23 मई को कोई जीते या हारे, चुनाव में इन सबकी जीत पक्की है वो भी रिकॉर्ड मार्जिन से
नई दिल्ली- 17वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे 23 मई को आने वाले हैं। उसी दिन पता चलेगा कि किस पार्टी या गठबंधन की सरकार बनेगी या कौन नेता चुनाव जीत सका और किसके हर दावे गलत साबित हो गए। लेकिन, कोई जीते चाहे हारे, इस चुनाव में हजारों की संख्या में ऐसे लोग जुटे हुए हैं, जिनकी जीत अभी से तय हो चुकी है और वह भी रिकॉर्ड मार्जिन से। हम यहां बात करेंगे चुनाव के काम में जुड़े उन लोगों की जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व मालामाल कर रहा है। हम चर्चा करने जा रहे हैं उन पेशेवरों की जिन्हें कुछ ही समय के लिए सही चुनाव की वजह से रिकॉर्ड कमाई का मौका मिल गया है।
दुनिया का सबसे महंगा चुनाव
2019 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा ही नहीं, बल्कि सबसे महंगा चुनाव भी है। सात चरणों में 90 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं की बदौलत इसने बहुत बड़े स्तर पर बिजनेस को भी संवरने का मौका दिया है। इकोनॉमिक्स टाइम्स ने दिल्ली-बेस्ड थिंक टैंक सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (Centre for Media Studies) के हवाले से बताया है कि मौजूदा चुनाव में होने वाले खर्च में 40% इजाफे का अनुमान है, जो करीब 700 करोड़ डॉलर बैठता है।
डिमांड में बूलेट-प्रूफिंग एक्सपर्ट
इस बार के चुनाव में नेताओं और पार्टियों के बीच जुबानी जंग बहुत ही निचले स्तर तक गिर चुकी है। इसके चलते एक-दूसरे के समर्थकों में भी जबर्दस्त आक्रोश की भावना पैदा हुई है। इसी के मद्देनजर नेता अपनी सुरक्षा पर भी काफी खर्च कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक इस चुनाव में बूलेट-प्रूफ (bullet-proof) लग्जरी गाड़ियों की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है। उदाहरण के तौर पर लग्गार इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Laggar Industries Ltd) में 70 से ज्यादा स्टाफ कस्टमर की डिमांड पूरी करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। यहां गाड़ियों में ऐसा कवच (armor-plating) चढ़ाया जाता है, जो गोलियों और ग्रेनेड से नेताओं को सुरक्षित रखते हुए उनके चुनाव प्रचार में मदद करे। कंपनी के डायरेक्टर सुनचित सोबती के मुताबिक उनके पास इस बार ऑर्डर्स की भरमार है। पंजाब-बेस्ड इनकी कंपनी में वाहनों में बूलेट-प्रूफिंग (bullet-proofing) के अलावा इंजन फायरवॉल्स (engine firewalls), फ्यूल प्रोटेक्शन सिस्टम्स (fuel protection systems) और रन-फ्लैट-टायर्स (run-flat-tires) का भी काम होता है। उन्होंने बताया कि,"इस चुनाव में हमनें 30-35 गाड़ियों की बूलेट-प्रूफिंग की है और यह अच्छी संख्या है।" गाड़ियों में किए जाने वाले इस बदलाव में 6 लाख रुपये से 40 लाख रुपये तक का खर्च आता है। एक वाहन को पूरी तरह से कस्टमर के डिमांड के मुताबिक तैयार करने में 2 से 3 महीने तक लग जाते हैं।
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इमेज मेकर्स की चांदी
मौजूदा चुनाव में नेताओं और पार्टियों की छवि चमकाने वाली कंपनियां भी पहले के मुकाबले ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से काम कर रही हैं। ये अधिकतर स्ट्रैटिजिक कंसलटेंसी फर्म (strategic consultancy firm) हैं, जिनके पास इस समय जरा भी फुर्सत नहीं है। जिन पार्टियों या प्रत्याशियों की इमेज मेकिंग (Image Making) का ये ठेका लेते हैं, उसकी जरूरतों के मुताबिक ये हर पहलुओं पर काम करते हैं। मसलन ये क्लाइंट के लिए डेमोग्राफिक एनालिसिस (demographic analysis)करते हैं, मुद्दे (issues) तलाशते हैं और उसी के अनुसार टारगेट ऑडियेंस (target audiences)पर फोकस करते हैं। ऐसे फर्म राजनेताओं का सोशल मीडिया एकांउट्स हैंडल करते हैं और उनकी प्रोफाइल भी तैयार करते हैं। यही नहीं यहीं पर उनके लिएस्पीच और स्लोगन (speeches and slogans) भी लिखे जाते हैं, जिसके लिए राइटर्स की एक अच्छी खासी फौज लगातार दिमाग खपाती रहती है। इसके