मतदाताओं को रिश्वत या चुनाव से पहले का ट्रेलर : क्या है अंतरिम बजट?
नई दिल्ली। अंतरिम बजट पेश किया जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे चुनाव से पहले ट्रेलर बताया है, तो पूर्व प्रधानमंत्री व अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने इसे चुनावी बजट कहा है। वहीं, राहुल गांधी ने कहा है कि किसानों को प्रतिदिन 17 रुपया देना मजाक है।
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि इस बजट के बाद विपक्ष डर गया है, तो पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम की प्रतिक्रिया है कि यह साबित हो गया है कि सरकार कितनी विक्षिप्त है। एचडी देवगौड़ा ने कहा है कि यह लॉलीपॉप है तो ममता बनर्जी मानती हैं कि इस अंतरिम बजट की कोई वैल्यू ही नहीं है। वहीं विपक्ष के कई नेता इसे मतदाताओ को रिश्वत बता रहे हैं।
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अंतरिम बजट की कुछेक मुख्य बातों पर गौर करें
·
5
लाख
तक
की
आमदनी
टैक्स
फ्री
·
डेढ़
लाख
तक
का
निवेश
भी
टैक्स
दायरे
से
बाहर
·
टैक्स
डिडक्शन
लिमिट
50
हज़ार
हुई
·
2
हेक्टेयर
से
कम
जमीन
वाले
किसानों
को
6
हज़ार
रुपये
सालाना
·
असंगठित
मजदूरों
को
60
साल
के
बाद
3
हज़ार
रुपये
मासिक
पेंशन
·
रक्षा
बजट
का
आकार
3
लाख
करोड़
होना
·
मनरेगा
के
लिए
2019-20
में
60
हज़ार
करोड़
का
आवंटन
·
उत्तर
पूर्व
के
लिए
आवंटन
बढ़ाकर
58,166
करोड़
करना
·
जनवरी
में
जीएसटी
कलेक्शन
1
लाख
करोड़
·
कुल
प्रत्यक्ष
कर
12
लाख
करोड़
·
ग्रैच्यूटी
10
लाख
से
30
लाख
करोड़
25 करोड़ वोटरों पर नज़र
मोदी सरकार ने 10 करोड़ असंगठित मजदूर, 12 करोड़ किसान और 3 करोड़ मध्यमवर्ग के टैक्सपेयर्स को लुभाने की कोशिश की है। यानी 25 करोड़ से ज्यादा लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित करने की कोशिश की है। इन्हें कुछ न कुछ बजट से मिलेगा। इसी अर्थ में विपक्ष इस पहल को चुनाव से पहले ‘वोटरों को रिश्वत' बता रहा है।
नहीं
सुधरेगी
किसानों
की
सेहत
किसानों
को
अनाज
भंडारण
से
लेकर
बिक्री
और
उन्हें
उनकी
फसल
का
मूल्य
देना
ही
सुनिश्चित
कर
दिया
जाता,
तो
वह
500
रुपये
प्रति
महीने
से
बड़ी
बात
होती।
यह
रकम
निश्चित
रूप
से
ऊंट
के
मुंह
में
जीरा
है।
किसान
भूखा
है,
लोन
से
दबा
है,
आत्महत्याएं
कर
रहा
है।
ऐसे
में
500
रुपये
से
उसकी
सेहत
में
कोई
सुधार
होने
नहीं
जा
रहा
है।
टैक्सपेयर्स को वास्तव में कितना होगा फायदा?
अगर मध्यमवर्ग के उन 3 करोड़ लोगों की बात करें जिनकी 5 लाख तक की आमदनी पर टैक्स माफ कर दिया गया है, तो ये वो लोग हैं जो पहले भी टैक्स देने के नाम पर सरकार के राजस्व में कुछ दे नहीं पाते थे। 5 लाख का मतलब 41 हज़ार 700 रुपये के करीब महीने की रकम होती है। ढाई लाख की छूट थी। 40 हज़ार का डिडक्शन था। बच गये 2 लाख 10 हज़ार। इसमें से डेढ़ लाख का निवेश मान लीजिए तो बच गये 60 हज़ार। 5 प्रतिशत के हिसाब से हुए 3 हज़ार रुपये। अगर ऐसे लोगों ने होम लोन ले रखा है, तो ये 3 हज़ार रुपये भी देने की ज़रूरत नहीं। वह ब्याज चुकाने में दिखा दिए जाएंगे। इस मायने में विपक्ष इसे लॉलीपॉप बता रहा है।
टैक्सपेयर्स
कागजी
झंझट
से
होंगे
मुक्त
सत्ता
पक्ष
को
चुनावी
फायदे
की
उम्मीद
है।
मगर,
अगर
ध्यान
से
देखा
जाए
तो
3
करोड़
टैक्सपेयर्स
में
से
ज्यादातर
लोगों
को
बस
कागजी
झंझट
से
मुक्ति
मिलने
वाली
है
न
कि
कोई
आर्थिक
फायदा
होने
वाला
है।
यह
सहूलियत
भी
लोग
अभी
नहीं,
टैक्स
देते
समय
महसूस
करेंगे,
जिसका
समय
चुनाव
के
बाद
आएगा।
जाहिर
है
सत्ता
पक्ष
की
उम्मीद
भी
परवान
चढ़ेगी,
दावे
से
नहीं
कहा
जा
सकता।
कितने मज़दूरों को होगा पेंशन का फायदा?
10 करोड़ मज़दूरों के लिए 60 साल की उम्र के बाद जो 3 हज़ार महीने का पेंशन सरकार ने सोचा है, वह नया इसलिए नहीं है कि यह वृद्धावस्था पेंशन से किसी मायने में अलग नहीं है। एक व्यक्ति को दो पेंशन नहीं मिल सकते, इसलिए वास्तव में फायदेमंद लोगों की तादाद उतनी नहीं रह जाएगी, जितनी कि सरकार दावा कर रही है।
असल मुद्दा है बेरोजगारी, जो सत्ता पक्ष के ख़िलाफ़ देश में व्यापक असंतोष का कारण है। महंगाई नियंत्रण में रहने के बावजूद आम लोग असहज हैं। आत्महत्याएं कर रहे हैं। रोज़गार कैसे पैदा हों, इस बारे में अंतरिम बजट में कोई रोडमैप नहीं दिखा। लघु व छोटे या मझोले उद्योगों के लिए ऐसा कोई प्रोत्साहन लेकर नहीं आयी जो रोज़गार के अवसर पैदा करता।
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