क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

शरीर भस्म हो गया, पर नहीं जलीं कस्तूरबा गांधी की पांच चूड़ियाँ

महात्मा गांधी बंबई के शिवाजी पार्क में एक बहुत बड़ी जनसभा को संबोधित करने वाले थे कि उससे एक दिन पहले 9 अगस्त 1942 को उन्हें बंबई के बिरला हाऊस से गिरफ़्तार कर लिया गया.

गांधी की गिरफ़्तारी के बाद सबसे बड़ा सवाल उठा कि उस सभा का मुख्य वक्ता कौन होगा? उस समय पूरी बंबई में गांधी के क़द का कोई भी शख़्स मौजूद नहीं था. 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

महात्मा गांधी बंबई के शिवाजी पार्क में एक बहुत बड़ी जनसभा को संबोधित करने वाले थे कि उससे एक दिन पहले 9 अगस्त 1942 को उन्हें बंबई के बिरला हाऊस से गिरफ़्तार कर लिया गया.

गांधी की गिरफ़्तारी के बाद सबसे बड़ा सवाल उठा कि उस सभा का मुख्य वक्ता कौन होगा? उस समय पूरी बंबई में गांधी के क़द का कोई भी शख़्स मौजूद नहीं था. तभी कस्तूरबा अचानक बोली थीं, "परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. मैं मीटिंग को संबोधित करूंगी."

कस्तूरबा की ये बात सुन कर सब दंग रह गए थे, क्योंकि बा न सिर्फ़ बीमार थीं, बल्कि इससे पहले उन्होंने कभी भी इस स्तर की जनसभा को संबोधित नहीं किया था. बा ने सभा से एक घंटे पहले सुशीला नय्यर को अपना भाषण 'डिक्टेट' कराया और शिवाजी पार्क में जाने के लिए कार में बैठ गईं.

उन्होंने डेढ़ लाख लोगों की सभा को संबोधित किया. उनकी आवाज़ सुन कर पूरा माहौल भावपूर्ण हो गया. बहुत से लोगों की आंखें नम हो आईं.

जैसे ही उनका भाषण ख़त्म हुआ, पुलिस ने उन्हें और सुशीला नय्यर के साथ गिरफ़्तार कर लिया. तीस घंटों तक उन्हें सामान्य अपराधियों के साथ एक काल कोठरी में रखा गया. उसके बाद उन्हें पूना (पुणे) के आग़ा ख़ाँ पैलेस में ले जाया गया जहाँ महात्मा गांधी पहले से ही क़ैद थे.

वो 8 महिलाएं, जिनके करीब रहे महात्मा गांधी

गांधी के कितने नज़दीक थे पटेल?

कस्तूरबा
Keystone/Getty Images
कस्तूरबा

बा को तीन बार पड़े दिल के दौरे

लेकिन दो महीने बाद ही बा को गंभीर किस्म को 'ब्रोंकाइटिस' हो गया. उनको एक के बाद एक तीन दिल के दौरे पड़े. कस्तूरबा बेहद कमज़ोर हो गईं और अपना सारा समय बिस्तर पर ही गुज़ारने लगीं.

गांधी अक्सर उनके बग़ल में बैठे रहते. उन्होंने उनके लिए एक लकड़ी की छोटी मेज़ बनवाई जो उनकी पलंग पर रख दी जाती ताकि वो आराम से खाना खा सकें. बाद में बापू के लिए ये मेज़ कस्तूरबा की सबसे बड़ी याद बन गई. उनकी मौत के बाद वो जहाँ भी जाते, उस छोटी मेज़ को अपने साथ ले जाते.

जब गांधीजी ने सूट-बूट छोड़ धोती अपनाई

जेल में मना साबरमती के संत का जन्म दिन

गांधी ने नहीं दी पेनिसिलीन इंजेक्शन लगाने की इजाज़त

जनवरी 1944 तक गांधी को लगने लग गया था कि कस्तूरबा अब कुछ ही दिनों की मेहमान हैं. उनके देहांत से एक महीने पहले 27 जनवरी को उन्होंने गृह विभाग को लिखा कि कस्तूरबा को देखने के लिए मशहूर डाक्टर, डाक्टर दिनशा को बुलाया जाए.

उन्होंने ये भी अनुरोध किया कि उनकी पोती कनु गांधी को उनके साथ रहने दिया जाए. कनु ने इससे पहले भी कस्तूरबा की देखभाल की थी और वो अक्सर भजन और गीत सुना कर बा का मन बहलाए रखती थीं.

3 फ़रवरी को कनु को बा के साथ रहने की अनुमति तो मिल गई लेकिन डाक्टर बुलाने के गांधी के अनुरोध को सरकार ने स्वीकार नहीं किया. बा के जीवन के अंतिम दिनों में डाक्टर वैद्य राज जेल के बाहर अपनी कार खड़ी कर उसी में सोते थे ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें तुरंत बुलाया जा सके.

भारत में ट्रेन की शुरुआत का अमरीकी कनेक्शन

एक नई जंग लड़ रही हैं ये आदिवासी लड़कियां

बा को बचाने के आख़िरी प्रयास के तौर पर उनके बेटे देवदास गांधी ने कलकत्ता से 'पेनिसिलीन' दवा मंगवाई. 'पेनिसिलीन' उस ज़माने की नई 'वंडर ड्रग' थी. लेकिन जब गाँधी को पता चला कि 'पेनिसिलीन' को कस्तूरबा को 'इंजेक्ट' किया जाएगा, तो उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी.

