ब्लॉग: चुटिया और तिलक कब दिखाएँगे राहुल गाँधी?
कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की जनेऊ-धर्मिता के रहस्योद्घाटन पर राजेश जोशी का ब्लॉग.
'जनेऊधारी हिन्दू' और 'शिवभक्त' राहुल गाँधी जब माथे पर त्रिपुंड लगाए, उघारे बदन, शिवस्त्रोत का सस्वर पाठ करते हुए जब यू-ट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड करेंगे तो कल्पना कीजिए भारतीय राजनीति में कितना रस आ जाएगा.
जनेऊ की ख़ास बात ये है कि आम तौर पर वो तब ही नज़र आती है जब पहनने वाला उघारे बदन पूजा-अर्चना और हवन करता हुआ दिखे या उसे कान में लपेटकर लघु या दीर्घ शंका का निवारण कर रहा हो. या फिर कोई उसके संस्कार को ललकार दे.
काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की जनेऊ-धर्मिता का रहस्योद्घाटन तब हुआ जब उनके हिन्दू संस्कारों को ललकारा गया. वो भी गुजरात के करो-या-मरो वाले चुनावों के ऐन बीच में जब वो सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने गए थे.
मैंने कभी राहुल गाँधी की जनेऊ नहीं देखी. पर शायद अब नेताओं में अपनी-अपनी जनेऊ दिखाने की होड़ लग जाए और अगर अब आपको यू-ट्यूब पर यज्ञ-हवन या किसी न किसी और बहाने से नेता अपना कुर्ता उतार कर छह पल्ली जनेऊ का प्रदर्शन करते हुए दिखें तो आश्चर्य मत कीजिएगा. पिछले तीन बरस में भारतीय राजनीति ने लंबा सफ़र तय कर लिया है - अब क्रोशिए की जालीदार टोपी नहीं बल्कि कंधे पर पड़ा मोटा जनेऊ भारतीय राजनीति का नया फ़ैशन स्टेटमेंट है.
'धर्म का सवाल तो सोनिया से भी पूछा गया था...'
जनेऊ को फ़ैशन स्टेटमेंट बनाने में हालाँकि कई तरह की चुनौतियाँ और ख़तरे भी हैं. ये क्रोशिए की वो जालीदार टोपी नहीं है जिसे पहनकर पिछले ज़माने में अर्जुन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जैसा कोई भी नेता ख़ुशी-ख़ुशी इफ़्तार पार्टियाँ दिया करता था और उसे उनकी धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफ़िकेट माना जाता था. राजनीति के नए दौर में जनेऊ की विरासत का मालिक किसे माना जाएगा? क्या रामविलास पासवान, उदित राज, प्रकाश आंबेडकर जैसे दलित नेताओं को भी राहुल गाँधी की तरह जनेऊ-परंपरा का वाहक होने की इजाज़त दी जाएगी?
जनेऊधारी हिंदू राहुल गाँधी!
राहुल गाँधी ने भी अपनी जनेऊ के रहस्य पर से ख़ुद पर्दा नहीं उठाया. उनकी ओर से ये काम काँग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके किया. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को छिप कर वार करने वाली कायर पार्टी बताया और पत्रकारों को इस रहस्य से अवगत करवाया कि "न केवल काँग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गाँधी हिन्दू धर्म से हैं, परन्तु वो जनेऊधारी हिन्दू हैं."
ये ऐलान करते वक़्त लाखों करोड़ों जाटव, वाल्मीकि, खटीक, निषाद, राजभर नौजवानों की तरफ़ सुरजेवाला का ध्यान भी नहीं गया होगा जिन्हें वर्ण व्यवस्था में जनेऊ पहनने की इजाज़त ही नहीं है. दशकों पहले आर्यसमाज ने दलितों को जनेऊ पहनाने और गायत्री मंत्र पढ़ने के लिए आंदोलन चलाया था, पर वर्णाश्रम व्यवस्था के कड़े नियम उस आंदोलन के कारण बदले नहीं गए.
गुजरात चुनाव और मंदिर में राहुल गांधी!
नेहरू और सोमनाथ मंदिर का कनेक्शन क्या है?
सोनिया गाँधी के बाद 'सेक्युलर' काँग्रेस के सबसे बड़े नेता की 'उच्च-वर्णीय' हिन्दू पहचान के इस खुले ऐलान से नागपुर में बैठे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकारियों के कानों में निश्चित तौर पर रस घुल गया होगा. केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर मोहन भागवत तक संघ के अधिकारियों की तमाम पीढ़ियाँ पिछले नौ दशकों से इसी दिन का इंतज़ार कर रही थीं. उनका नारा भी है: जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा.
