संसद का बजट सत्र: इस बार कैसे अलग और ख़ास है
कोरोना महामारी में नए 'प्रोटोकोल' के हिसाब से संसद के बजट सत्र का संचालन किया जाएगा.
इस बार भारत में संसद का बजट सत्र दो चरणों में होगा. यानी 17वीं लोक सभा के पांचवें सत्र के दौरान कुछ दिनों का अवकाश होगा, जिसके बाद फिर से कार्यवाही शुरू होगी.
कोरोना महामारी की वजह से संसद की कई परंपराओं को दरकिनार करते हुए नए 'प्रोटोकोल' के हिसाब से संसद का बजट सत्र चलेगा.
ऐसा पहली बार ही होगा कि संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान भी सदस्य 'सेंट्रल हॉल' के अलावा लोक सभा और राज्य सभा में बैठेंगे. इससे पहले तक अभिभाषण के दौरान सभी सदस्य 'सेंट्रल हॉल' में ही बैठते थे.
बजट सत्र जनवरी की 29 तारीख़ को शुरू होगा, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी. उससे पहले सरकार सदन में आर्थिक सर्वेक्षण की प्रति पेश करेगी.
पहले दौर में सदन की कार्यवाही 15 फरवरी तक चलेगी, जबकि दूसरे दौर में सत्र 8 मार्च से लेकर अप्रैल की 8 तारीख़ तक चलेगा.
जाँच की व्यवस्था
पूरे सत्र में 35 बैठकें होंगी, जिनमें से 11 पहले दौर में और 24 दूसरे दौर में होंगी. लोक सभा सचिवालय के सूत्रों ने इस संबंध में जारी किए गए अध्यादेश के हावाले से कहा है कि 15 फरवरी से जो अवकाश दिया जा रहा है, उसका मक़सद है संसद की विभिन्न समितियों की बैठकों के लिए समय देना और 8 मार्च तक इन समितियों की रिपोर्टों को सदन में पेश करना.
संसद में कई तरह की स्थायी समितियाँ हैं जैसे- लोक लेखा, प्राक्कलन, विशेषाधिकार और सरकारी आश्वासन से संबंधित समितियाँ. इन समितियों में अमूमन 21 लोकसभा के सदस्य और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं.
सत्र के दौरान और इसके बाद भी समय-समय पर इन समितियों की बैठकें होती रहती हैं. लेकिन ये अनिवार्य होता है कि समितियों की बैठकों से संबंधित रिपोर्ट हर आने वाले सत्र के दौरान सदन में पेश कर दी जाए.
लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला के अनुसार कोरोना को देखते हुए सांसदों के स्वास्थ्य की जाँच का इंतज़ाम उनके आवास के पास ही किया जायगा, जिससे उनके परिवार के सदस्यों को इसके लिए संसद भवन नहीं आना पड़े.
पहली बार बजट की प्रति डिजिटल माध्यम से
कोरोना महामारी की वजह से संसद का शीतकालीन सत्र नहीं हो सका था और मॉनसून सत्र में भी महामारी को लेकर कई क़दम उठाए गए थे.
मॉनसून सत्र के दौरान संसदीय कार्य की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा यानी प्रश्न काल को स्थगित रखा गया था. विपक्ष के विरोध के बीच सरकार ने दलील दी थी कि ऐसा महामारी को देखते हुए किया गया था. लेकिन इस बार प्रश्नकाल को बजट सत्र में फिर से बहाल किया गया है.
Convened a meeting with Secretaries of various Ministries and Departments along with my ministerial colleague Shri @arjunrammeghwal ji, through VC. Held discussion on preparation of legislative business during the forthcoming Budget Session of the Parliament. pic.twitter.com/yuFhSuI2oc
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) January 19, 2021
भारत सरकार के संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और उनके मंत्रालय में उपमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसको लेकर सभी मंत्रालयों के सचिवों के साथ बैठक की, ताकि सदस्यों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब समय पर और सही ढंग से दिए जा सके.
जोशी के अनुसार, "सभी विभागों और मंत्रालयों के सचिवों के साथ तैयारियों की समीक्षा की गई, ताकि विधायी कार्य बिना रोक-टोक चल सके.
दूसरी तरफ़ लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने भी सभी राज्यों को चिठ्ठी लिखकर कहा कि वो सुनिश्चित करें कि संसद के सदस्य बिना किसी मुश्किल का सामना किए हुए बजट सत्र में शरीक हो सकें.
संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब बजट की प्रति सदस्यों को काग़ज़ के रूप में ना मिलकर डिजिटल माध्यम से दी जाएगी.
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और भी कई परंपराओं की विदाई
बजट से पहले पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण की प्रति भी डिजिटल ज़रिए से ही सदस्यों को मुहैया कराई जाएगी. बिरला के अनुसार सिर्फ़ राष्ट्रपति के अभिभाषण और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के भाषण की छपी हुई प्रतियाँ सदस्यों को दी जाएँगी.
ये परंपरा भी रही है कि जिस दिन संसद में बजट पेश किया जाता है, उस दिन सदस्यों और बजट को तैयार करने वाले सभी कर्मियों के लिए 'सूजी का हलवा' भी बनता है. ये बजट की प्रिंटिंग प्रेस में छपाई से पहले की जाने वाली परंपरा है.
लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बजट सत्र में ऐसा नहीं होगा. संसद के सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि छपाई इसलिए भी संभव नहीं थी, क्योंकि इस काम में लगने वाले अधिकारियों को 10 दिनों तक के लिए 'क्वारंटीन' करना भी असंभव हो गया था.
पिछले साल बजट पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्री के सदन में ब्रीफ़केस लेकर जाने की परंपरा को भी ख़त्म कर दिया था और वो उसकी जगह 'बही-खाता' लेकर गई थीं.
पहले बजट सत्र के दौरान इसकी प्रतियों और इससे जुड़े दस्तावेज़ों को संसद तक ट्रक के ज़रिए लेकर जाया जाता था. चूँकि अब सबकुछ डिजिटल हो रहा है, सदस्यों को ये नज़ारा भी देखने को नहीं मिलेगा.
संसद का बजट सत्र सुचारू ढंग से चले इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जनवरी को संसद में विपक्ष के नेताओं की बैठक बुलाई है. वहीं एनडीए के घटक दल और विपक्षी पार्टियां भी अलग से बैठकें आयोजित करेंगे.
विपक्ष भी सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है. वहीं सरकार चाहती है कि पूरा सत्र बिना किसी रुकावट के चले. लेकिन जिन-जिन मुद्दों को लेकर सरकार विपक्ष की आलोचना से निपटने की तैयारी कर रही है वो है किसानों का आंदोलन और मानसून सत्र में पारित किये गए नए कृषि कानून.
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और राज्य सभा के सदस्य प्रोफ़ेसर मनोज झा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "गिरती हुई अर्थव्यवस्था सबके लिए बड़ी चिंता का विषय है. पहले से ही ये लचर थी और उसपर महामारी का प्रकोप होने से युवाओं के सपनों के साथ-साथ कामगारों की भी कमर टूट गयी है."
"बड़े पैमाने पर लोगों का रोज़गार चला गया है और उनके सामने कोई विकल्प नहीं है. सरकार भी अभी तक इसपर कुछ नहीं बोल रही है, जिससे लोगों की हिम्मत बंधे. ये मामला आवश्यक है और हम इसे सदन में उठाकर सरकार का ध्यान इस तरफ़ आकृष्ट करने के कोशिश करेंगे."
उनका कहना था कि विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगेगा. खास तौर पर चीन के सवाल पर.
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वहीं कांग्रेस भी सरकार को सदन में घेरने के लिय अपनी रणनीति बना रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी के हरिप्रसाद ने बीबीसी से बात करते हुए आरोप लगाया कि 'कोरोना महामारी की आड़ में सरकार ने लोकतांत्रिक परंपराओं को ध्वस्त' करने का काम किया है.
वो कहते हैं कि मानसून सत्र से प्रश्नकाल को हटाना और फिर शीतकालीन सत्र को पूरी तरह से ख़त्म करना भी लोकतंत्र में एक अप्रत्याशित क़दम ही था.
उनका कहना था, "भारतीय जनता पार्टी के नेता कोरोनाकाल में बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं. हज़ारों की भीड़ इकठ्ठा कर रहे हैं. मगर संसद नहीं चलाना चाहते हैं महामारी की दुहाई देकर. प्रश्नकाल का स्थगित होना भी अपने आप में लोकतंत्र की इस परंपरा पर हमला है."
जहां तक रही बात किसानों के आंदोलन की, तो इस बार सदन में भारतीय जनता पार्टी को एनडीए में अपने सहयोगी राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
अकाली दल इनमें से प्रमुख है. दूसरे दल भी कृषि कानून और किसान आंदोलन को लेकर सरकार को घेरने की बात कह रहे हैं.