धारदार हथियार लिए जंगल में टहलते हैं बॉलीवुड के 'ख़ूँख़ार विलेन' डैनी
हाथ में धारदार हथियार लिए डैनी डैनज़ोंग्पा एक घने जंगल में काँटेदार झाड़ झंखाड़ साफ़ करते हुए, पसीने में तरबतर आगे बढ़ते जा रहे हैं.
अगर आपसे पूछा जाए कि इस दृश्य के बाद क्या हुआ होगा तो शायद आप कहेंगे कि हिंदी फ़िल्मों के ख़ूँख़ार विलेन डैनी अगले ही पल अपने धारदार दाव से अपने दुश्मन के चार टुकड़े कर देते हैं और फिर
हाथ में धारदार हथियार लिए डैनी डैनज़ोंग्पा एक घने जंगल में काँटेदार झाड़ झंखाड़ साफ़ करते हुए, पसीने में तरबतर आगे बढ़ते जा रहे हैं.
अगर आपसे पूछा जाए कि इस दृश्य के बाद क्या हुआ होगा तो शायद आप कहेंगे कि हिंदी फ़िल्मों के ख़ूँख़ार विलेन डैनी अगले ही पल अपने धारदार दाव से अपने दुश्मन के चार टुकड़े कर देते हैं और फिर बड़े पर्दे पर दाँत भींचते हुए उनकी खूँख़ार हँसी गूँजती है.
यहीं ग़लती कर गए आप!
ये डैनी की किसी फ़िल्म का दृश्य नहीं है बल्कि वो अपनी असल ज़िंदगी में भी सिक्किम के जंगलों में मिशैटी या दाव लिए झाड़ काटते हुए पैदल ही निकल पड़ते हैं, घुड़सवारी करते हैं और सत्तर बरस की उम्र में भी पेड़ों पर चढ़ जाते हैं. डैनी कहते हैं उनकी सेहत का राज़ भी यही है.
वो कहते हैं,"हम लोग शिकारी हुआ करते थे. ये हमारे जींस में है. हम जानवरों के पीछे भागा करते थे. लेकिन अब जबसे गाड़ियाँ आ गई हैं, एसी आ गया है, लोग टीवी के सामने बैठ जाते हैं या फिर एसी गाड़ी से सफ़र करते हैं. मैंने पैदल चलना नहीं छोड़ा है."
इस शुक्रवार को डैनी की फ़िल्म 'बाइस्कोपवाला' रिलीज़ होने वाली है लेकिन उसके प्रीमियर में शामिल होने की बजाए वो पंद्रह दिन तक गंगतोक से आगे पहाड़ों पर ट्रैकिंग के लिए जाने की तैयारी कर रहे हैं.
"सब सामान तैयार है, घोड़े तैयार हैं, इसलिए मैं 'बाइस्कोपवाला' के प्रीमियर में शामिल नहीं हो पाऊँगा", डैनी ने अपने गाँव युकसम से मोबाइल फ़ोन पर बताया. वो मुंबई की भीड़भाड़ और कोलाहल छोड़कर अक्सर सिक्किम के अपने गाँव पहुँच जाते हैं.
चार दशक के ज़्यादा समय से फ़िल्म इंडस्ट्री में गुज़ारने के बाद भी डैनी सबके बारे में सिर्फ़ अच्छी बातें ही कहते हैं. वो कहते हैं, "मैं जब पढ़ने के लिए स्कूल जाता था तो मेरे गाँव से बस पकड़ने के लिए मुझे तीन दिन पैदल चल कर आना पड़ता था. मैं बंबई पहुँचा तो मेरे पास सिर्फ़ 1500 रुपए थे. आज अगर सबकुछ लुट भी गया तो जो जूता मैं पहनता हूँ वो उससे सौ गुना ज़्यादा क़ीमत का होगा."
उन्हें इस बात पर भी अफ़सोस नहीं है कि अब उन्हें उनके मन का काम कम मिलता है. उनकी नई फ़िल्म 'बाइस्कोपवाला' रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला पर आधारित है जिसपर इसी नाम से पहले भी फ़िल्म बन चुकी है. पर इस बार टैगोर की कहानी को पुराने ज़माने में नहीं बल्कि 1980 के दशक में दिखाया गया है. डैनी डैनज़ोंग्पा ने इस में काबुलीवाला का किरदार निभाया है.
डैनी की ज़िद
आप इस फ़िल्म में डैनी को अफ़ग़ान बाइस्कोपवाले के तौर पर देखेंगे. वो कहते हैं कि काबुलीवाला का चरित्र निभाने के लिए उन्हें कोई ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वो याद करते हैं कि पूना के फ़िल्म और टेलीविज़न इंस्टीट्यूट में उनका एक सहपाठी अफ़ग़ानिस्तान का रहने वाला था, जिससे उन्होंने पठानों का लहजा सीखा, और यही लहजा इस फ़िल्म में काम आया.
जिस फ़िल्मी दुनिया में लंबे चौड़े पंजाबी चेहरे-मोहरे वाले चाकलेटी हीरो को ही एक्टर माना जाता हो वहाँ सत्तर के दशक की शुरुआत में उत्तर-पूर्व के मंगोल चेहरे वाले डैनी को पैर जमाने में कितनी मुश्किल आई होगी इसकी सिर्फ़ कल्पना ही की जा सकती है.
डैनी कहते हैं उन दिनों नाटकीय फ़िल्में बनती थीं जिनमें सास बहू के बीच तनाव, भाइयों का मिलना-बिछुड़ना, हीरो-विलेन की कहानियाँ होती थीं. डैनी कहते हैं उन्हें कुछ शुभचिंतकों ने सलाह दी कि जिस तरह की फ़िल्में बनती हैं उसमें तुम्हारे जैसे चेहरे-मोहरे वाले चरित्र नहीं खपेंगे इसलिए अब भी कहीं नौकरी कर लो.
