बजट 2021: आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया एक ही सिक्के के दो पहलू?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है कि भारत आत्मनिर्भर बनने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है. बीते वर्ष सरकार की इस 'नीति बदलाव' ने देश को औपचारिक रूप से आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ाया. इसके बाद से सोमवार को पेश किया जाने वाला बजट पहला बजट होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को विश्व आर्थिक मंच द्वारा कराये गए वर्चुअल दावोस सम्मेलन में सार्वजनिक तौर पर एक बार फिर भारत को आत्मनिर्भर बनाने के अपने संकल्प को दोहराया.
उन्होंने कहा, "भारत आत्मनिर्भर बनने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है. भारत की आत्मनिर्भरता की आकांक्षा ग्लोबलिज़्म (वैश्विकता) को नए सिरे से मज़बूत करेगी और मैं आश्वस्त हूं कि इस अभियान को इंडस्ट्री 4.0 (चौथी औद्योगिक क्रांति) से भी बहुत बड़ी मदद मिलेगी."
पिछले साल सरकार के इस 'नीति बदलाव' ने देश को औपचारिक रूप से आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ाया. इसके बाद से सोमवार को पेश किया जाने वाला बजट पहला बजट होगा.
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस साल और आने वाले कुछ सालों के बजट का फोकस भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर रहेगा. वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार बजट में आयात की कई वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाये जाने का प्रस्ताव होगा ताकि देसी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को बढ़ावा दिया जा सके. आत्मनिर्भर भारत मोदी सरकार का स्वघोषित लक्ष्य है और इसे हासिल करने के लिए सरकारी मशीनरी गंभीरता से जुटी नज़र आती है.
पिछले साल 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 साल की आर्थिक नीति पर लगाम लगाते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा की थी और इस संदर्भ में 20 लाख करोड़ रुपये के एक आर्थिक पैकेज का एलान किया था, जिसे उन्होंने आत्मनिर्भरता अभियान पैकेज का नाम दिया था. पीएम मोदी ने इस अवसर पर ध्यान आकर्षित करने वाला अंग्रेज़ी में एक नारा भी दिया था- "वोकल फॉर लोकल."
प्रधानमंत्री ने अपना सामान ख़ुद बनाने और उन्हें विदेश में बेचने पर बल दिया था. उनका तर्क ये था कि एक आत्मनिर्भर भारत विश्व की सप्लाई चेन में पहले से मज़बूत और बेहतर भूमिका निभा सकेगा. शुक्रवार के अपने भाषण में उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने कोरोना के ख़िलाफ़ दो टीके विकसित किए हैं और उन्हें कई ज़रूरतमंद देशों को भेजा गया है. उनका कहना था कि आत्मनिर्भरता की तरफ़ आगे बढ़ने वाला भारत कोरोना के ख़िलाफ़ और भी टीके इजाद करने वाला है.
आत्मनिर्भरता अभियान
बीते साल 12 मई के बाद से उनकी सरकार का कोई भी ऐसा मंत्री नहीं होगा जिसने "आत्मनिर्भर भारत" के आइडिया का प्रचार न किया हो. इन दो शब्दों ने भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारियों के कानों में मिश्री घोलने का काम किया. वित्त मंत्रालय के बाबू भी इसे सरकारी मिशन समझकर आगे बढ़ाने में लग गए.
समझा जा रहा है कि सोमवार को पेश किये जाने वाले बजट में अधिकतर सरकारी खर्च, रियायतों और नयी नीतियों का ज़ोर भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर होगा. दूसरे शब्दों में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की पूरी कोशिश होगी कि वो एक ऐसा बजट पेश करें जो देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रधानमंत्री के सपने और लक्ष्य को पूरा करने में पहल कर सके.
वैसे देश को आत्मनिर्भर बनाने की तरफ़ मोदी सरकार ने पहला क़दम पिछले साल ही उस समय उठाया था जब सरकार 'प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव' यानी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना लेकर आई. इस योजना के अंतर्गत भारतीय कंपनियों को देश के अंदर सामान बनाने पर अगले पाँच साल तक 4 से 6 प्रतिशत रियायत मिलेगी.
