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CCA बीजेपी की चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा, प्रचंड जनादेश से जनता ने लगाई थी मुहर!

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बेंगलुरू। संसद के दोनों सदनों से पारित और भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद कानून बन चुके नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ विपक्ष का प्रस्ताव महज राजनीति ही कहा जा सकता है। यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की संवैधानिक मूल्यों और उसकी आत्मा का उपहास है।

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भारत सरकार द्वारा गजेटेड नागरिकता संशोधन कानून के निर्माण में उन सभी मानकों का इस्तेमाल किया गया जो किसी भी विधेयक (सीएबी) के कानून (सीएए) बनने की प्रक्रिया में भूतकाल में भारत में इस्तेमाल की जाती रहती है। सीएए के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता महज उनकी खीझ को परिलक्षित करता है, जो लाख छुपाने के बाद भी बाहर आ जाते हैं।

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गौरतलब है संसदीय प्रणाली में संख्याबल ही किसी विधेयक को कानून बनने और नहीं बनने के लिए उत्तरदायी है और दुर्भाग्य से वर्ष 2014 से 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत किसी भी पार्टी के पास कायदे से विपक्ष का नेता के लिए भी जरूरी सीटों की संख्या जुटा पाना मुश्किल हो गया।

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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता है कि देश की जनता ने 2014 लोकसभा चुनाव से भी बड़ी जीत के साथ बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में बैठाया है। यह कमजोरी विपक्ष की थी कि वह खुद को प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को विकल्प बनकर नहीं उभर सकी और चुनाव दर चुनाव हार झेलती आई है।

संसद में कमजोर विपक्ष मौजूदा स्थिति, उनमें एकजुटता की कमी और मुद्दों पर अंतहीन बिखराव भी एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की निशानी नहीं है, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में एकजुट हुआ विपक्ष जो कुछ कह और कर रहा है, वह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों में ह्रासता ही लाएगी।

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सीएए के विरोध में नकारात्मक और अजीबोगरीब तर्कों से भीड़ जुटाने वाली पार्टियां वोट बैंक की राजनीति और उसकी आंच से सियासी रोटियां जरूर सेंकने की कोशिश की है, लेकिन उसमें बिल्कुल सफल नहीं हुई। इसकी तस्दीक सीएए के खिलाफ जनता की उठे सवाल हैं, जो अब जनता उन राजनीतिक दलों से पूछ रही हैं, जिन्होंने उन्हें बरगलाकर भीड़ का हिस्सा बना दिया था।

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सवाल उठता है कि नागरिकता संशोधन क़ानून में ऐसा क्या है, जो अब तक जाहिर नहीं है और छिपा हुआ है। सरकार ने विभिन्न माध्यमों के जरिए सीएए के विरूद्ध फैलाए गए भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया और उसके बाद गत 5 जनवरी को डूर टू डोर कैंपेन के जरिए बीजेपी सांसद और विधायकों को जनता की दुविधाओं और कौतुहल को दूर किया गया। जनता समझ चुकी है कि नागरिकता संशोधन कानून किसी को नागरिकता देने का कानून है, इससे किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता पर खतरा नहीं है, भले ही वह नागरिक हिंदू हो अथवा मुस्लिम।

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उल्लेखनीय है हिंदुस्तान के दो टुकड़ों में वर्ष 1947 में हुए बंटवारे के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र को खोखला किया है। आजादी के लगभग 6-7 दशक तक हिंदुस्तान की सत्ता में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से काबिज रही कांग्रेस हमेशा ने योजनाओं के झुनझुना के जरिए एक तबके इस्तेमाल किया।

यही कारण है कि मुस्लिम तबका धर्मनिरपेक्ष भारत में भी दोयम दर्ज के नागरिक बना रह गया। सीएए के जरिए भी मुस्लिमों का हितैषी बनकर उनके वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है जबकि सीएए में ऐसा कुछ नहीं है, जो भारतीय मुस्लिमों के लिए अहितकर हो। विपक्ष को भी इसमें संशय नहीं है, लेकिन गुमराह करने के लिए सीएए से बाहर निकलते ही उन्हें एनआरसी में फंसा दिए जाता है।

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महत्वपूर्ण सवाल यह है कि विपक्ष सीएए के खिलाफ है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ है, क्योंकि मोदी नेतृत्व में बीजेपी लगातार दोबारा केंद्र की सत्ता में काबिज होने में बीजेपी कामयाब हो पाई है। वर्ष 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता में काबिज हुई बीजेपी 2004 लोकसभा चुनाव में हारकर बाहर हो गई थी।

इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा और उनके कामकाज का तरीका ही कहेंगे कि बीजेपी केंद्र में दोबारा लौटी और दूसरे कार्यकाल में अपने उन कोर मुद्दों को एक-एक करके पूरा करने में जुटी है, जो आजादी के पिछले 70-72 वर्षों के अंतराल के बाद भी अनछुए पड़े थे।

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प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी द्वारा एक-एक करके पूरे किए जा रहे मुद्दों से परेशान है, जिनमें अनुच्छेद 370, अयोध्या राम मंदिर, ट्रिपल तलाक कानून और नागारिकता संशोधन कानून प्रमुख हैं। मोदी के दूसरे कार्यकाल में पूरे हुए उपरोक्त चारो कोर मुद्दे बीजेपी की घोषणा पत्र में है, जो पार्टी की स्थापना के समय से बीजेपी के कोर मुद्दे रहे हैं।

क्या विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून के विरोध पर इसलिए अमादा है कि बीजेपी अब असम एनआरसी की तरह पूरे देश में एनआरसी पर काम करने वाली है, क्योंकि यह मुद्दा भी बीजेपी के कोर मुद्दे में शामिल है। इसी तरह यूनिफार्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर भी विपक्ष घबड़ाया हुआ है।

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बिखरा हुआ एकजुट विपक्ष अच्छी तरह से जानता है कि अगर मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी एनआरसी, यूनिफॉर्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लेकर आ गई तो देश में वोट बैंक राजनीति का खात्मा हो जाएगा। यही कारण है कि वह सीएए का विरोध पर अमादा है ताकि बीजेपी की भावी योजनाओं पर पलीता लगाया जा सके।

हालांकि बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने विपक्ष के विरोध के बीच ही अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि किसी भी हालत में सीएए वापस नहीं होगा और सीएए में चिन्हित तीन पड़ोसी देशों के सताए हुए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

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भारत में मौजूदा विपक्ष की हालत यह हो गई है कि वह धीरे-धीरे मुद्दाविहीन होती जा रही है और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से घबराई हुई है। भारत का विकास और सबका साथ और सबका विकास के नारे के साथ देश के 130 करोड़ जनता की राजनीति करने वाली मोदी सरकार लगातार विपक्ष के मुद्दों पर प्रहार कर रही है।

इनमें सीएए को पहला कदम माना जा रहा है, जो बीजेपी का कोर मुद्दा है। बीजेपी की लगातार जीत को जनता की सहमति माना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि जनता पार्टियों के घोषणा पत्र के आधार पर पक्ष और विपक्ष में मतदान करती है।

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मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर छाए बादल हट जाना और भारतीय जमीन से बांग्लादेशी घुसपैठियों को हटाने के लिए एनआरसी लागू करने की कवायद बीजेपी की घोषणा पत्र का हिस्सा है। बीजेपी तीन कोर मुद्दे धारा 370, अयोध्या राम मंदिर और नागरिकता संशोधन कानून को पूरा कर चुकी है।

बीजेपी अब पाइपलाइन प्रोजेक्ट एनआरसी, एक देश एक क़ानून यानी (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) और जनसंख्या नियंत्रण कानून पर आगे बढ़ रही है। इसमें कुछ गलत नहीं है, क्योंकि जनता मुद्दों पर वोट करती है और बीजेपी मुद्दों को लटकाने के बजाय पूरा कर रही है।

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माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार और विपक्ष के बीच अदायत का प्रमुख का कारण यही है। क्योंकि सकारात्मक राजनीति करती हुए मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार चुनावी घोषणापत्र में शामिल सभी मुद्दों को खत्म करने की कगार है और विपक्ष अच्छी तरह जान गई है कि 2024 में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को तभी रोका जा सकता है जब लोगों के बीच खासकर अल्पसख्यक समुदाय के बीच भ्रम पैदा किया जाए। थे।

विपक्ष अच्छी तरह से जानती है कि देश का मुस्लिम अल्पसंख्यक आज भी बीजेपी को वोट नहीं करती है, उसके पीछे उसके अपने तर्क है, लेकिन सच्चाई यही है कि ट्रिपल तलाक जैसी कुरीतियां बीजेपी ने ही दूर की है, जिससे लाखों पीड़ित मुस्लिम महिलाओं का भला हुआ है।

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मालूम हो, मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने वर्ष 2014 में विकास और भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था और जब उसने वादा पूरा करके दिखाया तो 2019 लोकसभा चुनाव में जनता ने बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए को दोबारा प्रचंड बहुमत दिया। जून, 2019 के बाद दोबारा केंद्र पर काबिज हुई मोदी सरकार एक-एक कर अब अपने कोर मुद्दों को पूरा कर रही है।

