क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ब्लॉग: वो जंगली कुत्ते कौन हैं जिनसे हिंदू शेर को ख़तरा है?

मोहन भागवत ने एक बेहद ज़रूरी बात बताई जिससे संघ की कार्यशैली का अंदाज़ा मिलता है. उन्होंने विस्तार से समझाया किस तरह लोगों को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि एक-दूसरे का विरोध करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सबको अपने-अपने तरीक़े से लक्ष्य को ध्यान में रखकर, अपने आगे चल रहे लोगों से कदम मिलाकर चलना चाहिए.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

ग्यारह सितंबर 1893 को शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में विवेकानंद के भाषण की याद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी शिकागो में ही आठ सितंबर को एक भाषण दिया है.

11 सितंबर की जगह आठ सितंबर क्योंकि सप्ताहांत न हो तो काम छोड़कर अमरीका में भाषण सुनने लोग नहीं आते, और विश्व धर्म संसद की जगह विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया. आप मोहन भागवत के अंग्रेज़ी में दिए गए 41 मिनट का भाषण सुनेंगे तो आपको समझ में आएगा कि उन्होंने विवेकानंद से कोई प्रेरणा नहीं ली है.

पूरे भाषण के दौरान अमरीकी झंडा बैकग्राउंड में था, वहां न तो कोई भगवा ध्वज था, न ही तिरंगा.

बहरहाल, उन्होंने कई बातें कहीं जिन पर ग़ौर किया जाना चाहिए क्योंकि वो मामूली व्यक्ति नहीं हैं, संसार के सबसे बड़े एनजीओ के प्रमुख हैं जिसे भारत की मौजूदा सरकार अपनी प्रगति रिपोर्ट पेश करती है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा की 'मातृसंस्था' है.

'भारत ज्ञानी रहा है फिर क्यों आई मुसीबतें'

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में हमेशा से समस्त संसार का ज्ञान रहा है, भारत के आम लोग भी इन बातों को समझते हैं. इसके बाद उन्होंने एक दिलचस्प सवाल पूछा, "फिर क्या ग़लत हो गया, हम हज़ार साल से मुसीबत क्यों झेल रहे हैं?" इसका जवाब उन्होंने दिया कि ऐसा इसलिए हुआ कि 'हमने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के मुताबिक जीना छोड़ दिया.'

ग़ौर करिए कि उन्होंने हज़ार साल की मुसीबत क्यों कहा? संघ का मानना है कि भारत के दुर्दिन अंग्रेज़ी राज से नहीं बल्कि मुसलमानों के हमलों से शुरू हुए, मुग़ल काल को भी वे मुसीबत का दौर मानते हैं.

दरअसल, ऐसे मौक़े याद नहीं आते जब संघ ने अंग्रेज़ी हुकूमत की आलोचना की हो, न अतीत में, न वर्तमान में. आलोचना के मामले में मुग़ल उनके प्रिय रहे हैं.

इसके बाद उन्होंने एक और दिलचस्प बात कही, "आज की तारीख़ में हिंदू समाज दुनिया का ऐसा समाज है जिसमें हर क्षेत्र के मेधावी लोग सबसे अधिक संख्या में मौजूद हैं." न जाने उन्होंने यह निष्कर्ष किस आधार पर निकाला कि हिंदू, अपने हिंदू होने की वजह से यहूदियों, ईसाइयों या मुसलमानों से अधिक प्रतिभाशाली हैं?

राहुल बोले- भागवत का बयान शर्मनाक, संघ की सफाई

यह हिंदू गौरव को जगाने की उनकी कोशिश थी, इसके फ़ौरन बाद उन्होंने कहा कि हिंदू एकजुट होकर काम नहीं करते, यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है. उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि एकजुट होने के आह्वान पर हिंदू कहते रहे हैं कि "शेर कभी झुंड में नहीं चलते."

