अब उद्धव के अह्म से टकराया बुलेट ट्रेन, अब क्या विकास विरोधी भी हो गए हैं शिवसेना प्रमुख ?
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में परस्पर विरोधी दलों के गठजोड़ से बनी महाविकास अघाड़ी मोर्चा सरकार की अगुवाई कर रहे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने हिंदूवादी राजनीति के बाद अब विकासवादी राजनीति को अलविदा बोल दिया है। एनसीपी और कांग्रेस के इशारे पर सांप-सीढ़ी का खेलने को मजबूर उद्धव ठाकरे कभी हिंदूवादी राजनीति पर चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चीफ राज ठाकरे के दावा ठोंकने से बिलबिला उठे थे।
महाराष्ट्र में सेक्युलर दलों के साथ सरकार में शामिल उद्धव ठाकरे अब भी हिंदूवादी राजनीतिक पर अपना दावा ठोंक रहे हैं और अपने दावे को साबित करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या यात्रा की घोषणा कर चुके हैं। हालांकि बुलेट ट्रेन जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से हाथ खींचकर शिवसेना ने हिंदुत्व के बाद अब विकासवादी राजनीति से मुंह मोड़कर उस जनादेश पर फिर प्रहार किया है, जिन्हें आधार बनाकर शिवसेना-बीजेपी ने 2019 विधानसभा चुनाव में संयुक्त जीत दर्ज की थी।
'उद्धव मन न भये दस-बीस' कवि सूरदास की यह पंक्तियां अभी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की मौजूदा स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है। अह्म के टकरावों में कभी तोला और कभी मासा वाली स्थिति से गुजर रहे उद्धव दरअसल तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो क्या बोलें और क्या छोड़े।
हिंदूवादी राजनीति पर अपना दावा करते हुए उद्धव चचेरे भाई राज ठाकरे को चुनौती देते हैं और फिर महाराष्ट्र में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी आरक्षण पर मुहर लगा देते हैं, जिसके खिलाफ रही शिवसेना ने पिछली सरकार में पूरे पांच साल कान में तेल डालकर सोयी रही। महाराष्ट्र में मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण देने की कवायद कांग्रेस की सरकार में शुरू की गई थी।
सूरदास की उपरोक्त पंक्तियों का उद्धव ठाकरे की स्थिति से सीधा कनेक्शन है। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के हिंदूवादी वोट बैंक को साधने के लिए लगातार कह रहे हैं कि उन्होंने हिंदूवादी राजनीति को नहीं छोड़ा है, लेकिन जनादेश के अपमान कर परस्पर विरोधी दलों के साथ सरकार बनाने वाली शिवसेना अपने निजी स्वार्थ को करीने से छुपा जाती है।
दरअसल, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि महाराष्ट्र की जनता शिवसेना के निजी स्वार्थ को भूलकर उनके साथ बनी रहे, लेकिन 'पब्लिक सब कुछ जानती है' को भुला बैठे उद्धव खुद भूल चुके हैं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती है।
महाविकास अघाड़ी मोर्च वाली सरकार में सांप और छछूंदर जैसी हालत में पहुंच चुकी शिवसेना से गठबंधन सरकार न छोड़ा जा रहा है और न ही उसमें रहा जा रहा है। अहम के टकरावों के चलते रांग टर्न ले चुकी शिवसेना को अब फजीहत का डर सता रहा है और वह अच्छी तरह से जानती हैं कि यहां से अब उनकी हालत 'न माया मिली ना राम' जैसी हो गई है।
अगर शिवसेना महाविकास अघाड़ी मोर्चा सरकार से इस्तीफा देती है तो वह जानती है कि महाराष्ट्र की जनता उसे 'सुबह का भूला शाम को वापस आया' के नाम पर बख्शने वाली नहीं है। यही जोखिम लेने से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे डर रहे हैं। यहां एक और कहावत है, जो शिवसेना के लिए मौजू हो चला है, 'न आम मिला न लबादा' मतलब इस्तीफा देकर शिवसेना को महाराष्ट्र की अपनी जमीन गंवाने का डर सता ज रहा है।
मान लीजिए उद्धव ठाके इस्तीफा भी दे देते हैं तो उनके इस्तीफे बाद अगर महाराष्ट्र मध्यावधि चुनाव की ओर बढ़ती है तो चुनाव दर चुनाव से जनता का रोष सामने आ जाएगा, जिसका खामियाजा शिवसेना को झेलना पड़ सकता है। इसलिए शिवसेना रांग टर्न पर आगे बढ़ने की नीति पर चल रही है। शिवसेना की स्थिति एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जो संभवतः अपनी ही खोदी खाईं में खुद गिर गई है।
