समीक्षा: औरंगज़ेब नायक था या खलनायक, बताती है ये किताब
नई दिल्ली। अगर बात मुगल शासक औरंगज़ेब की हो तो ज्यादातर लोगों के मुंह से यही निकलेगा कि वह बहुत ही तानाशाह, हिंदू विरोधी था. कोई कहेगा कि उसके शासन काल में सबसे ज्यादा मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट किया गया तो कोई कहेगा कि वो न तो अपने परिवार का था, न ही आम जनता का. यानी भाई का हत्यारा, अंतिम समय में पिता को कैद करने वाला आदि आदि तमाम सिर्फ ऐसी बातें जिससे सिर्फ नकारात्मक किरदार ही दिमाग में आएगा. पर शायद ये जानना दिलचस्प होगा कि आखिर वह मुगल शासक बना कैसे, उसने तकरीबन आधी सदी तक शासन किया कैसे, या उस तानाशाह शासक में कुछ अच्छाइयां भी थीं?
ऐसे ही तमाम रहस्योद्घाटन और नए तथ्यों पर आधारित है नई पुस्तक 'औरंगज़ेब- बचपन से सत्ता संघर्ष तक; नायक या खलनायक'. ये पुस्तक लिखी है अफसर अहमद ने. ये किताब औरंगज़ेब के जीवन की ऐसी घटनाओं का जिक्र करती है जिससे कई बार आप ये सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि वो तानाशाह नहीं बल्कि सुलझा हुआ शासक था जिसे अपने नियम बनाने और उस पर चलने का शौक था. लेखक ने पहले ही ये घोषणा कर दी है कि वो 6 खंडों की सीरीज लिखने वाले हैं, ताकि यह विषय किसी भी दृष्टिकोण से अधूरा न रह जाए.
सीरीज का पहला खंड है- 'औरंगज़ेब- बचपन से सत्ता संघर्ष तक'. इस पुस्तक में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें औरंगज़ेब के जीवन की दास्तान को बखूबी बयां किया गया है. इस पुस्तक के माध्यम से ये बताने की कोशिश की गई है कि औरंगज़ेब के बारे में तमाम ग़लत धारणाएं फैलाईं गईं लेकिन उसे तथ्यों की कसौटी पर जांचा या परखा नहीं गया. इवोको पब्लिकेशंस ने इस किताब को छापा है और कीमत है 250 रुपए. ये किताब आपको अमेजॉन पर भी मिल जाएगी.
इस पुस्तक की शुरुआत 'नन्हा औरंगज़ेब' अध्याय से होती है. इसमें बताया गया है कि औरंगज़ेब गुजरात के दाहोद में 24 अक्टूबर, 1618 को जन्में और वह शाहजहां और मुमताज महल की छठी संतान थे. उन्होंने शासन पाने के लिए पारिवारिक स्तर पर बहुत संघर्ष किया तो वहीं बतौर शासक भी राज्य-विस्तार के लिए अनेक लड़ाईयां लड़ीं. उनका शासन 1658 से उनकी मृत्यु 1707 तक चला. 48 सालों तक औरंगज़ेब ने हुकूमत की और 88 वर्ष तक ज़िंदा रहा.
औरंगज़ेब के बारे में अक्सर यही सुना गया है कि उसने सत्ता पाने के लिए अपने भाइयों का क़त्ल कर दिया था पर इस किताब में ये बताया गया है कि उसने ऐसा तब किया जब बाक़ी तीनों भाई भी उसके ख़ून के प्यासे हो गए थे. मुग़लों के समय ऐसा नहीं था कि विरासत के तौर पर गद्दी बड़े बेटे को ही मिलेगी. पुस्तक में एक अच्छी बात औरंगज़ेब के बारे में ये भी लिखी है कि उसने ही मुगलों की उस परंपरा को खत्म किया जिसमें बेटियों की शादी नहीं की जाती थी. उसने अपनी बेटियों की शादी करवाई.
औरंगज़ेब कट्टर मज़हबी था ये बात तो समझ आती है लेकिन हिंदुओं का विरोधी ऐसा नहीं. इस किताब में समझाया गया है कि वह इस्लाम धर्म को मानने वाला था लेकिन उसे संस्कृत में जबरदस्त दिलचस्पी थी. औरंगज़ेब पर लिखी जाने वाली सीरीज की पहली पुस्तक का अंत जंग-ए-अज़ीम का आग़ाज़ से हुआ है. और यही सीरीज के अगले भाग का विषय होगा. इस किताब का ठहराव इस विषय पर होना काफी दिलचस्पी पैदा करता है. रुचि और तारतम्यता से इस किताब को पढ़ने वालों को अगली सीरीज का बेसब्री से इंतज़ार होगा. जिस तरह से इस पुस्तक में औरंगज़ेब के जीवन के पहलुओं को अन्य पुस्तकों के उदाहरण और दृष्टांत से समझाया गया है वह वाकई आपको प्रमाणिकता का बोध कराता है.
एक नज़र में:
पुस्तकः औरंगज़ेब- नायक या खलनायक
लेखकः अफसर अहमद
विधाः इतिहास
प्रकाशकः इवोको पब्लिकेशंस
पृष्ठ संख्याः 146
मूल्यः 250/ रुपए