लेकिन विपक्ष बीजेपी को उसके वादे पूरा करने से रोकने के लिए अड़ंगे लगा रही है। यह सच है कि संविधान ने विपक्ष को विरोध करने का अधिकार दिया है, यह जायज भी है, लेकिन विरोध के नाम पर संवैधानिक तरीकों से पारित कानून का उपहास चिंता का विषय है, क्योंकि अगर क़ानून असंवैधानिक है तो इसका फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा।

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मुद्दा अब यह है कि विपक्ष संवैधानिक तरीक से निर्मित नागरिक संशोधन कानून का विरोध करके संविधान ही नहीं, लोकतंत्र का मजाक बना रहा है, क्योंकि संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीकों से सत्ता में काबिज हुई बीजेपी सरकार उन वादों को पूरा कर रही है, जो उसने घोषणा पत्र में लिखा था, लेकिन विपक्ष एक चुनी हुई सरकार को उसके वादे पूरा करने से रोक रहे हैं, जिस पर जनता की सहमति है।

इसकी तस्दीक करता है बीजेपी का लगातार दो बार प्रचंड बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज होना। फर्ज कीजिए, अगर कांग्रेस चुनाव जीतती तो क्या अपने घोषणा पत्र पर वह अमल नहीं करती है, जो 2019 लोकसभा चुनाव में उसने जनता से किए थे। इनमें न्याय योजना प्रमुख था, जिसमें कांग्रेस ने बेरोजगारों को 6000 रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा की थी, लेकिन जनता ने कांग्रेस को ठुकराकर बीजेपी को चुना।

यह भी पढ़ें-CAA पर विपक्षी दलों की बैठक, सोनिया बोलीं- लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांट रही सरकार

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता महज खींझ

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता महज खींझ

संसद के दोनों सदनों से पारित और भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद कानून बन चुके नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ विपक्ष का प्रस्ताव महज राजनीति हीं कहा जा सकता है। यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की संवैधानिक मूल्यों और उसकी आत्मा का उपहास है। गजेटेड नागरिकता संशोधन कानून के निर्माण में उन सभी मानकों का इस्तेमाल किया गया जो किसी भी विधेयक (सीएबी) के कानून (सीएए) बनने की प्रक्रिया में भूतकाल में भारत में इस्तेमाल की जाती रहती है। सीएए के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता महज उनकी खीझ को परिलक्षित करता है, जो लाख छुपाने के बाद भी बाहर आ जाते हैं।

वर्ष 2014 से 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत सभी पार्टियां हारीं

वर्ष 2014 से 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत सभी पार्टियां हारीं

संसदीय प्रणाली में संख्याबल ही किसी विधेयक को कानून बनने और नहीं बनने के लिए उत्तरदायी है और दुर्भाग्य से वर्ष 2014 से 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत किसी भी पार्टी के पास कायदे से विपक्ष का नेता के लिए भी जरूरी सीटों की संख्या जुटा पाना मुश्किल हो गया। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता है कि देश की जनता ने 2014 लोकसभा चुनाव से भी बड़ी जीत के साथ बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में बैठाया है। यह कमजोरी विपक्ष की थी कि वह खुद को प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को विकल्प बनकर नहीं उभर सकी और चुनाव दर चुनाव हार झेलती आई है।

पानी की तरह साफ हो चुका है नागरिकता संशोधन क़ानून

पानी की तरह साफ हो चुका है नागरिकता संशोधन क़ानून

नागरिकता संशोधन क़ानून में ऐसा क्या है, जो अब तक जाहिर नहीं है और छिपा हुआ है। सरकार ने विभिन्न माध्यमों के जरिए सीएए के विरूद्ध फैलाए गए भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया और उसके बाद गत 5 जनवरी को डूर टू डोर कैंपेन के जरिए बीजेपी सांसद और विधायकों को जनता की दुविधाओं और कौतुहल को दूर किया गया। जनता समझ चुकी है कि नागरिकता संशोधन कानून किसी को नागरिकता देने का कानून है, इससे किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता पर खतरा नहीं है, भले ही वह नागरिक हिंदू हो अथवा मुस्लिम।

मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से खोखला हुआ भारतीय लोकतंत्र

मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से खोखला हुआ भारतीय लोकतंत्र

हिंदुस्तान के दो टुकड़ों में वर्ष 1947 में हुए बंटवारे के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र को खोखला किया है। आजादी के लगभग 6-7 दशक तक हिंदुस्तान की सत्ता में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से काबिज रही कांग्रेस हमेशा ने योजनाओं के झुनझुना के जरिए एक तबके इस्तेमाल किया। यही कारण है कि मुस्लिम तबका धर्मनिरपेक्ष भारत में भी दोयम दर्ज के नागरिक बना रह गया। सीएए के जरिए भी मुस्लिमों का हितैषी बनकर उनके वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है जबकि सीएए में ऐसा कुछ नहीं है, जो भारतीय मुस्लिमों के लिए अहितकर हो। विपक्ष को भी इसमें संशय नहीं है, लेकिन गुमराह करने के लिए सीएए से बाहर निकलते ही उन्हें एनआरसी में फंसा दिए जाता है।