लेकिन डैनी को ज़िद थी कि एक्टर के तौर पर वो अपने क़दम जमा के ही मानेंगे. उन्होंने पूना फ़िल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का डिप्लोमा किया था, बाक़ायदा प्रोफ़ेशनल गायक थे और घर लौटने को तैयार नहीं थे. ऐसे में गुलज़ार ने डैनी को 'मेरे अपने' फ़िल्म में एक छात्र का छोटा सा रोल दिया. फ़िल्म चली और डैनी के काम की तारीफ़ भी हुई.
डैनी की स्वीकार्यता
इसके बाद उन्हें 1971 में निर्देशक बीआर इशारा ने अपनी फ़िल्म 'ज़रूरत' में लिया. फिर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री ने डैनी के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए. बीआर चोपड़ा की फ़िल्म 'धुंध' में एक ग़ुस्सैल, सनकी और अपाहिज पति के किरदार को डैनी ने जिस तरह डूबकर निभाया उससे उनकी एक्टिंग की धाक जम गई और उन्हें 'खोटे सिक्के', 'चोर मचाए शोर', 'फ़कीरा', 'कालीचरन' जैसी फ़िल्में एक के बाद एक मिलने लगीं.
पर डैनी बताते हैं कि वो फिर भी भीतर से इस बात से सहज नहीं थे कि उनके जैसे मंगोल चेहरे वाले एक्टर को उत्तर भारतीय किरदार निभाने को कहा जाए. जब एनएन सिप्पी ने 'फ़कीरा' फ़िल्म में डैनी को शशि कपूर के भाई का रोल ऑफ़र किया तो उन्होंने कहा मैं किसी भी कोण से शशि कपूर के भाई जैसा तो नहीं दिखता हूँ. लेकिन सिप्पी ने उनसे कहा कि दर्शकों ने आपको स्वीकार कर लिया है और अब वो किसी भी रोल में आपको स्वीकार करेंगे.
डैनी हँसते हुए कहते हैं, "उसके बाद हमने विनोद खन्ना के भाई, शत्रुघ्न सिन्हा के भाई, मिथुन चक्रवर्ती के भाई, बाप, दोस्त और दुश्मन सबका रोल किया."
विडंबना ये थी कि फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यू से एक्टिंग की जैसी ट्रेनिंग डैनी को मिली, फ़िल्मी दुनिया में उससे बिलकुल उलटा काम करने को कहा गया. "फ़िल्म इंस्टीट्यूट में हमें बताया गया था कि आपको एक्टिंग नहीं करनी है बल्कि सिचुएशन के मुताबिक़ व्यवहार करना है. हमें वहाँ कोंस्तांतीन स्तानिस्लाव्स्की की एक्टिंग थ्येरी बताई गई थी. न्यूयॉर्क से मैथड एक्टिंग सिखाने के लिए एक टीचर आते थे. लेकिन फ़िल्मों में जब हम यथार्थ एक्टिंग करते थे तो डाइरेक्टर शॉट ओके करता ही नहीं था."
एक्टर के साथ गायक भी हैं डैनी
डैनी कहते हैं वो डायलॉगबाज़ी का ज़माना था. लाउड एक्सप्रेशन और लाउड मेकअप उस दौर की ख़ासियत थे. जो लोग आर्ट फ़िल्मों में रियलिस्टिक एक्टिंग करते थे उन एक्टरों को काम ही नहीं मिलता था लेकिन जो बाज़ार की माँग को ध्यान में रखकर एक्टिंग करते थे उनके पास काम ही काम था.
डैनी कहते हैं, "मैंने सोचा कि चलो पहले स्टार बन जाते हैं और जब अपनी जगह बन जाएगी तो फिर अपनी मनपसंद फ़िल्मों में काम करेंगे. लेकिन दुर्भाग्य वैसी फ़िल्मों में काम करते करते आपकी एक ख़ास लार्जर दैन लाइफ़ इमेज बन जाती है और आप फिर दूसरी तरह की फ़िल्मों में फ़िट नहीं हो पाते."
पर अब उन्हें इस बात का संतोष है कि आहिस्ता आहिस्ता दर्शक भी समझने लगे हैं कि सहज एक्टिंग ही दरअसल एक्टिंग है. अब उनके पास बाहर की फ़िल्में देखने के मौक़े होते हैं और वो आसानी से तुलना कर सकते हैं.
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डैनी एक्टर होने के साथ साथ एक बहुत अच्छे गायक भी हैं और उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े गायकों जैसे लता मंगेशकर, आशा भोंसले, मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार के साथ गाने गाए हैं और उनके गाने बाक़ायदा हिट भी हुए हैं. उनका एक गाना जॉनी वॉकर और जयश्री टी के साथ फ़िल्माया गया था - मेरे पाश आवो, मेरा नाम रावो.
उस दौर को याद करते हुए डैनी खुलकर हँसते हैं और कहते हैं कि आप मुझे पौराणिक समय की बात याद दिला रहे हैं. जो किरदार जॉनी वॉकर ने किया वो पहले डैनी को मिला था पर आख़िरी वक़्त में उनका रोल कट गया. लेकिन सचिन देब बर्मन ने ज़िद करके कहा कि गाना तो डैनी की आवाज़ में ही जाएगा और आख़िरकार गया भी.
पर गंगतोक के आगे की पहाड़ियों के अपने घर में सुकून से बैठे डैनी ने टेलीफ़ोन पर गाना तो दूर गुनगुनाने से भी इनकार कर दिया. बिना रियाज़ के गाना उन्हें गवारा नहीं.