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मौत के कुएं बन चुके हैं बोरवेल, और कितनी मासूमों की मौत के बाद जागेंगी सरकारें?

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बेंगलुरू। बोरवेल की खुदाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट दिशा-निर्देश है, जिसकी अनदेखी आए दिन नौनिहालों की जिंदगी पर भारी पड़ रहे हैं। यही कारण है कि आए दिन बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाएं देश में सुर्खियां बनती हैं और फिर न्यूज चैनलों पर रेस्क्यू और प्रार्थनाओं का दौर शुरू हो जाते हैं।

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मौत के बोरवेल के गड्ढों से बच्चे जीवित निकल आए तो यह उनका सौभाग्य है अन्यथा अधिकांश की जिंदगी और मौत की जिम्मेदार संस्थाएं घटना के बाद फिर अपने काम में लग जाती है। सवाल उठता है कि आखिर शासन और प्रशासन बोरवेल की बढ़ती घटनाओ से सबक क्यों नहीं ले रही है और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को कड़ाई से पालन पर सख्त्ती बरतने में हीलाहवाली क्यों कर रही है।

हाल ही में तमिलनाडु में दो वर्षीय सुजीत विल्सन और पंजाब के संगरूर जिले के फतेहवीर सिंह नामक दोनों मासूमों को लंबे रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बचाया नहीं जा सका। प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी औ पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत तमाम लोगों ने दोनों की सलामती के लिए दुआं की, लेकिन 2 वर्षीय दोनों मासूमों की मौत को मौत के कुएं बन चुके बोरवेल से बचाई नहीं जा सकी।

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दुर्भाग्य यह है कि दोनों ताजा घटनाओं के बाद भी एक बार फिर शासन और प्रशासन गहरी नींद में सो गया और बीते रविवार को हरियाणा में ही एक और 5 वर्षीय मासूम बच्ची 50 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई है। करनाल जिले के घरौंडा के हरसिंहपुरा गांव की बच्ची को बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन बीते रात से जारी है।

उल्लेखनीय है बोरवेल में किसी मासूम के गिरने की पहली घटना 21 जुलाई, 2006 को घटी थी। घटना हरियाणा के कुरूक्षेत्र की थी, जहां 5 वर्षीय मासूम प्रिंस खेलते-खेलते खुले बोरवेल के गहरे गड्ढे में जा गिरा था। तब मासूम प्रिंस के रेस्क्यू ऑपरेशन को टीवी चैनल्स पर घंटों लाइव दिखाया गया था।

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मासूम प्रिंस के लिए टीवी पर चिपके पड़े लोगों की भगवान से मांगी दुआओं का असर था कि तीन दिन तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद हंसता-खेलता प्रिंस 50 फीट गहरे बोरवेल से सकुशल बाहर निकाल लिया गया था, लेकिन यह सिलसिला प्रिंस के बाद नहीं रुका और मासूमों के बोरवेल में गिरने की घटनाएं देश के हर हिस्सों में आम होती गई हैं।

बोरवेल में मासूमों के गिरने की घटनाओं में आई वृद्धि का नतीजा था कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने बोरवेल से जुड़े कई दिशा-निर्देशों में सुधार करते हुए उसकी खुदाई से पूर्व सावधानी की कई नई बातों को जोड़ा, लेकिन सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं अथवा समूहों द्वारा गड्ढों को खोदना और खुदाई के बाद गड्ढों को खुला छोड़ने की लापरवाही आज भी जारी है। यही कारण है कि ऐसे गड्ढों में मासूमों के गिरने की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने लगी हैं।

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एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2006 से 2019 के अंतराल में दो दर्जन से अधिक मासूमों के बोरवेल में गिरने की घटनाएं सुर्खियां बना चुकी हैं। उसमें दर्जनभर मासूम अपनी जान तक भी गवां जा चुके हैं, लेकिन खुले गड्ढों और गहरे बोरवेल के गड्ढों से मासूमों की सुरक्षा को लेकर कोई नई पहल अभी होती नहीं दिख रही है.

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में बोरवेल की खुदाई सरपंच और कृषि विभाग के अफसरों की निगरानी में जरूरी है, जबकि शहरों में यह काम ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में करना अनिवार्य है। बोरवेल खुदवाने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि बोरवेल की खुदाई करने वाली एजेंसी रजिस्टर्ड है अथवा नहीं। बोरवेल की खुदाई से पूर्व सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बोरवेल की खुदाई वाली जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं, जिसमें उसके खतरे के बारे में बाकायदा लोगों का आगाह किया जाए।

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यही नहीं, बोरवेल की खुदाई वाली जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के अलावा गड्ढों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढंकना भी बेहद जरूरी है, लेकिन अधकांश मामलों में बोरवेल की खुदाई के बाद गड्ढों को ढंका तक नहीं जाता है, जिससे मासूम उसके आसानी से शिकार हो जाते हैं।

वर्ष 2018 मे बिहार के मुंगेर जिले में तो घर के आंगन में खेल रही सना नामक 3 वर्षीय मासूम बोरवेल के 225 फुट गड्ढे में गिर गई थी, जिसे 28 घंटे से अधिक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन इसके लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ टीम को रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