उन्होंने कहा, "जंगल का राजा, रॉयल बंगाल टाइगर भी अगर अकेला हो तो जंगली कुत्ते उसे घेरकर, हमला करके मार दे सकते हैं." उनके ऐसा कहते ही हॉल तालियों से गूंज उठा, उन्हें कहने-बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि वे जंगली कुत्ते किसको कह रहे हैं. ये वही कुत्ते हैं जिनके पिल्ले गाड़ी के नीचे आ जाएं तो प्रधानमंत्री मोदी जी को दुख होता है.

"हिंदू होने पर गर्व करना चाहिए", "हिंदू ख़तरे में हैं" और "हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए"... ये सब संघ का स्थायी भाव है. हिंदुओं को किससे ख़तरा है? हिंदुओं को किस लक्ष्य के लिए एकजुट होना चाहिए, किसके ख़िलाफ़ एकजुट होना चाहिए, इन सवालों के जवाब इशारों में समझाए जाते हैं, चुनाव जैसी विकट स्थितियों में ही मंच से क़ब्रिस्तान-श्मशान कहना पड़ता है.


जस्टिस हेगड़े क्यों बोले...'वर्ना भारत को भगवान बचाए'


सरकार आपकी, शेर हैं आप, पुलिस और प्रशासन भी आपका है, डर भी आप ही को लग रहा है. आमिर ख़ान की बीवी किरण राव को डर लगता है वो ग़लत है, आपका वाला डर सच्चा है. क्या ग़ज़ब का डर है.

'हिंदू साम्राज्य' की व्यापकता

मोहन भागवत ने कहा कि सभी हिंदू दुनिया को बेहतर बनाना चाहते हैं, वे ईमानदारी से ऐसा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, "हमारा उद्देश्य किसी पर वर्चस्व कायम करना नहीं रहा है, इतिहास में हमारा प्रभाव बहुत रहा है और मेक्सिको से साइबेरिया तक, वहां पर हिंदू साम्राज्य थे, आज भी उन प्रभावों को देखा जा सकता है, और कमाल की बात है कि वहां के लोग इन प्रभावों को संजोकर रखते हैं."

उन्होंने इनके नाम तो नहीं लिए लेकिन माया, इन्का, यूनान और मिस्र जैसी प्राचीन सभ्यताओं के सभी प्रकृतिपूजकों और मूर्तिपूजकों को एक झटके में हिंदू घोषित कर दिया, उन्हें हिंदू साम्राज्य बताकर, वो भारत को गौरवशाली हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जोश का वातावरण तैयार करना चाहते हैं.

अपने भाषण में भागवत ने महाभारत का ज़िक्र छेड़ा, उन्होंने कहा कि "आज के आधुनिक समय में हिंदुओं की अवस्था वही है जो महाभारत में पांडवों की थी."

'जज' उमा का आदेश - खाल में नमक-मिर्च भर दो

आरएसएस
Getty Images
आरएसएस

इस छोटे से वाक्य में गहरे अर्थ छिपे हैं, ये कि हिंदू पीड़ित हैं, अन्याय के शिकार हैं और उन्हें अपने अधिकार हासिल करने के लिए धर्मयुद्ध लड़ना होगा. इसके बाद वो हनुमान की कथा सुनाने लगे कि कैसे उन्होंने दृढ़ संकल्प से समुद्र पार कर लिया.

उन्होंने कहा, "हिंदुओं के सारे काम सबके कल्याण के लिए होते हैं, हिंदू कभी किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते. दुनिया भर में कीटनाशक इस्तेमाल होते हैं, लेकिन हिंदू वह समाज है जिसने कीट-पतंगों के जीवित रहने के अधिकार को स्वीकार किया." उन्होंने बताया कि हिंदू कितने सहिष्णु हैं, लेकिन मौजूदा हालात में कीड़े-मकौड़े किनको कहा जा रहा है, ये उन्होंने लोगों की कल्पना पर छोड़ दिया.

भागवत ने कहा कि "हम किसी का विरोध नहीं करते, लेकिन ऐसे लोग हैं जो हमारा विरोध करते हैं, ऐसे लोगों से निबटना होगा, और उसके लिए हमें हर साधन, हर उपकरण चाहिए ताकि हम अपनी रक्षा कर सकें कि वे हमें नुकसान न पहुंचा सकें." वे लोग कौन हैं फिर नहीं बताया गया, सब जानते तो हैं ही.