दिलचस्प बात यह है कि शिवसेना स्वनिर्मित महााविकास अघाड़ी मोर्चे की खाई से न निकलना चाहती है और न ही खाई में बने रहना चाहती है। महाविकास अघाड़ी मोर्च से नहीं निकलने में पीछे का डर पानी की तरह बिल्कुल साफ हो चुका है, क्योंकि हिंदूवादी राजनीति के बाद विकासवादी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के खिलाफ कदम उठाने से शिवसेना की ओर से जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं गया है।
गौरतलब है स्थापना के बाद से शिवसेना के कोर मुद्दों में हिंदुत्व और विकास का मुद्दा प्रमुखता से शामिल रहा है। माना जा रहा है कि विकासवादी मुद्दे से ठेंगा दिखाकर शिवसेना चीफ ने दूसरी बड़ी राजनीतिक गलती की है। निः संदेह शिवसेना चीफ के पास सरकार चलाने को अनुभव नहीं है, लेकिन ऐसी राजनीतिक भूलों को इतिहास हमेशा याद रखता है।
बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला पूर्ववर्ती बीजेपी और शिवसेना के कार्यकाल में रखा गया था, जिसमें शिवसेना की सहमति शामिल थी, लेकिन अब उसी शिवसेना ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को सफेद हाथ करार देकर शिवसेना ने उन सपनों पर हथौड़ा चलाया है, जो पिछले कई वर्षों से जनता बुलेट ट्रेन को हिंदुस्तान में साकार होता देख रही थी।
1.08 लाख करोड़ रुपए लागत वाले बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में आयात शुल्क और निर्माण के दौरान ब्याज शामिल है। जापान ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लुए भारत को 1.08 करोड़ रुपए महज 0.1% की ब्याज दर पर 50-वर्ष के लिए दिया है। ऋण के माध्यम से कुल परियोजना लागत का 81% निधि रुपए 79,087 करोड़ देने पर सहमति जताई है।
भारतीय रेलवे हाई स्पीड रेल परियोजना में 9,800 करोड़ रुपए (1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) निवेश करेगा और बाक़ी लागत महाराष्ट्र और गुजरात की राज्य सरकारों द्वारा वहन की जानी है। चूंकि भूमि अधिग्रहण से बचने के लिए और अंडरपास के निर्माण की आवश्यकता के कारण अधिकतर लाइन का निर्माण एक ऊंची कॉरिडोर पर किया जाएगा, जिससे10,000 करोड़ (1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) लागत बढ़ गई है। दी है।
एक लाख करोड़ रुपए की लागत वाली बुलेट ट्रेन योजना के निर्माण में गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों से ज़मीन अधिग्रहण का मामला विवादों में पड़ा हुआ है। इस विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक स्पेशल कमेटी का गठन किया है। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जहां केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। भारत और जापान के बीच हुए समझौते के मुताबिक़ इस प्रोजेक्ट को 2022 तक पूरा करने के लिए क़रार हुआ है। इस परियोजना की लागत का अनुमान 1.08 लाख करोड़ रुपए (17 अरब अमेरिकी डॉलर) है।
हालांकि बुलेट ट्रेन को लेकर शुरू से ही मुखर रही शिवसेना का तर्क है कि बुलेट ट्रेन से महाराष्ट्र के मराठी लोगों का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। यह सिर्फ़ गुजरात के सूरत और अहमदाबाद के व्यापारियों को बेहतर सुविधा के हिसाब से बनायी जा रही है। इसको मुंबई के व्यापार व व्यवसाय में गुजराती व्यापारियों के दखल को बढ़ावा देने के नज़रिये से भी शिवसेना देखती आई है। सच्चाई यह है कि उद्धव ठाकरे सरकार बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट में अपनी हिस्सेदारी यानी 5000 करोड़ रुपए पर स्वीकृति नहीं देने वाली है।
