मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से राजस्थान का हिसाब चुकता कर सकती है बसपा
नई दिल्ली- मध्य प्रदेश विधानसभा की खाली पड़ी 27 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा अब किसी भी वक्त हो सकती है। माना जा रहा है कि इसी हफ्ते में तारीख का ऐलान हो सकता है और महीने के आखिरी में किसी दिन चुनाव करवाए जा सकते हैं। यह उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। भाजपा को सत्ता में बने रहने के लिए ये चुनाव अहम है तो कांग्रेस को अपनी खोयी हुई सत्ता को वापस लेने के लिए यह चुनाव जीतना आवश्यक है। यूं समझ लीजिए कि यह उपचुनाव एक तरह से मिनी विधानसभा चुनाव की तरह है। लेकिन, लगता है कि कांग्रेस ने राजस्थान में बसपा विधायकों के साथ जो कुछ भी किया है, उसका खामियाजा उसे मध्य प्रदेश में भुगतना पड़ सकता है।
भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
मध्य प्रदेश विधानसभा की खाली पड़ी 27 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। चुनाव आयोग ने इस बात के संकेत दे दिए हैं। 27 में से 25 सीटें कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे की वजह से खाली हुई हैं जो अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं। जबकि, दो सीटें विधायकों के निधन की वजह से खाली हैं। प्रदेश में आज बीजेपी की सरकार है तो उसकी वजह वही पूर्व कांग्रेसी विधायक हैं, जिनमें से कई ज्योतिरादित्य सिंधिया के आशीर्वाद से अभी शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट की शोभा बढ़ा रहे हैं। अगर कांग्रेस को राज्य में अपनी गंवाई हुई सत्ता फिर से वापस चाहिए तो उसे सभी 27 सीटें जीतनी पड़ेंगी तभी कमलनाथ के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार हो सकता है। जबकि, शिवराज को अपनी पार्टी के दम पर अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए 27 में से 9 सीटें जीतना आवश्यक है। यानी कांग्रेस के मुकाबले भाजपा की राह ज्यादा आसान नजर आ रही है। यही नहीं जून में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो पार्टी को 4 निर्दलीयों और 2 बसपा विधायकों का भी समर्थन मिला हुआ है।
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राजस्थान का हिसाब चुकता करने की तैयारी कर चुकी है बसपा
मध्य प्रदेश उपचुनाव में सभी 27 सीटें जीतना कांग्रेस के लिए मुश्किल तो है, ऊपर से बसपा ने उसका खेल खराब करने का पूरा इंतजाम कर दिया है। पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान 227 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर भले ही 2 ही सीटें जीती हों, लेकिन उसने उपचुनाव के लिए ग्वालियर-चंबल संभाग में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 8 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। यही नहीं पीटीआई के मुताबिक पार्टी आने वाले दिनों में बाकी 19 सीटों पर भी अपने प्रत्याशियों का ऐलान करने वाली है। माना जा रहा है कि मायावती की पार्टी को कांग्रेस ने राजस्थान में जिस तरह से चूना लगाया है, उसका बदला मध्य प्रदेश में कांग्रेस को हराकर वह पूरा करना चाहती हैं। क्योंकि, इन इलाकों में बसपा का प्रभाव है और उसके उम्मीदवारों को जितने वोट मिलेंगे, कांग्रेस की कठिनाई उतनी ही बढ़ने की आशंका है।
2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर एक नजर
2018 के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो बहुजन समाज पार्टी को मध्य प्रदेश में औसतन 5.11 फीसदी वोट मिले थे। जबकि, वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा (41.33%) और कांग्रेस (41.35%) के बीच कांटे की टक्कर दिखी थी। जबकि, ग्वालियर-चंबल संभाग और यूपी से सटे सतना-कटनी इलाकों में तो बीएसपी पहले से ही प्रभावी मानी जाती रही है। बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में 230 सीटों में से कांग्रेस को 114, भाजपा को 109, बसपा को 2, समाजवादी पार्टी को 1 और निर्दलीय को 4 सीटें मिली थीं। इन्हीं में से कांग्रेस के 25 विधायकों ने अपनी विधायकी छोड़ दी, जबकि बाकी और 2 विधायकों का निधन हो गया था। जिसकी वजह से उपचुनाव करवाए जाने हैं।
राजस्थान में क्या हुआ था ?
राजस्थान में भी मध्य प्रदेश के साथ ही दिसंबर, 2018 में विधानसभा के चुनाव हुए थे। उसमें बहुजन समाज पार्टी के 6 विधायक चुनाव जीतकर आए थे। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने उन सभी 6 बीएसपी विधायकों का कांग्रेस में विलय करा लिया। पार्टी इसके खिलाफ चुनाव आयोग चली गई। आयोग इसपर कोई फैसला करता उससे पहले ही वहां गहलोत सरकार संकट में आ गई। बसपा विधायकों का मुद्दा फिर उठा। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा ने दावा किया कि उनकी पार्टी के विधायकों का कांग्रेस में विलय गलत है। मामला हाई कोर्ट में पहुंचा, जिसने राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी को इन विधायकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने को कहा है। एक भाजपा नेता इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचे, लेकिन अदालत ने हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश का हवाला देकर उन्हें सुनने से इनकार कर दिया।
कोविड प्रोटोकॉल के तहत होंगे चुनाव
इस बीच जिस तरह से पिछले हफ्ते राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मध्य प्रदेश सरकार को उपचुनाव वाली हर विधानसभा सीट पर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करवाने के लिए एक नोडल ऑफिसर की तैनाती को कहा था, उससे लगता है कि सितंबर के पहले हफ्ते में चुनावों की घोषणा हो सकती है और आखिरी सितंबर में चुनाव कराए जा सकते हैं। राज्य सरकार की ओर से मुख्य निर्वाचन अधिकारी को लिखित जवाब में इस बात की जानकारी दे दी गई है कि सभी 18 जिलों में जहां पर ये विधानसभा सीटें हैं, वहां जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर को नोडल अधिकारी नियुक्त करने के साथ ही हर विधानसभा सीट पर उस ब्लॉक के मेडिकल ऑफिसर को बतौर नोडल ऑफिसर नियुक्त किया गया है।
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