इस योजना के तहत पहले इलेक्ट्रॉनिक और फ़ार्मा सेक्टर को लाया गया. बाद में 11 नवंबर को मंत्रिमंडल ने इस योजना को 10 अन्य सेक्टर से जोड़ने की मंज़ूरी दी. इस योजना के लिए सरकार ने 2.60 लाख करोड़ रुपये की सहायता की घोषणा की.
उद्योग जगत ख़ुशी से झूम उठा. महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने लगातार तीन ट्वीट्स पोस्ट कर डाले जिनमें उन्होंने इस योजना को गेम चेंजर कहा. एक ट्वीट में उन्होंने कहा, "मैं 'गेम-चेंजर' शब्द का इस्तेमाल अक्सर नहीं करता, लेकिन इस मामले में ये उपयुक्त है. मेरे लिए योजना की यांत्रिकी से ज़्यादा महत्वपूर्ण ये है कि ये उद्योग के प्रति दृष्टिकोण में एक नाटकीय बदलाव है."
आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया एक ही सिक्के के दो पहलू
चिंता की बात ये है कि बहुत सारी कंपनियां और उद्योगपति आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया शब्दों का इस्तेमाल एक ही सांस में कर रहे हैं, मानों दोनों योजनाएं एक ही हैं. मेक इन इंडिया, जिसकी अपील प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल क़िले से की थी, एक नाकाम कोशिश साबित हुई है. लाल क़िले से प्रधानमंत्री ने विदेशी निवेशकों से कहा था "कम, मेक इन इंडिया". वो भारत को चीन की तरह दुनिया का एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते थे.
लेकिन पिछले छह सालों में ये योजना कागज़ों पर ज़्यादा रही. मेक इन इंडिया की नाकामी पर प्रकाश डालते हुए सिटी ग्रुप रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया, "पिछले छह वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के मुख्य मापदंडों में कोई सुधार नहीं हुए हैं."
रिपोर्ट में इसकी विफलता के कारणों पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि इसे ख़ास सेक्टर में फोकस करने के बजाये इसके दायरे में 25 से अधिक सेक्टर को लाने की कोशिश की गई.
लेकिन आत्मनिर्भर भारत योजना में फिलहाल फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक, रक्षा, खाद्य और ऑटोमोबाइल जैसे उद्योगों को ही शामिल किया गया है. आम तौर से विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आत्मनिर्भरता योजना और मेक इन इंडिया एक ही तरह की योजनाएं हैं जिनमें प्रोडक्शन और निर्यात पर ज़ोर दिया गया है. लेकिन कई दूसरे विशेषज्ञ ये मानते हैं कि मेक इन इंडिया की तुलना में आत्मनिर्भर भारत एक बेहतर आइडिया है. इसमें कामयाबी मिलेगी या नहीं, इसका पता कुछ सालों बाद ही चलेगा.
आत्मनिर्भर भारत या लाइसेंस राज वाला भारत
वैसे कई लोग आत्मनिर्भर भारत अभियान में भी कमियाँ निकालते सुनाई देते हैं. सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने मीडिया से बातें करते हुए आत्मनिर्भर अभियान पर चिंता जताई और कहा कि ये संरक्षणवाद के दौर में लौटने की एक कोशिश है.
वो उस दौर की तरफ़ इशारा कर रहे थे जब सरकार विदेशी कंपनियों को देश के अंदर प्रवेश करने से रोकती थी, आयात में टैरिफ बहुत अधिक था ताकि भारतीय कंपनियों के हितों की रक्षा हो सके और उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना न करना पड़े. उस दौर में घरेलू प्रोडक्ट की कीमतें ज़्यादा थीं और क्वालिटी हल्की.
भ्रष्टाचार आम था और कोई नई कंपनी शुरू करने के लिए कई विभागों से मंज़ूरी और लाइसेंस हासिल करना होता था. इसके कारण नए प्रोजेक्ट को शुरू करने में देरी होती थी.
अरविंद सुब्रमण्यम को डर है कि कहीं भारत उसी दौर में वापस तो नहीं लौट रहा है. वो आत्मनिर्भरता के बारे में कहते हैं, "ये अर्थव्यवस्था पर तीन दशकों की आम सहमति को उलट देता है. हमारी अर्थव्यवस्था पर आम सहमति थी कि हम धीरे-धीरे इसे दुनिया वालों के लिए खोलेंगे. यही हमारी गतिशीलता का आधार था. हमारे नीति निर्माता यह सोच रहे हैं कि आत्मनिर्भर बनने से हमारी अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ेगी जो इस बात को नकारता है कि खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर विकल्प होता है."
