हैसियत पता होने के बावजूद केरल और पंजाब सरकारों ने सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है। ऐसा करके दोनों राज्य सरकार भारतीय संविधान के विरूद्ध जा चुकी हैं, लेकिन यह सब सोची और समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है।
इस मुहिम राजस्थान में कांग्रेस सरकार नेतृत्व कर रहे अशोक गहलोत और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हो गए हैं, क्योंकि दोनों राज्य सरकारों ने भी सीएए के खिलाफ अपने-अपने विधानसभा में प्रस्ताव पास करवाया है। राज्य सरकारें मोदी विरोध में शुरू की गई यह भेड़चाल जाने-अनजाने देश में असंवैधानिक परिस्थितियों को पैदा कर दिया है।
हैरानी की बात यह है कि इसी भेड़ चाल में पिछले दो महीने से पूरे देश में सीएए को लेकर त्राहिमाम मचा हुआ है, जबकि कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सदन और सदन के बाहर लोगों को भरोसा दिलाया गया कि सीएए भारतीय नागरिकों के खिलाफ नहीं है, यह कानून नागरिकता छीनने के लिए नहीं बल्कि नागरिकता देने के लिए है।
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नागरिकता संशोधन कानून के बारे में जानकारी ऑनलाइन मुफ्त उपलब्ध
एक खुली किताब नागरिकता संशोधन कानून के बारे में पूरी जानकारी ऑनलाइन मुफ्त उपलब्ध है, जिसे आसानी से कोई भी पढ़कर अपनी जानकारी बढ़ा सकता है कि सीएए आखिर बला क्या है, लेकिन अभी तक जारी अंध विरोध के देखते हुए स्पष्ट हो चुका है कि सीएए का विरोध व्यक्तिगत नहीं बल्कि राजनीतिक हैं। दिल्ली के शाहीन बाग में जारी धरना प्रदर्शन का सच बाहर आ चुका है। शाहीन में जारी धऱने का सच ठीक वैसा है जैसा जामिया कैंपस में सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन था।
दिल्ली के डिप्टी CM ने झूठी तस्वीर जारी कर दंगा भड़काने की कोशिश की
सीएए की आड़ में वोट बैंक की सियासी रोटियां सेंकने के लिए दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया द्वारा झूठी तस्वीर जारी करके दंगा भड़काने की कोशिश की गई और जब तस्वीर की सच्चाई सामने आई तो उन्हें अपना मुंह छुपाना पड़ गया। इसी तरह AAP विधायक अमानतुल्ला खान द्वारा भीड़ को भड़काने वाले वायरल वीडियो और जामिया कैंपस में मिले फर्जी आईडी कॉर्ड चीख-चीख कर गवाही दे चुके हैं कि जामिया प्रोटेस्ट की तरह शाहीन बाग एक प्रायोजित धऱना है, जिसकी फंडिंग के तार सियासी और असमाजिक तत्वों से जुड़ा सकता है। अभी हाल में ईडी ने पीएफआई संस्था द्वारा सीएए विरोध-प्रदर्शनों को फंडिंग का खुलासा किया गया है।
ईडी ने किया खुलासा सीएए हिंसा के पीछे देशविरोधी ताकतों का हाथ
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ यूपी में हुई हिंसा के पीछे देशविरोधी ताकतों का हाथ था। जांच में पता चला है कि हिंसा वाले इलाकों से केरल के संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का आर्थिक लेनदेन हुआ था। ईडी ने कांग्रेस के सीनियर लीडर और सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल पर सीएए विरोधी प्रोटेस्ट के लिए पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया से पैसे लेने का आरोप लगाया, जिसका कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और पीएफआई दोनों द्वारा खंडन किया गया है।
वकील इंदिरा जयसिंह और कपिल सिब्बल पर PFI से पैसा लेने का आरोप
सूत्रों के मुताबिक, संसद से सीएए कानून पास होने के बाद पश्चिमी यूपी के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा की गई थी। पीएफआई और इससे जुड़े संगठन रेहाब फाउंडेशन ऑफ इंडिया (आरएफआई) व कुछ अन्य लोगों के नाम से खोले गए खातों में यह रकम विदेशी स्रोतों और कुछ निवेश कंपनियों के मार्फत भेजी गई। जांच एजेंसी को शक है कि इसी रकम का इस्तेमाल यूपी में हिंसक प्रदर्शनों के लिए हुआ था। इन हिंसक वारदातों में 20 जानें गई थीं। ईडी ने यह रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेज दी है।
केंद्रीय सूची में निर्मित किसी को कानून को चुनौती दे सकते हैं राज्य
सीएए की संवैधानिकता और राज्यों पर सीएए के अधिकारों की समीक्षा के बाद पता चला है कि सीएए को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए गए दावे महज एक झूठ के पुलिंदे हैं, क्योंकि राज्य सरकारों को अधिकार ही नहीं है कि वो केंद्रीय सूची में निर्मित किसी को कानून को चुनौती दे सके या उसके खिलाफ विधानसभा मे कोई प्रस्ताव पास कर सके। रही बात सीएए राज्यों में नहीं लागू करने की घोषणाओं की तो यह भी कोरी राजनीति है, क्योंकि नागरिकता से जुड़ा कोई कानून बनाने और लागू करने का अधिकार सिर्फ संसद को है, जिसके खिलाफ चर्चा करने, प्रस्ताव करने और लागू नहीं करने का अधिकार राज्यों को हासिल ही नहीं हैं।
भारत का नागरिक कौन होगा, यह तय करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र को
