जानिए, कैसे CAA का विरोध करके आप अल्पसंख्यकों पर हुई प्रताड़ना को सही ठहरा रहें हैं?
बेंगलुरू। नागरिकता संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिली मंजूरी को अब करीब महीना बीत चुका है, लेकिन संशोधित कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन अभी तक नहीं थमा है। विशुद्ध रूप से राजनीतिक दलों के प्रश्रय में सीएए के खिलाफ जारी विरोध- प्रदर्शन में अब तक काफी जान और माल का नुकसान हो चुका है।
अफसोस की बात यह है कि सीएए के विरूद्ध भ्रांतियों और गलतफहमियों के शिकार क्या आम और क्या खास सभी हुए और अभी तक सीएए के खिलाफ विरोधी रूख अपनाए हुए हैं जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और PM नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार सीएए पर सफाई के बावजूद गुमराह लोग प्रदर्शन को मजबूर हैं।
लोकतांत्रिक अधिकारों की आड़ में पूरे देश में कराए जा रहे विरोध-प्रदर्शन सियासी ही नहीं, असामाजिक तत्वों का अड्डा भी बन चुका है। जामिया यूनीवर्सिटी कैंपस में मिले 560 से अधिक फर्जी पहचान पत्र की इसकी तस्दीक करते हैं, जिन्होंने छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक बना दिया।
दिल्ली पुलिस ने जामिया कैंपस में उपद्रव करने वाले 10 ऐसे बाहरी लोगों को गिरफ्तारी भी करने में कामयाब रही। सियासी दल भी लोकतांत्रिक तरीकों से हो रहे धरने में राजनीतिक रोटियां सेंकने में पीछे नहीं रहीं। दिल्ली में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने एक फर्जी फोटो ट्वीट करके दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया।
डिप्टी सीएम सिसोदिया का आरोप था कि जामिया कैंपस में छात्रों के शांतिपूर्ण धरने को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस के एक जवान पर डीटीसी बस में पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने की कोशिश की। सिसोदिया का आरोप था कि दिल्ली पुलिस बीजेपी के इशारे से यह काम कर रही है ताकि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में फायदा मिल सके।
लेकिन एक वीडियो में सच खुलासा हो गया तो डिप्टी सीएम को हिंसा भड़काने वाला अपना ट्विट वापस लेना पड़ गया। सीएए के खिलाफ जामिया कैंपस में की गई हिंसा में आप विधायक अमानतुल्ला खान की संदिग्ध भूमिका का खुलासा भी एक वीडियो के जरिए हुआ, जिसमें वो भीड़ को सीएए के खिलाफ उकसाते हुए नजर आए।
राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी में सीएए के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों की आड़ में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों ने खूब फायदा उठाया। कैंपस में गोलियां चली, जल्द ही साफ हो गया कि चलाई गईं गोलियां दिल्ली पुलिस की रायफल की नहीं थी। सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन के बीच कुछ ऐसी आवाजें भी उठी, जो समुदाय विरोधी ही नहीं, देश विरोधी भी थी।
जामिया और एएमयू में सीएए के विरोध में भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ नारे उछाले गए। इनमें एक नारा था, 'हिंदुओं की कब्र खुदेगी एएयू की छाती पर' नारा बनाने वाले और उसको दोहराने वाले इस नारे के जरिए क्या संदेश दे रहे थे, यह शोध का विषय है।
सबसे बड़ा सवाल ऐसे हिंसा को दावत देने वाले नारे से सीएए का क्या संबंध और सरोकार था। सीएए में किसी भी भारतीय नागरिकों की सिटीजनशिप छीनने का प्रावधान नहीं है। फिर चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम अथवा सिख, ईसाई और पारसी समुदाय से हो।