ये प्रतिस्पर्धा को मार देगा
'बैड मनी' सहित कई पुस्तकों के लेखक और अर्थशास्त्री विवेक कौल आत्मनिर्भरता की योजना से बहुत प्रभावित नहीं हैं, बल्कि इसे वो चिंताजनक मानते हैं.
विवेक कौल कहते हैं, "जिस तरह से आत्मनिर्भरता को कार्यान्वित किया जा रहा है, ये अनिवार्य रूप से अधिक से अधिक टैरिफ (आयातों पर) की तरफ इशारा करता है. लोकल सामान बनाने पर ज़ोर का अर्थ ये होगा कि भारतीयों को भारतीय उत्पाद ख़रीदने के लिए मजबूर किया जाएगा."
''दूसरी तरफ़ आपको ये समझने की ज़रूरत है कि भारतीय कंपनियों को वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा बनाने की बात कही जा रही है. आप वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा बिना कॉम्पिटिटिव हुए कैसे बन सकते हैं? और यदि आप देश के भीतर प्रतिस्पर्धा नहीं रखते हैं, तो आप कॉम्पिटिटिव कैसे बन सकते हैं."
विवेक कौल को डर इस बात का है कि अगर आत्मनिर्भरता का मतलब संरक्षणवाद है तो भारत को बहुत सारी समस्याएं होंगी.
विवेक कौल कहते हैं, "अगर आपको याद हो कि साल 1991 से पहले भारत में भारतीय कंपनियों को घरेलू बाज़ार के लिए उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था. भारत में बनी वस्तुओं की क्वालिटी ख़राब होती थी और ये महँगी भी होती थीं, क्योंकि प्रतिस्पर्धा नहीं थी. लाइसेंस राज था, भ्रष्टाचार था. जब साल 1991 में अर्थव्यवस्था खुली तब हमने खूब तरक़्क़ी की. हमें ये याद रखने की आवश्यकता है."
लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आज का भारत लाइसेंस राज के दौर से अलग है और उस दौर में वापस जाना असंभव है. भारत खाद्य में आज आत्मनिर्भर है. टेक्नोलॉजी में कई देशों से काफ़ी आगे है. इलेक्ट्रॉनिक सामान का उत्पादन भारतीय विनिर्माण की कुछ सफल कहानियों में से एक है. पिछले दो वर्षों में निर्यात 6.4 अरब डॉलर से दोगुना होकर 11.8 अरब डॉलर हो गया है.
आत्मनिर्भरता कहीं केवल चीनी आयात के ख़िलाफ़ एक अभियान तो नहीं
आत्मनिर्भरता अभियान ऐसे समय पर लागू किया गया है जब भारत में सीमा पर जारी तनाव के कारण चीन के ख़िलाफ़ काफ़ी नाराज़गी है और चीनी सामानों का सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार किया गया है. इसके अलावा भारत सरकार इस बात से चिंतित रही है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में चीन का हिस्सा दो-तिहाई है. साल 2018 में चीन से आयात 70 अरब डॉलर का था. भारत इसे काफी कम करना चाहता है.
दिल्ली में फ़ोर स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में चीनी मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ैसल अहमद कहते हैं कि ये अभियान चीनी सामान के बॉयकॉट के ख़िलाफ़ शुरू नहीं किया गया है.
वो कहते हैं, "आत्मनिर्भरता राष्ट्रीय कम्पेटिटिवेनेस्स (प्रतिस्पर्धा) के लाभ को बढ़ावा देने के बारे में है. यद्यपि ये अवधारणा स्वतंत्रता के समय से नीतिगत प्रवचन में रही है, लेकिन आत्मनिर्भर भारत पर वर्तमान में ज़ोर अधिक दिया जा रहा है, खास तौर से जबसे कोरोना महामारी दुनिया भर में फैली है और वैश्विक सप्लाई चेन काफ़ी हद तक प्रभावित हुई है. इसका उद्देश्य केवल चीन के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि प्रमुख क्षेत्रों जैसे कि मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, रक्षा उत्पादन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू उत्पादक क्षमताओं का प्रोत्साहन है जो विकास में योगदान दे सकते हैं और इन क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बना सकें."