उल्लेखनीय है महाराष्ट्र के किसानों के कर्ज को बिना शर्त माफ करने का ऐलान कर चुके महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे की योजना है कि प्रस्तावित बुलेट ट्रेन के लिए महाराष्ट्र की हिस्सेदारी वाले 5000 करोड़ रुपए किसानों के कर्ज माफी पर खर्च किया जाए। उद्धव ठाकरे का उक्त योजना न केवल महाराष्ट्र के विकास में बाधक बनेगी बल्कि उनकी यह कोशिश महाराष्ट्र में भी मुफ्त की राजनीति को बढ़ावा देगी।
सभी जानते हैं कि मुफ्त की राजनीति के सहारे दिल्ली में सत्ता में काबिज हो चुके अरविंद केजरवाल एक बाऱ फिर मुफ्त की राजनीति के सहारे सत्ता में वापसी की राह देख रहे हैं और अगर केजरीवाल फिर सत्ता में वापस आते हैं तो बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर ठाकरे सरकार का अंतिम फैसला तय हो जाएगा।
महात्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 10,000 करोड़ रुपए है और केंद्र की मोदी सरकार की योजना के मुताबिक मार्च 2020 तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का कामकाज शुरू करना चाहती है और अगर बिना अवरोध के काम शुरू हुआ तोर दिसंबर 2023 तक बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया जाएगा।
फिलहाल, अभी प्रोजेक्ट के लिए अभी भी जमीन का सर्वे ही चल रहा है। अहमदाबाद के साबरमती से सूरजपुर जंक्शन के रेलवे स्टेशन के ऊपर से गुजरने वाली बुलेट ट्रेन कुछ जगहों से अंडरग्राउंड मेट्रो निकलेगी। वहीं, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट लिए एक मल्टीलेवल पार्किंग का भी निर्माण किया जाना है।
यह भी पढ़ें- जयपुर-उदयपुर में भी दौड़ेगी बुलेट ट्रेन, जानिए 886 km के रूट में कहां-कहां रुकेगी यह हाईस्पीड ट्रेन
बुलेट ट्रेन शिवसेना का नहीं किसी और का सपना हैः उद्धव ठाकरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन को झटका देकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विकासवादी राजनीति से भी किनारा करने के संकेत दिए हैं। प्रस्तावित बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलाने का प्रस्ताव था, जिसे 2023 तक पूरा किया जाना था। एक इंटरव्यू में उद्धव ने कहा कि बुलेट ट्रेन हमारा नहीं किसी और का सपना है। बुलेट ट्रेन में राज्य सरकार का 25 फीसदी हिस्सा जबकि केंद्र का 75 प्रतिशत हिस्सा है।
मार्च 2020 में शुरू होना था महात्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का कामकाज
महात्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 10,000 करोड़ रुपए है और केंद्र की मोदी सरकार की योजना के मुताबिक मार्च 2020 तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का कामकाज शुरू कर दिया जाएगा और दिसंबर 2023 तक प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया जाएगा।
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए अभी भी चल रहा था जमीन का सर्वे का काम
फिलहाल, अभी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए अभी भी जमीन का सर्वे ही चल रहा है। अहमदाबाद के साबरमती से सूरजपुर जंक्शन के रेलवे स्टेशन के ऊपर से गुजरने वाली बुलेट ट्रेन कुछ जगहों से अंडरग्राउंड मेट्रो निकलेगी। वहीं, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट लिए एक मल्टीलेवल पार्किंग का भी निर्माण किया जाना है।
बुलेट ट्रेन के लिए जापान ने 0.1% की ब्याज पर दिए 1.08 लाख करोड़ रुपए
1, 08 करोड़ रुपए लागत वाले बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में आयात शुल्क और निर्माण के दौरान ब्याज शामिल है। जापान ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए भारत को 1.08 करोड़ रुपए महज 0.1% की ब्याज दर पर 50-वर्ष के लिए दिया है। ऋण के माध्यम से कुल परियोजना लागत का 81% निधि रुपए 79,087 करोड़ देने पर सहमति जताई है। भारतीय रेलवे हाई स्पीड रेल परियोजना में 9,800 करोड़ रुपए (1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) निवेश करेगा और बाक़ी लागत महाराष्ट्र और गुजरात की राज्य सरकारों द्वारा वहन की जानी है।