संविधान विशेषज्ञों का मत है कि सीएए पूरी तरह से केंद्र सरकार का विषय है। इस पर राज्य कोई फैसला ले ही नहीं दे सकते। उनका कहना है कि भारत का नागरिक कौन होगा, यह तय करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को है न कि राज्यों सरकार को। देश के पूर्व कानून आयोग के मुताबिक नागरिकता शुरू से ही केन्द्र की सूची में शामिल रही है। नागरिकता से जुड़े किसी भी नियम में बदलाव का आधार और अधिकार केवल केन्द्र का ही है, जिसमें किसी तरह का बदलाव राज्य सरकारों को करने का अधिकार ही नही हैं।
राज्य सरकारें सीएए कानून लागू करने से इनकार कर सकती है
संविधान विशेषज्ञों के शब्दों में कहें तो सीएए लागू नहीं करने की घोषणा कर चुकी राज्य सरकारों को थक-हारकर संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित सीएए कानून को अपने राज्यों को लागू करना ही होगा, क्योंकि सीएए को लेकर किसी भी राज्य सरकार के पास बस इतना अधिकार नहीं है कि वो उसको राज्यों में लागू करने से इनकार कर सकती है। हालांकि कानून व्यवस्था को लेकर राज्य सरकारें केंन्द्र सरकार से अपनी नाराजगी दिखा सकती हैं, लेकिन सीएए को लागू करने से बिल्कुल भी इनकार नहीं कर सकती है, क्योंकि ऐसा करके राज्य सरकारें देश के संविधान का अपमान करेंगी और राज्यपाल की सिफारिश में ऐसी राज्य की सरकारें बर्खास्त भी की जा सकती है।
संसद द्वारा पारित कानून को लागू करने से मना नहीं कर सकते राज्य
सीएए के बार में पूर्व कानून सचिव पीके मल्होत्रा का कहते हैं कि संसद द्वारा पारित कानून को लागू करने से राज्य सरकारें मना नहीं कर सकती हैं। यह संविधान की सातवीं अनसूची की सूची 1 में इसका उल्लेख है। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को नागरिकता देना केन्द्र का मामला है, राज्यों की इसमें कोई भूमिका नहीं है। वरिष्ठ वकील हेगड़े ने बताया कि अगर केन्द्र सरकार नागरिकों के लिए पूरे देश में नेशनल रजिस्टर बनाती है तो ही इसे लागू कराने में राज्यों की मदद की जरूरत पड़ सकती है, जिसे हम अभी एनआरसी के रूप मे जानते है, जो असम में सबसे पहले लागू किया जा चुका है।
नागरिकता, जनगणना व जनसंख्या से जुड़े मामलों केंद्रीय सूची में हैं
केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता, जनगणना और जनसंख्या से जुड़े मामलों को संविधान की केंद्रीय सूची में रखा गया है। इसका मतलब यह है कि इन मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है। संविधान के अनुच्छेद 11 में भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि नागरिकता को लेकर कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय संसद को है। दरअसल, संसद द्वारा पारित कानून को रोकने का अधिकार राज्यों की विधानसभाओं के पास है ही नहीं। ऐसा माना जा रहा है कि जैसे-जैसे लोगों में सीएए की वैधानिकता और सीएए के बारे जागरूकता बढ़ेगी विपक्षी दलों का विरोध बहुत जल्द ठंडा पड़ जाएगा।
गैर-बीजेपी शासित सरकार वाले राज्यों में जानबूझकर सीएए का विरोध
यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि गैर-बीजेपी शासित सरकार वाले राज्यों में जानबूझकर सीएए का विरोध किया जा रहा है। जबकि नागरिकता संशोधन कानून के पास होने से पहले सभी राज्यों से बातचीत कर ली गई थी। नियमानुसार, राज्यों से बातचीत करने के बाद ही नागरिकता (संशोधन) बिल संसद में पेश किया जाता है। राज्यों की विधानसभाएं सिर्फ राज्य सूची के विषयों पर ही कानून बनाने का अधिकार रखती हैं। संविधान के अनुच्छेद 245 और 246 में भी संसद के कानून बनाने की शक्ति का विस्तार से जिक्र किया गया है। इस बाबत आम जनता को बताया जाएगा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को देश की संसद ने पारित किया है। इसमें कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा किसी भी तरह की कोई रोक नहीं लगा सकती। अगर केरल या कोई अन्य राज्य नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ कोई प्रस्ताव लाते हैं तो वो असंवैधानिक है।
राज्य सरकारें सीएए के खिलाफ सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकारें सिर्फ सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ तभी फैसला सुनाएगा, जब वह सीएए को संविधान या मौलिक अधिकारों के खिलाफ पाएगा। इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून को खत्म करने या इसमें परिवर्तन करने का कोई विकल्प नहीं है। अंततः सभी गैर-बीजेपी शासित राज्यों को नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करना ही होगा। इनमें पंजाब और केरल की सरकारें भी शामिल हैं, जो सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास कर चुकी हैं। केरल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने केरल सरकार के प्रस्ताव की वैधानिकता पर सवाल उठाया तो खिसियाए केरल के मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन अब सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख कर चुके हैं।