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अभी हरियाणा के करनाल जिले में 50 फीट गहरे बोरवेल में गिरी मासूम बच्चा का रेक्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि मासूम को रेस्क्यू ऑपरेशन सफल होगा और उसे मौत के कुएं बन चुके बोरवेल से सुरक्षित निकाल लिया जाएगा, लेकिन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सुजीत विल्सन और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ में फतेहवीर सिंह के बोरवेल में गिरने से हुई मौत बड़े सवाल खड़े करती है, जहां मशीनरी और रेस्क्यू टीम को पहुंचने में भी कम वक्त लगा।

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राजधानी चेन्नई के बोरवेल मे गिरे सुजीत विल्सन को गड्ढे से बाहर निकालने में रेस्क्यू टीम को कुल तीन दिन लगे, लेकिन तब तक सुजीत विल्सन की मौत हो चुकी थी। जिस वक्त बच्चे का शव बाहर निकाला गया उसकी स्थिति काफी खराब थी। इसी तरह राजधानी चंडीगढ़ में बोरवेल के गडढ़े में गिरे फतेहवीर सिंह को भी मौत के कुएं से सुरक्षित बाहर नहीं निकाला जा सका।

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पंजाब के जिला संगरूर के भगवानपुरा में बोरवेल में गिरे दो वर्षीय फतेहवीर सिंह को गहरे बोरवेल के गड्ढे से बाहर सुरक्षित निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन टीम ने कुल 109 घंटे लिए, लेकिन तब तक फतेहवीर सिंह के प्राण पखेरू होकर निकल चुके थे।

रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद हुई फतेहवीर सिंह की मौत ने सबको झिंझोड़ दिया था और नाराज लोगों ने सरकार व प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की और अपनी दुकानें बंकर सड़कों पर उतर आए। सरकार और प्रशासन अब भी नहीं चेती, जिसकी बानगी हरियाणा प्रदेश के करनाल की घटना है, जहां बोरवेल में फंसी एक मासूम जिंदगी और मौत के बीच उलझी हुई है।

यह भी पढ़ें- 84 घंटे से बोरवेल में फंसा है दो साल का मासूम, बच्चे की जान बचाने को NDRF की कोशिश जारी

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद भी नहीं बदली सूरत

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद भी नहीं बदली सूरत

बोरवेल में मासूमों के गिरने की घटनाओं में आई वृद्धि का नतीजा था कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने बोरवेल से जुड़े कई दिशा-निर्देशों में सुधार करते हुए उसकी खुदाई से पूर्व सावधानी की कई नई बातों को जोड़ा, लेकिन सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं अथवा समूहों द्वारा गड्ढों को खोदना और खुदाई के बाद गड्ढों को खुला छोड़ने की लापरवाही आज भी जारी है। यही कारण है कि ऐसे गड्ढों में मासूमों के गिरने की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने लगी हैं, लेकिन खुले गड्ढों और गहरे बोरवेल के गड्ढों से मासूमों की सुरक्षा को लेकर कोई नई पहल अभी होती नहीं दिख रही है।

क्या है बोरवेल की खुदाई से पूर्व के दिशा-निर्देश?

क्या है बोरवेल की खुदाई से पूर्व के दिशा-निर्देश?

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में बोरवेल की खुदाई सरपंच और कृषि विभाग के अफसरों की निगरानी में जरूरी है, जबकि शहरों में यह काम ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में करना अनिवार्य है। बोरवेल खुदवाने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि बोरवेल की खुदाई करने वाली एजेंसी रजिस्टर्ड है अथवा नहीं? बोरवेल की खुदाई से पूर्व सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बोरवेल की खुदाई वाली जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं, जिसमें उसके खतरे के बारे में बाकायदा लोगों का आगाह किया जाए। यही नहीं, बोरवेल की खुदाई वाली जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के अलावा गड्ढों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढंकना भी बेहद जरूरी है।

मुंगेर की सना का सफल रहा रेस्क्यू ऑपरेशन

मुंगेर की सना का सफल रहा रेस्क्यू ऑपरेशन

बिहार के मुंगेर जिले में वर्ष 2018 में अपने घर के आंगन में खुदे बोरवेल के 225 फुट गड्ढे में गिरी 3 वर्षीय मासूम सना को 28 घंटे से अधिक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद रात 10 बजे सुरक्षित निकाल लिया गया। 225 फुट गहरे बोरवेल के गड्ढे के 45 फीट ऊपर फंसी मासूम सना को एनडीआरएफ और एसडीआरएफ टीम के सफल रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है, तब जाकर बच्ची की हालत खतरे से बाहर हो सकी थी।

करनाल में अभी अधर में है 5 वर्षीय मासूम की जान

करनाल में अभी अधर में है 5 वर्षीय मासूम की जान

बीते रविवार को हरियाणा के करनाल में एक पांच साल की बच्ची 50 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई। घटना करनाल में स्थित घरौंडा के हरसिंहपुरा गांव की है। बोरवेल में गिरे मासूम को 24 घंटे से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक मासूम को रेस्क्यू ऑपरेशन टीम द्वारा बचाया नहीं जा सका है। हालांकि अभी भी बच्ची को बचाने के लिए बचाव अभियान जारी है।

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English summary
July 21, 2006 is the date when the first incident of falling of an innocent into a borewell occurred. The 5-year-old innocent Prince's rescue operation from Haryana was then shown live on TV channels for hours. Prince was fortunate to be evacuated from a safe borewell, but Sujit Wilson of Chennai and Fatehveer Singh of Sangrur could not be saved alive after hours of rescue operations.
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