लेकिन भारतीय व्यापारियों के संघ (CAIT) ने, जिसमे देश भर के छह करोड़ व्यापारी शामिल हैं, आत्मनिर्भरता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए "इंडियन गुड्स अवर प्राइड" के नाम से एक मुहिम छेड़ी है जिसका उद्देश्य चीनी सामानों का बहिष्कार है और उन्हें देश के अंदर बनाने की कोशिश है. इसने ऐसे 3,000 वस्तुओं की एक लिस्ट तैयार की है जो चीन से आयात की जाती हैं लेकिन जिन्हें आसानी से भारत में बनाया जा सकता है. इस लिस्ट में खिलौने, रसोई घर के सामान और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स शामिल हैं. संघ का लक्ष्य है कि इस साल दिसंबर तक 13 अरब डॉलर की लागत का चीनी आयात कम किया जा सके. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं होगा. त्यौहार के समय चीनी सामानों के आयात में इज़ाफ़ा हुआ है
क्या ये एक वैचारिक बदलाव है?
दूसरी तरफ़ कुछ आलोचक आत्मनिर्भरता को मोदी सरकार के राष्ट्रवाद और आरएसएस की स्वदेशी विचारधारा से जोड़ते हैं. इसराइली लेखक नदव एयाल अपनी नयी पुस्तक 'The Revolt Against Globalisation' में लिखते हैं कि महामारी के फैलाव के दौरान कई देश आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर हो गए और वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बजाय अपने देश के अंदर उत्पादन और व्यापार को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. उनके अनुसार वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को राष्ट्रवाद के फैलने से एक झटका लगा जिसके कारण कई देश स्वदेशी सामान और स्वदेशी बाजार पर ज़ोर दे रहे हैं.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश के अंदर सामान बनाने की प्रधानमंत्री मोदी के 12 मई के आत्मनिर्भरता के पैकेज की घोषणा से कुछ दिन पहले ही वकालत की थी. आरएसएस का शुरू से ही ये विचार रहा है कि देश को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना चाहिए.
आत्मनिर्भर भारत का भविष्य
तो क्या 'वोकल फॉर लोकल' एक कामयाब योजना है और निकट भविष्य में भारत एक आत्मनिर्भर देश होगा जो अपनी ज़रूरत का सामान ख़ुद ही बनाएगा? भारतीय उद्योग और व्यापार जगत की खास संस्था एसोचैम (भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल) के अनुसार ये ब्रांड भारत और स्वदेशी कंपनियों के विकास और प्रचार के लिए एक बहुत अच्छा अवसर है. इसे पूरी तरह से लागू करने में कुछ साल लग जाएंगे लेकिन ये एक अच्छी पहल है और एसोचैम इसका स्वागत करता है.
आत्मनिर्भरता पर 28 जनवरी को हुए एक वेबिनार में संस्था ने कहा, "भारत में प्रतिभा और कौशल की कमी नहीं है. अगर भारतीय कंपनियों को सही प्रोत्साहन दिया जाए तो ये विदेशी कंपनियों से मुक़ाबला कर सकती हैं. हमारा उद्देश्य वोकल फॉर लोकल के तहत भारत को स्वदेशी की मंज़िल तक ले जाना."
लेकिन अभी इलेक्ट्रॉनिक और कुछ दूसरे उद्योग में भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और ख़ास तौर से चीनी कंपनियों से मुक़ाबला करने में कई तरह की चुनौतियाँ का सामना है.
उदाहरण के लिए एयर कंडीशनिंग के उद्योग को ले लीजिये. पिछले साल अक्टूबर तक भारत के कुल एयर कंडीशनिंग यूनिट की खपत का 35 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता था, ठीक उसी तरह से जिस तरह से मोबाइल फ़ोन, टीवी सेट इत्यादि चीन से आयात किये जाते हैं. लेकिन सरकार ने एसी के आयात पर रोक लगा दी.
भारत की कंपनियां अब नई फ़ैक्टरियों का विस्तार कर रही हैं ताकि प्रोडक्शन कैपेसिटी बढ़ाई जा सके. लेकिन कच्चा माल अभी भी उन्हें चीन से आयात करना पड़ रहा है. कुछ सालों में कच्चे माल में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि कम्पटीशन के अभाव में दाम ज़्यादा होने और क्वालिटी में कमी का खतरा है जिसका ख़ामियाज़ा भारतीय उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं होगा.