भूमि अधिग्रहण से बचने के लिए लागत में 10,000 करोड़ की वृद्धि हुई
भारतीय रेलवे हाई स्पीड रेल परियोजना में 9,800 करोड़ रुपए (1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) निवेश करेगा और बाक़ी लागत महाराष्ट्र और गुजरात की राज्य सरकारों द्वारा वहन की जानी है। चूंकि भूमि अधिग्रहण से बचने के लिए और अंडरपास के निर्माण की आवश्यकता के कारण अधिकतर लाइन का निर्माण एक ऊंची कॉरिडोर पर किया जाएगा, जिससे 10,000 करोड़ (1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) लागत बढ़ गई है।
5000 करोड़ रुपए किसानों की कर्ज माफी खर्च करेगी उद्धव सरकार
महाराष्ट्र के किसानों के कर्ज को बिना शर्त माफ करने का ऐलान कर चुके महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे की योजना है कि प्रस्तावित बुलेट ट्रेन के लिए महाराष्ट्र की हिस्सेदारी वाले 5000 करोड़ रुपए किसानों के कर्ज माफी पर खर्च किया जाए। उद्धव ठाकरे का उक्त योजना न केवल महाराष्ट्र के विकास में बाधक बनेगी बल्कि उनकी यह कोशिश महाराष्ट्र में भी मुफ्त की राजनीति को बढ़ावा देगी। सभी जानते हैं कि मुफ्त की राजनीति के सहारे दिल्ली में सत्ता में काबिज हो चुके अरविंद केजरवाल एक बाऱ फिर मुफ्त की राजनीति के सहारे सत्ता में वापसी की राह देख रहे हैं और अगर केजरीवाल फिर सत्ता में वापस आते हैं तो बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर ठाकरे सरकार का अंतिम फैसला तय हो जाएगा।
सिर्फ़ गुजरात के सूरत और अहमदाबाद के व्यापारियों के लिए है बुलेट ट्रेन?
बुलेट ट्रेन को लेकर शुरू से ही मुखर रही शिवसेना का तर्क है कि बुलेट ट्रेन से महाराष्ट्र के मराठी लोगों का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। यह सिर्फ़ गुजरात के सूरत और अहमदाबाद के व्यापारियों को बेहतर सुविधा के हिसाब से बनायी जा रही है। इसको मुंबई के व्यापार व व्यवसाय में गुजराती व्यापारियों के दखल को बढ़ावा देने के नज़रिए से भी शिवसेना देखती आई है। सच्चाई यह है कि उद्धव ठाकरे सरकार बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट में अपनी हिस्सेदारी यानी 5000 करोड़ रुपए पर स्वीकृति नहीं देने वाली है।
भगवा से उद्धव की दूरी ने हिंदुत्व की राजनीति में लौटे राज ठाकरे
उद्धव ठाकरे के सेक्युलर दलों के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने हिंदुत्व राजनीति में लौटने के संकेत दिए तो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व पर अपना अधिकार कायम रखने के लिए सरकार के 100 पूरे होने पर अयोध्या यात्रा की घोषणा कर दी। निः संदेह हिंदू, हिंदुत्व और भगवा से शिवसेना की दूरी ने राज ठाकरे को हिंदुत्व की राजनीति की ओर मौका दिया था।
शरजील इमाम जैसे कीड़ों को तुरंत खत्म कर देना चाहिएः शिवसेना
शरजील इमाम के खिलाफ सामना में लिखे लेख में बेहद ही उत्तेजक ढंग से शब्द पिरोए गए हैं, जो शिवसेना की पुरानी पहचान है। संपादकीय में शरजील इमाम को टारगेट करते हुए लिखा गया है, जो शरजील इमाम ‘चिकन नेक' पर कब्जा कर भारत को विभाजित करना चाहता है, उसके हाथ काट कर चिकन नेक हाई-वे पर रख देना चाहिए ताकि लोग उसे देखकर सबक ले सके। लेख के जरिए शिवसेना ने गृहमंत्री अमित शाह को हिदायत देते हुए कहा कि शरजील जैसे कीड़ों को तुरंत खत्म कर देना चाहिए।
इशारों-इशारों में जब उद्धव ने बीजेपी और शिवसेना में फूट पर आंसू बहाए
महाराष्ट्र विधानसभा के सदन में पहली बार रविवार, 26 जनवरी को CM उद्धव ने बीजेपी-शिवसेना में फूट का दर्द साझा किया था। पूर्व सहयोगी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विपक्ष के नेता चुने गए थे। उद्धव ने देवेंद्र की जमकर तारीफ की और आगे कहा कि अगर आप अच्छे होते तो यह सब (बीजेपी-शिवसेना में फूट) नहीं होता। यहां शिवसेना के परस्पर विरोधी दल के साथ सरकार बनाने और सरकार चलाने का दर्द साफ देखा जा सकता है।