जब विवेकानंद ने गोरक्षक से पूछे कई मुश्किल सवाल

विवेकानंद ने शिकागो के भाषण में क्या कहा था?

लक्ष्य, दिशा और कार्यशैली

मोहन भागवत ने एक बेहद ज़रूरी बात बताई जिससे संघ की कार्यशैली का अंदाज़ा मिलता है. उन्होंने विस्तार से समझाया किस तरह लोगों को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि एक-दूसरे का विरोध करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सबको अपने-अपने तरीक़े से लक्ष्य को ध्यान में रखकर, अपने आगे चल रहे लोगों से कदम मिलाकर चलना चाहिए.

अमित शाह
Getty Images
अमित शाह

उन्होंने अँग्रेज़ी का मुहावरा इस्तेमाल किया, 'लर्न टू वर्क टूगेदर सेपरेटली' यानी साथ मिलकर अलग-अलग काम करना सीखें. यही संघ के काम करने का तरीका है, वह सैकड़ों छोटे संगठनों के ज़रिए काम करता है, सब अलग-अलग काम करते हैं और सब एक ही लक्ष्य के लिए काम करते हैं, वक़्त-ज़रूरत के हिसाब रास्ते चुनते हैं, लेकिन उनके किसी भी काम की कोई ज़िम्मेदारी संघ की नहीं होती.

एक-दूसरे से दूरी रखते हुए, निकटता बनाए रखना और एक तरह से अदृश्य शक्ति में बदल जाना यही संघ का मायावी रूप रहा है. मिसाल के तौर पर अगर किसी अवैध या हिंसक गतिविधि में बजरंग दल या विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता पकड़े जाते हैं, ऐसा अनेक बार हो चुका है, तो कोई ये नहीं कह पाता कि संघ का इसमें कोई हाथ है क्योंकि यहीं 'वर्किंग टूगेदर सेपरेटली' काम आता है, जिसका ज्ञान शिकागो में मिला.

भागवत ने कहा कि महाभारत में कृष्ण युधिष्ठिर को कभी रोकते-टोकते नहीं हैं, युधिष्ठिर जो हमेशा सच बोलने की वजह से धर्मराज कहे जाते हैं, "कृष्ण के कहने पर वही युधिष्ठिर लड़ाई के मैदान में ऐसा कुछ कहते हैं जो सच नहीं है". उन्होंने ज़्यादा विवरण नहीं दिया, उनका इशारा युधिष्ठिर के उस अर्धसत्य की तरफ़ था जब उन्होंने कहा था-अश्वत्थामा मारा गया.

भागवत का इशारा यही था कि परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नेतृत्व अगर झूठ बोले या बोलने को कहे तो इसमें कोई बुराई नहीं है, मतलब साफ़ था कि कोई धर्मराज से बड़ा सत्यवादी बनने की कोशिश न करे. उन्होंने कहा कि सबको अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए, रामलीला की तरह जिसमें कोई राम बनता है, कोई रावण, लेकिन सबको असल में याद रखना चाहिए वे कौन हैं और उनका लक्ष्य क्या है.

अब उन्हें यह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ने लगी कि वह लक्ष्य क्या है? वह लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है.

अपने 41 मिनट लंबे भाषण में उन्होंने विवेकानंद का नाम सिर्फ़ एक बार यह साबित करने के लिए लिया कि वे जो कह रहे हैं वह सही है. वैसे भी संघ के लोग कभी नहीं बताते विवेकानंद, भगत सिंह, सरदार पटेल या महात्मा गांधी या किसी दूसरी अमर विभूति ने दरअसल कहा क्या था क्योंकि उसमें बड़े ख़तरे हैं.


ये भी पढ़ें:

ब्लॉग: किस संघर्ष का इंतज़ार है मोहन भागवत को?

दलित गौरव की बात सवर्ण हिंदुओं के लिए तकलीफ़देह क्यों?

क्या वाकई संघ से हमदर्दी रखते थे सरदार पटेल?

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Blog Who are the wild dogs from whom the Hindu lion is in danger
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X