अलावा यहां नेताओं के लिए पर्सनालिटी डेवलपमेंट का भी काम होता है, ताकि वे आई कॉन्टैक्ट (eye contact) की अहमियत को समझ सकें। एक ऐसे ही स्ट्रैटिजिक कंसलटेंसी फर्म (strategic consultancy firm) सेंट्स आर्ट के चीफ स्ट्रैटिजिस्ट सुधांशु राय ने बताया कि, "सबकी इमेज को बहुत ही सावधानी से गढ़ा जाता है। यह इसपर निर्भर करता है कि क्लाइंट चाहता क्या है। अगर वह खुद को शिक्षित नेता के तौर पर दिखाना चाहता है तो सारे पब्लिसिटी मैटेरियल को उसी के मुताबिक डिजाइन किया जाता है।" हालांकि ये लोग अपने क्लाइंट्स के बारे में जानकारी देने से बचते हैं।
दिलचस्प बात ये है कि इलेक्शन कवरेज को ठीक से करने के लिए मीडिया ऑर्गेनाइजेशन भी ऐसी कंपनियों की मदद ले रही हैं। सोशल मीडिया डाटा का विश्लेषण करने वाली एक कंपनी फ्रॉल (Frrole) की को-फाउंडर अमरप्रीत कलकट ने कहा कि, "हम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सब कुछ एनालाइज करके उन्हें सलाह दे रहे हैं कि ट्विटर हैसटैग कैसे ट्रेंड कर रहा है, किसी टॉपिक पर पब्लिक सेंटिमेंट क्या है, किसी खास न्यूज पर देश के अलग-अलग हिस्सों से कैसी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।"
स्टैटस सिंबल बन गया है चुनाव
मजे की बात है कि इस चुनाव में नेता या राजनीतिक दल किस तरह से खर्च कर रहे हैं, अपनी कैसे ब्रांडिंग कर रहे हैं, नेताओं का रुतबा कैसा दिखता है, यह सब भी स्टैटस सिंबल (Status Symbols) बन गया है। राजनेताओं के लिए तो सबसे बड़ा स्टैटस सिंबल यह है कि वो चुनाव प्रचार के लिए कैसे पहुंचता है। अगर हेलिकॉप्टर से पहुंचता है तो कौन सा हेलिकॉप्टर है। एक इंजन वाला है या उसमें दो इंजन लगे हुए हैं या फिर बिजनेस जेट से सफर कर रहा है। जाहिर है कि इस स्टैटस सिंबल को कायम रखना हर नेता के लिए मुमकिन नहीं है। जानकारों के मुताबिक सिंगल इंजन वाले हेलिकॉप्टर के लिए कंपनियां अगर 1,50,000 रुपये घंटे के हिसाब से चार्ज करती हैं, तो दो इंजन वाले का किराया 2,50,000 रुपये घंट होता है। मार्टिन कंसल्टिंग के फाउंडर मार्क मार्टिन के मुताबिक बिजनेस जेट के लिए तो 4,60,000 रुपये प्रति घंटे के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है।
एडवर्टिजमेंट बिजनेस में आई बहार
यह चुनाव एडवर्टिजमेंट बिजनेस (advertisement business) से जुड़े लोगों के लिए भी बहुत बढ़िया मौका लेकर आया है। कई कंपनियां इस काम में लगी हुई हैं और हजारों करोड़ रुपये के कारोबार की संभावना जताई जा रही है। एडवर्टिजमेंट व्यवसाय में जुड़ी कंपनियों के लिए चुनाव तो धंधे के गारंटी कामयाबी का अवसर होता है। उषक काल कन्यूनिकेशन लिमिटेड के एमडी और तांडव फिल्म्स एंटरटेंमेट के चीफ एग्जिक्यूटिव राज हायरमथ के मुताबिक, "अगर मात्रा के आधार पर देखें तो इस साल के चुनाव में एडवर्टिजमेंट बिजनेस करीब 2,500 करोड़ रुपये का है। और करीब 20 से 25 एजेंसियां पॉलिटिकल पार्टियों के लिए जरूर काम कर रही हैं।"
कहीं खुशी, कहीं गम
इनके अलावा कुछ और परंपरागत कारोबार है, जो इस चुनाव में भी रिकॉर्ड कमाई कर रहा है और प्रचार माध्यमों के डिजिटल होने के बावजूद उस पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जैसे फूल और बड़े-बड़े मालाओं का कारोबार। कुछ हद तक इसकी खफत पहले के चुनावों की तुलना में काफी बढ़ ही गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के थोक फूल मार्केट में फूलों की डिमांड चुनाव के चलते ही बढ़ी है। एक-एक दुकान एक दिन में 2.5 लाख रुपये तक का फूल बेच रहे हैं। यह सिलसिला 23 मई तक चलता रहेगा। लेकिन, सभी लोग उतने खुशकिस्मत नहीं हैं। मसलन डिजिटल प्रचार की भरमार ने नेताओं और मतदाताओं का फोकस सोशल मीडिया पर बढ़ा दिया है। इसके चलते पोस्टर, बैनर, कैप्स, टी-शर्ट के कारोबार में जुटे लोगों का बिजनेस पहले के चुनावों से मंदा हुआ है। नई दिल्ली में प्रचार सामग्री बेचने वाली भारत ट्रेडिंग कंपनी में काम करने वाले मदन लाल की मानें तो हमेशा से चुनावों में अच्छी कमाई की उम्मीद रहती थी। लेकिन, "इस बार हम अपनी लागत की भरपाई भी नहीं कर पा रहे हैं। "