संसद के दोनों सदनों से पास होकर राष्ट्रपति से मुहर लगने के बाद वजूद में आए सीएए महज एक टूल है, जो तीन पड़ोसी इस्लामिक देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए पीड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसियों को सुगम तरीके से नागरिकता प्रदान करता है। ये वो लोग हैं जो सीएए में चिन्हित तीनों इस्लामिक देशों की धार्मिक प्रताड़ना के शिकार थे और भारत में पिछले कई वर्षों से एक शरणार्थी की तरह रहे हैं।
हैरानी वाली बात यह है कि सीएए के खिलाफ भ्रांतिया इतनी फैलाई गईं कि लोग बिना सोचे और समझे और केवल सुनकर धरने में चले गए। इसकी तस्दीक धरना करने पहुंचे प्रदर्शनकारियों के जवाबों से पता चला, जो विभिन्न मीडिया चैनलों द्वारा प्रदर्शनकारियों से पूछे गए थे और उनके जवाबों पर बनाए गए मीम्स ने सोशल मीडिया में न केवल मसखरा, बल्कि मूर्ख भी साबित कर दिया।
राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर बसों से भर-भर कर लाई गई भीड़ कैमरे के सामने बाकायदा यह कहते हुए रिकॉर्ड हुए कि वो फला पार्टी की रैली में आए हैं। प्राब्लम यह है कि लोगों को सीएए की वास्तविकता के बारे में कुछ नहीं पता और न ही उन्हें खुद फुरसत है कि खुद का ज्ञानार्जन करने के लिए इंटरनेट की सहायता ले सके।
यह भी पढ़ें- आर्टिकल 370, अयोध्या, CAA: जयशंकर बोले-'चीन की तरह सुपरपावर बनना है तो 70 साल की समस्याओं को सुलझाना होगा'
मुस्लिमों को लक्ष्य करके शुरू हुआ सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन
सीएए के खिलाफ अब तक हुए धरना-प्रदर्शनों की हकीकत यही है कि यह पूरी तरह सियासी थी, जिसे विभिन्न राजनीतिक दल अपनी सियासी रोटियां सेंकने और सरकार को बदनाम करने के लिए भीड़ को एक टूल की तरह इस्तेमाल किया। एक खास वर्ग मुस्लिम को लक्ष्य करके शुरू हुआ यह धरना-प्रदर्शन अभी भी जारी है। मुस्लिमों को गुमराह करने के बताया गया कि सीएए से उनकी नागरिकता छीनने का सरकार प्रयास कर रही है, लेकिन केंद्रीय मंत्री अमित शाह द्वारा भारतीय मुस्लिमों को संसद और संसद के बाहर दोनों जगहों से आश्वस्त करने के बाद भी हिंसा नहीं रूकी और अभी तक जारी है।
भ्रांतियों को दूर करने के लिए डूर टू डूर कैंपेन चला रही है सरकार
केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सीएए के खिलाफ फैली भ्रांतियों को दूर करने और लोगों की जानकारी बढ़ाने के लिए गत 5 जनवरी से डूर टू डूर कैंपेन चलाने की घोषणा की। सारे बीजेपी नेताओं को उनके इलाकों में खासकर मुस्लिम वर्ग को सीएए के बारे में विस्तृत जानकारी देने को कहा गया। पिछले दो दिनों से बीजेपी नेता, सांसद और विधायक अपने-अपने इलाकों के लोगों को सीएए के बारे में जागरूक कर रहे हैं, जिसका नतीजा हुआ है कि लोगों में सीएए के खिलाफ खौफ कम होता दिख रहा है, जिसकी तस्दीक पूरे देश में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन और हिंसा मे कमी देखी गई है।
गलतफहमी फैलाई गई कि सीएए में मुस्लिम को बाहर रखा गया है
राजनीतिक दलों और असमाजिक तत्वों द्वारा सीएए के खिलाफ सबसे बड़ी गलतफहमी यह फैलाई गई कि सीएए में मुस्लिम को बाहर रखा गया है, लेकिन लोगों को यह नहीं बताया गया कि मुस्लिम को क्यों बाहर रखा गया। मुस्लिमों को यह जानने का पूरा हक है कि सीएए से उन्हें क्यों बाहर रखा गया। चूंकि सीएए में चिन्हित तीनों देश पूरी तरह इस्लामिक देश हैं, जहां बहुसंखयक मुस्लिम हैं। सवाल यह है कि एक इस्लामिक और मुस्लिम बहुसंख्यक देश में कौन प्रताड़ना का शिकार हो सकता है। निः संदेह मुस्लिम नहीं होंगे, क्योंकि मुस्लिम इस्लाम को मानते है और तीनों चिन्हित राष्ट्र इस्लामिक हैं, जहां उन्हें धार्मिक प्रताड़ना का सवाल ही नहीं पैदा होता है।