बड़ा सवाल, विपक्ष सीएए के खिलाफ है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के

बड़ा सवाल, विपक्ष सीएए के खिलाफ है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि विपक्ष सीएए के खिलाफ है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ है, क्योंकि मोदी नेतृत्व में बीजेपी लगातार दोबारा केंद्र की सत्ता में काबिज होने में बीजेपी कामयाब हो पाई है। वर्ष 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता में काबिज हुई बीजेपी 2004 लोकसभा चुनाव में हारकर बाहर हो गई थी। इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा और उनके कामकाज का तरीका ही कहेंगे कि बीजेपी केंद्र में दोबारा लौटी और दूसरे कार्यकाल में अपने उन कोर मुद्दों को एक-एक करके पूरा करने में जुटी है, जो आजादी के पिछले 70-72 वर्षों के अंतराल के बाद भी अनछुए पड़े थे।

विपक्ष अनुच्छेद 370, अयोध्या राम मंदिर, ट्रिपल तलाक एक्ट से परेशान है?

विपक्ष अनुच्छेद 370, अयोध्या राम मंदिर, ट्रिपल तलाक एक्ट से परेशान है?

प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी द्वारा एक-एक करके पूरे किए जा रहे मुद्दों से परेशान है, जिनमें अनुच्छेद 370, अयोध्या राम मंदिर, ट्रिपल तलाक कानून और नागारिकता संशोधन कानून प्रमुख हैं। मोदी के दूसरे कार्यकाल में पूरे हुए उपरोक्त चारो कोर मुद्दे बीजेपी की घोषणा पत्र में है, जो पार्टी की स्थापना के समय से बीजेपी के कोर मुद्दे रहे हैं। क्या विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून के विरोध पर इसलिए अमादा है कि बीजेपी अब असम एनआरसी की तरह पूरे देश में एनआरसी पर काम करने वाली है, क्योंकि यह मुद्दा भी बीजेपी के कोर मुद्दे में शामिल है। इसी तरह यूनिफार्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर भी विपक्ष घबड़ाया हुआ है।

किसी भी हालत में वापस नहीं होगा सीएएः अमित शाह

किसी भी हालत में वापस नहीं होगा सीएएः अमित शाह

बिखरा हुआ एकजुट विपक्ष अच्छी तरह से जानता है कि अगर मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी एनआरसी, यूनिफॉर्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लेकर आ गई तो देश में वोट बैंक राजनीति का खात्मा हो जाएगा। यही कारण है कि वह सीएए का विरोध पर अमादा है ताकि बीजेपी की भावी योजनाओं पर पलीता लगाया जा सके। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने विपक्ष के विरोध के बीच ही अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि किसी भी हालत में सीएए वापस नहीं होगा और सीएए में चिन्हित तीन पड़ोसी देशों के सताए हुए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

बीजेपी के पाइपलाइन प्रोजेक्ट का हिस्सा है NRC, एक देश एक क़ानून

बीजेपी के पाइपलाइन प्रोजेक्ट का हिस्सा है NRC, एक देश एक क़ानून

मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर छाए बादल हट जाना और भारतीय जमीन से बांग्लादेशी घुसपैठियों को हटाने के लिए एनआरसी लागू करने की कवायद बीजेपी की घोषणा पत्र का हिस्सा है। बीजेपी तीन कोर मुद्दे धारा 370, अयोध्या राम मंदिर और नागरिकता संशोधन कानून को पूरा कर चुकी है। बीजेपी अब पाइपलाइन प्रोजेक्ट एनआरसी, एक देश एक क़ानून यानी (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) और जनसंख्या नियंत्रण कानून पर आगे बढ़ रही है। इसमें कुछ गलत नहीं है, क्योंकि जनता मुद्दों पर वोट करती है और बीजेपी मुद्दों को लटकाने के बजाय पूरा कर रही है।

Comments
English summary
The question arises that what is there in the Citizenship Amendment Act, which is not yet visible and hidden. The government attempted to dispel the misconceptions spread against the CAA through various channels and thereafter, through the Door to Door campaign from January 5, public dilemmas and curiosities against the CAA were removed by BJP MPs and MLAs. The public has understood that the Citizenship Amendment Act is a law to grant citizenship to anyone, it does not threaten the citizenship of any Indian citizen, whether it is a Hindu or a Muslim.
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