गांधी ने अगले कुछ दिन बा के बग़ल में उनका हाथ पकड़े हुए बिताए. उनके बेटे हरिलाल उनको देखने आए. लेकिन वो इस क़दर शराब के नशे में थे कि कस्तूरबा उन्हें देख कर उस हाल में भी अपना सीना पीटने लगीं.

22 फ़रवरी को जब ये साफ़ हो गया कि कस्तूरबा के जीवन के कुछ ही घंटे बचे है तो देवदास ने तीन बजे उनके होठों में गंगा जल की कुछ बूंदे टपकाईं.

गांधी की लाठी थामने वाला चला गया...

गांधी की आत्मकथा याद कर रहे हैं कैदी

गाँधी ने कराया अंतिम स्नान

शाम 7 बज कर 30 मिनट पर कस्तूरबा ने अपनी अंतिम सांस ली. गांधी ने सुशीला नैय्यर और मीरा बेन के साथ मिल कर उन्हें अंतिम स्नान कराया. उनको लाल किनारे वाली वही साड़ी पहनाई गई जो उन्होंने कुछ दिन पहले गांधी के जन्मदिन पर पहनी थी.

गांधी ने अपने हाथों से कस्तूरबा की मांग में सिंदूर लगाया. उनके दाहिने हाथ में शीशे की पांच चूड़ियाँ थीं जो उन्होंने अपने पूरे वैवाहिक जीवन के दौरान हमेशा पहने रखी थीं.

सरकार नहीं चाहती थी कि कस्तूरबा का अंतिम संस्कार सार्वजनिक रूप से हो. गांधी भी अड़ गए. उन्होंने कहा कि या तो पूरे राष्ट्र को कस्तूरबा के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए, या फिर वो अकेले ही उनका अंतिम संस्कार करेंगे.

गांधी के आख़िरी सालों की वो अनदेखी तस्वीरें

भारत खरीदेगा गांधी के पत्रों का अनमोल संग्रह

चंदन की लकड़ियों की चिता

फिर सवाल ये उठा कि बा की चिता के लिए किस तरह लकड़ियों का इंतज़ाम किया जाए. गांधी के कई शुभचिंतकों ने इसके लिए चंदन की लकड़ियाँ भिजवाने की पेशकश की, लेकिन गांधी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया.

गांधी का कहना था कि एक ग़रीब व्यक्ति की पत्नी को वो मंहगी चंदन की लकड़ियों से नहीं जलाएंगे.

जेल के अधिकारियों ने उनसे कहा कि उनके पास पहले से ही चंदन की लकड़ियाँ रखी हैं जो कि उन्होंने इसलिए मंगवाई थीं कि उन्हें डर था कि गांधी फ़रवरी 1943 में 21 दिनों तक किए गए उपवास में बच नहीं पाएंगे.

आख़िर में गांधी उन लकड़ियों के इस्तेमाल के लिए राज़ी हो गए. उन्होंने कहा कि अगर वो लकड़ियाँ मेरी चिता के लिए मंगवाई गई थीं, तो उनका इस्तेमाल उनकी पत्नी की चिता के लिए हो सकता है.

क्या है गांधी-कालेनबाख के पत्रों में?

'दक्षिण अफ्रीका ना जाते, तो गांधी गांधी न होते'

अंतिम समय तक गांधी बैठे रहे

अगले दिन दस बजे क़रीब 150 लोग उस जगह पर एकत्रित हुए जहाँ कुछ दिन पहले महात्मा गांधी के निकटतम सहयोगी महादेव देसाई की चिता जलाई गई थी.

बा के पार्थिव शरीर को उनके दोनों बेटों, प्यारे लाल और स्वयं गांधी ने कंधा दिया. देवदास ने चिता में आग लगाई और गांधी तब तक चिता के सामने एक पेड़ के नीचे बैठे रहे जब कि उसकी लौ पूरी तरह से बुझ नहीं गई.

लोगों ने गांधी से कहा भी आप अपने कमरे में जाइए. गांधी का जवाब था, "उसके साथ 62 सालों तक रहने के बाद मैं इस धरती पर उसके आख़िरी क्षणों में उसका साथ कैसे छोड़ सकता हूँ. अगर मैं ऐसा करता हूँ तो वो मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी."

जब गांधी बा के रहते किसी और के प्यार में पड़े

गांधी के जीवनीकार प्रमोद कपूर के साथ बीबीसी स्टूडियो में रेहान फ़ज़ल
BBC
गांधी के जीवनीकार प्रमोद कपूर के साथ बीबीसी स्टूडियो में रेहान फ़ज़ल

कस्तूरबा हमेशा रहेंगीं

अंतिम संस्कार के चौथे दिन जब रामदास और देवदास ने कस्तूरबा की अस्थियाँ जमा कीं तो उन्होंने पाया कि कस्तूरबा के शीशे की पाँच चूड़ियाँ पूरी तरह से साबूत थी. आग का उन पर कोई असर नहीं हुआ था.

गांधी को जब ये बात बताई गई तो उन्होंने कहा कि ये संकेत है कि कस्तूरबा हमारे बीच से गई नहीं हैं. वो हमारे साथ हमेशा रहेंगीं.

(गांधी के जीवनीकार प्रमोद कपूर से बातचीत पर आधारित)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Body was burnt but not burnt Kasturba Gandhis five bangles
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X