उपचुनाव: ममता राज में भाजपा नहीं जीत पाई एक भी सीट, NRC बैकफायर कर गया ?
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा उपचुनाव में सत्ताधारी टीएमसी ने तीनों सीटों पर कब्जा कर लिया है। इसमें से खड़गपुर सदर सीट उसने भाजपा से छीनी है, जिसपर 2016 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप कुमार घोष जीते थे। टीएमसी के लिए सबसे बड़ी कामयाबी इसीलिए मानी जा रही है कि जिन दो सीटों पर पार्टी पहली बार चुनाव जीती है, वे दोनों उस लोकसभा सीट के दायरे में आते हैं, जिसपर 6 महीने पहले भाजपा ने जीत दर्ज की थी। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं एनआरसी का मुद्दा बंगाल में भाजपा पर भारी तो नहीं पड़ने लगा है। क्योंकि, खुद बहुत कम मार्जिन से हारे हुए भाजपा के एक प्रत्याशी ने भी इसी बात की आशंका जताई है।
उपचुनाव परिणाम के संकेत क्या हैं ?
ममता बनर्जी की पार्टी के लिए उपचुनाव के नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले इसलिए हैं, क्योंकि कलियागंज और खड़गपुर सदर की सीट उनकी पार्टी पहली बार जीती है। जबकि, करीमपुर सीट उसी के पास थी। वहीं भाजपा के लिहाज से यह परिणाम इसलिए झटका देने वाला है, क्योंकि कलियागंज विधानसभा क्षेत्र रायगंज लोकसभा क्षेत्र में आता है, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की देबाश्री चौधरी जीती थीं। वहीं खड़गपुर सदर सीट मेदिनीपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष सांसद हैं। 2016 में घोष ने खड़गपुर सदर सीट कांग्रेस प्रत्याशी को 6 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर जीता था। वहीं कलियागंज सीट अभी कांग्रेस के पास थी, जहां उसने पिछली बार टीएमसी को हराया था।
भाजपा में एनआरसी पर खलबली
जिस इलाके में लोकसभा चुनाव में भाजपा विजय बनकर निकली वहां 6 महीने के अंदर ऐसा क्या हो गया कि पार्टी की हवा निकल गई, इसको लेकर अपने-अपने मत हो सकते हैं। लेकिन, कलियागंज से कमल निशान पर चुनाव लड़े कमल चंद्र सरकार को लगता है कि वे टीएमसी के तपन देब सिन्हा से महज 2,304 वोटों से नहीं हारते, अगर लोगों को एनआरसी का डर नहीं होता। उन्होंने कहा, "...लेकिन एक चीज साफ है, अल्पसंख्यकों ने टीएमसी को वोट दिया। मैं मानता हूं कि मेरी हार का कारण नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) है। लोगों में एनआरसी को लेकर एक डर था।" उन्होंने ये भी कहा कि, "हम लोगों को यह समझाने में असफल रहे कि असम का एनआरसी अलग था। एनआरसी केंद्र लागू कर रहा है और उसे बीजेपी एक पार्टी के तौर पर नहीं कर रही है। लोगों ने सोचा कि बीजेपी ने एनआरसी लागू किया था और यही हमारे खिलाफ गया।"
एनआरसी पर ममता के रवैए का हुआ उपचुनाव में असर ?
हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में भी कहा था कि एनआरसी की प्रक्रिया पूरे देश में शुरू की जाएगी। लेकिन, टीएमसी सुप्रीमो ने तभी कह दिया था कि वह इसे बंगाल में हरगिज लागू नहीं होने देंगी। उन्होंने कहा था, "मैं ये पूरी तरह साफ कर देना चाहती हूं कि एनआरसी को बंगाल में भी लागू नहीं होने दिया जाएगा।.....हम किसी को धर्म के आधार पर लोगों को बांटने नहीं देंगे।" अब भाजपा के ही लोग कहने लगे हैं कि उनकी हार की वजह ममता का यही स्टैंड हो सकता है।
ममता की गल गई दाल ?
ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, पिछली 25 तारीख को ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शरणार्थियों को जमीन का मालिकाना हक देने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि 1971 से ही शरणार्थी बिना घर और जमीन के इधर-उधर झूलते रहे हैं, इसलिए उन्हें जमीन का अधिकार मिलना जरूरी है। उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार की जमीन पर मौजूद 94 शरणार्थी बस्तियों को उन्होंने पहले ही नियमित कर दिया था। अब वह केंद्र और निजी जमीनों पर मौजूद शरणार्थी कॉलनियों को नियमित करेंगी। हो सकता है कि दीदी के ये सारे कार्ड बीजेपी के खिलाफ गए हों।