इस्लामिक देशों में मुस्लिम बहुसंख्यक, वो कैसे प्रताड़ित हो सकते हैं
इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यक पीड़ित और प्रताड़ित हो सकते हैं, जहां उनके धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पूजा और शादी और कर्मकांड करने में अवरोध पैदा किया जाता हो। चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों के अनुयायियों को पूरी स्वतंत्रता मिला हुआ और धार्मिक आधार पर किसी समुदाय विशेष से भेदभाव नहीं किया जाता है।
इस्लामिक देशों में प्रताड़ित हिंदू समेत अन्य का एक मात्र सहारा है भारत
इसकी तस्दीक भारत में मौजूद 22 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यक से समझा जा सकता है, जिन्हें पूरी तरह से धार्मिक आजादी है। चूंकि तीनों चिन्हिंत देश इस्लामिक राष्ट्र हैं इसलिए प्रताड़ना के शिकार हुए वहां मौजूद हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसियों का एक मात्र सहारा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हिंदुस्तान था, जहां वो अपने कर्मकांडों के साथ सुखी से रह सकते है। सीएए में इसलिए तीनों इस्लामिक देशों के अल्पसंख्यकों को जगह दी गई, लेकिन तीनों देशों के बहुसंख्यक मुस्लिमों को जगह नहीं दी गई। खुद से सवाल कीजिए, आखिर वो क्यों भला हिंदुस्तान आना चाहेंगे, जो एक इस्लामिक देश में रह रहे हैं।
इस्लामिक देशों के नागरिकों को सीएए में प्रतिबंधित नहीं किया गया है
सीएए में इस्लामिक देशों के इच्छुक नागरिकों को हिंदुस्तान की नागरिकता लेने और आवेदन करने से रोकने का प्रावधान नहीं है और पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हजारों मुस्लिमों को हर वर्ष भारत सरकार की ओर से भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है। राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्री ने हाल में बताया कि वर्ष 2019 में कुल 561 पाकिस्तानी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई, इनमें पाकिस्तानी सिंगर अदनाम सामी शामिल हैं। अभी जब सीएए के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन चल रहे थे, तो गुजरात में एक मुस्लिम महिला को हिंदुस्तान की नागरिकता प्रदान की गई।
क्या मुस्लिम इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना से खुश हैं
बड़ा सवाल यह है कि सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का औचित्य क्या है अगर इससे किसी भी भारतीय समुदाय की नागरिकता नहीं छिन रही है। क्योंकि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले से हिंदुस्तान के बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच यह संदेश जा रहा है कि भारतीय मुस्लिम चिन्हित तीनों इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना से खुश हैं जबकि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक श्रेणी शुमार मुस्लिमों को किसी भी प्रकार की समस्या नहीं है। उन्हें किसी भी तरह की धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती, लेकिन एएमयू और जामिया में अल्पसंख्यक मुस्लिम हिंदुओं की कब्र खुदेगी के नारे लगाने के बाद भी स्वतंत्र हैं। हिंदुस्तान के बहुसंख्यक हिंदू हितों के खिलाफ लगाया गया उक्त नारा भी अभिव्यक्ति की आजादी नाम पर स्वीकार्य है।