यानी अगर कल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी भी ऐलान कर दें कि वो प्रतिदिन प्रात:काल गायत्री मंत्र का जाप करके ही अन्न का दाना अपने मुँह में रखते हैं, या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा व्यवस्था दे दें कि नवरात्रियों को सभी पार्टी काडर पूरे देशभर में नौ के नौ दिन व्रत रखेंगे, तो उम्मीद की जा सकती है कि शायद संघ उनके प्रति भी नरमी बरतना शुरू कर दे.
हिंदू हित
राहुल गाँधी के जनेऊधारी होने (कोई नहीं जानता कि वो वाक़ई जनेऊधारी है भी या नहीं) को काँग्रेस एक तमग़े, एक राजनीतिक प्रतिघात की तरह पेश कर रही है, वो दरअसल हिन्दू हित की संघ परिवार वाली परिभाषा में एकदम फ़िट बैठता है. इससे संघ को कोई ऐतराज़ नहीं होगा.
संघ को ऐतराज़ और भय उस हिंदू विचार से लगता था जिसका प्रचार बिड़ला भवन की प्रार्थना सभाओं में हर शाम मोहनदास करमचंद गाँधी किया करते थे. नाथूराम गोडसे के हाथों उनकी हत्या से दस दिन पहले यानी 20 जनवरी 1948 को मदनलाल पाहवा ने महात्मा गाँधी की प्रार्थना सभा में बम विस्फोट किया था. तब गाँधी ने कहा था कि इस नौजवान (पाहवा) के पीछे जो संगठन हैं मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि हिन्दू धर्म को आप ऐसे नहीं बचा सकते. उन्होंने कहा, "मेरा तो दावा है कि जो काम मैं कर रहा हूँ हिन्दू धर्म उससे ही बचेगा."
और सुरजेवाला को ये ग़लतफ़हमी है कि राहुल गाँधी के जनेऊ की मोटाई बताकर काँग्रेस नरेंद्र मोदी से हिन्दुत्व की राजनीतिक पहल छीन सकती है. लगता है राहुल गाँधी को भी एहसास हो गया है कि देश पर राज करने के सपने देखने हैं तो हिन्दू हित की बात तो करनी ही होगी. उनके लिए इफ़्तार की दावत में मुसलमानों की जालीदार टोपी पहनकर सामने आने की बजाए ख़ुद को जनेऊधारी हिन्दू बताना ज्यादा आसान और लाभकारी लगता है. तो क्या आप गुजरात चुनावों के दौरान राहुल गाँधी और काँग्रेस के किसी भी नेता से नरोदा पाटिया या बेस्ट बेकरी जाकर 2002 के दंगों में कुचल दिए गए मुसलमानों का हाल जानने की उम्मीद करते हैं?
आरएसएस की बिसात
यानी आरएसएस ने बिसात बिछा दी है और राजनीतिक हिंदुत्व का एजेंडा सेट कर दिया है. अब संघ की बिछाई इस बिसात पर टिके रहने भर के लिए काँग्रेसी नेताओं को ख़ुद को संघ-दीक्षित नेताओं से बड़ा हिन्दुत्व का पैरोकार साबित करना होगा. आरएसएस के प्रखर प्रचारक रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जिस राजनीति की शुरुआत की है उसमें मुसलमान वोटर हाशिए पर है. अब होड़ 'हिन्दुत्व' के प्रति निष्ठा दिखाने की है.
इस राजनीतिक बिसात में नरेंद्र मोदी बेखटके विचरण करते हैं और जैसे चाहें वैसे अपने मोहरे चलते हैं. उनको जब मन आता है राजनीतिक बहस को क़ब्रिस्तान-श्मशान की ओर मोड़ देते हैं. जब चाहें पंडित जवाहरलाल नेहरू को सोमनाथ मंदिर के विरोधी की तरह पेश कर देते हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जालीदार टोपी पहनने से इनकार कर चुके मोदी जब चाहते हैं तो विदेशी मेहमानों को अहमदाबाद की मस्जिद दिखाने भी ले जाते हैं. पर ये सब को किसी राजनीतिक दबाव में नहीं अपनी शर्तों पर करते हैं. पर दूसरे कोने से मुग़लों को इतिहास की किताबों से मिटा देने की या फिर ताजमहल को तेजो महालय शिवमंदिर साबित करने मुहिम ज़ोरों से चल रही होती है.
जब हिन्दुत्व की ये होड़ यहाँ तक पहुँच ही गई है तो राहुल गाँधी इस विमर्श को और आगे बढ़ा सकते हैं. जिस तरह वो अपने कुत्ते पिद्दी को बिस्किट खिलाने के वीडियो सोशल मीडिया पर जारी करते हैं, कल्पना कीजिए अगर उसी तरह चुटिया बढ़ाए, तिलक लगाए, उघारे बदन, मोटी जनेऊ पहने दुर्गा सप्तशती या शिवस्त्रोत का सस्वर पाठ करते हुए अपना वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड कर दें तो देश की राजनीति में कैसा रस आ जाएगा!
माता का जयकारा क्यों लगा रहे हैं राहुल गांधी?