भारतीय मुस्लिमों की धार्मिक आजादी का नमूना है अयोध्या राम मंदिर केस
हिंदुस्तान और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकार और धार्मिक आजादी का नमूना अयोध्या राम मंदिर विवाद से समझा जा सकता है, जहां 134 वर्षों तक हिंदू बहुसंख्यक भगवान राम के जन्म स्थान के लिए अदालतों के चक्कर काटता रहा जबकि पाकिस्तान में आजादी के बाद से अब तक 90 हजार से अधिक हिंदू अल्पसंख्यकों के मंदिरों को ढहा दिया गया। इसकी तस्दीक भारत-पाकिस्तान बंटवारे की तारीख से अब तक भारत और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की दशा-दिशा से भी की जा सकती है, जहां हिंदू और सिख समेत सभी अल्पसंख्यकों की हालत बेहद दयनीय है। वहां हिंदू बहू-बेटियों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजूबर किया जाता है।
पाक में अल्पसंख्यकों की हालत का ताजा उदाहरण है ननकाना साहिब पर पथराव
पाकिस्तान में स्थित सिखों के पवित्र स्थान ननकाना साहिब गुरूद्वारे में हुआ पथराव इसका ताजा उदाहरण है। पाकिस्तान के मुस्लिम बहुसंख्यकों की भीड़ ननकाना साहिब गुरूद्वारे के ग्रंथी के बेटी का अपहरण करने और धर्म परिवर्तन करके जबरन निकाह के आरोपी को बचाने के लिए पथराव कर रहे थे। ग्रंथी के बेटी जगजीत कौर की शिकायत के बाद पाकिस्तान पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन मुस्लिम बहुसंख्यक जबरन की गई जगजीत कौर के साथ निकाह को सही बता रहे थे। पाकिस्तानी सरकार की नाक के नीचे हुए इस वारदात को भारत के विदेश विभाग के दखल के बाद रोका गया, लेकिन ननकाना साहिब को ढहाने और वहां मस्जिद बनाने की धमकी देने वाली भीड़ तब हटी जब आरोपी को पाकिस्तान पुलिस द्वारा छोड़ दिया गया।
भारत में मुस्लिम आबादी में दोगुना वृद्धि, पाक में हिंदू 22% से 2% हुए
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आबादी 8.5 फीसदी थी, जो 70-72 वर्ष बाद बढ़कर 17 फीसदी हो चुकी है, लेकिन पाकिस्तान में बंटवारे के वक्त 22 फीसदी अल्पसंख्यक हिंदू आबादी सिमट कर वर्तमान में 2 फीसदी रह गई है। इसी तरह बांग्लादेश में भी हिंदू अल्पसंख्यकों की हालत हैं जो 23 फीसदी से 10 फीसदी पहुंच गई है जबकि अफगानिस्तान में तालिबानी शासन आने के बाद हिंदू और सिखों को भागकर हिंदुस्तान में शरण लेनी पड़ी। अफगानिस्तान से भागे हिंदू और सिख पाकिस्तान और बांग्लादेश नहीं गए, क्योंकि हिंदूस्तान उनका स्वाभाविक जन्मभूमि है।
70 वर्ष बाद राष्ट्रपिता द्वारा किया गया वादा भारत सरकार ने किया पूरा
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1947 में धर्म के आधार पर हिंदूस्तान के दो टुकड़े करके अलग हुए पाकिस्तान में छूट गए हिंदू और सिख समेत अल्पसंख्यकों से वादा किया था कि जब भी वो हिंदुस्तान में आना चाहेंगे, हिंदुस्तान उनका दोनों हाथों से स्वागत करेगा। सीएए महात्मा गांधी के वादों की परिणिति है, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा निजी स्वार्थ में भ्रांतियों और गलतफहमियों की खड़ी की गई दीवार ने सभी लोगों को सड़क पर पहुंचा दिया। हालांकि हिंदू समेत अन्य अल्पसंख्यकों के को भारत की नागरिकता देने के लिए लिए पहले से ही हिंदूस्तान में कानून था। 1955 में लाए गए भारतीय नागरिकता कानून में मोदी सरकार में इसलिए संशोधन किया ताकि हिंदू समेत अन्य अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता सुगमता से हासिल हो सके।