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ब्लॉग: भारत और चीन की नई नज़दीकियों का राज़ क्या है?

ज़रा सोचिए, भारत और चीन के बीच पिछले साल डोकलाम में महीनों तक तना-तनी थी लेकिन आज दोनों देशों के बीच नफ़रतें काफ़ी घटी हैं. पिछले कुछ हफ़्तों में अचानक से भारत और चीन एक दूसरे के निकट आते नज़र आ रहे हैं. इसकी शुरुआत अप्रैल के आख़री दिनों में चीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक बातचीत से हुई.

By BBC News हिन्दी
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शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी
Getty Images
शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी

ज़रा सोचिए, भारत और चीन के बीच पिछले साल डोकलाम में महीनों तक तना-तनी थी लेकिन आज दोनों देशों के बीच नफ़रतें काफ़ी घटी हैं.

पिछले कुछ हफ़्तों में अचानक से भारत और चीन एक दूसरे के निकट आते नज़र आ रहे हैं.

इसकी शुरुआत अप्रैल के आख़री दिनों में चीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक बातचीत से हुई.

इन नज़दीकियों के कई कारण हैं. एक ख़ास वजह है अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की तरफ़ से चीन पर स्टील और एल्यूमीनियम टैरिफ लगाए जाने की घोषणा का किया जाना.

चीन और अमरीका के बीच "व्यापार युद्ध" कुछ महीने पहले से ही जारी था. अब चीन ने भी अमरीका के ख़िलाफ़ क़दम उठाए हैं जिसके कारण इसमें तेज़ी आई है.

ट्रंप
AFP
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घोषणा

उस पर से अब राष्ट्रपति ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ पर भी स्टील और एल्यूमीनियम टैरिफ लगाने का एलान कर दिया.

इस कारण अमरीका के सबसे क़रीबी सहयोगी देश और पड़ोसी कनाडा ने भी पलट वार किया और अमरीका की कई वस्तुओं पर टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर दी.

अमरीका के दूसरे पड़ोसी मैक्सिको ने भी इसी तरह के क़दम उठाने का एलान कर दिया.

उधर उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के साथ सम्मलेन पर रज़ामंदी करके ट्रंप ने जापान को ख़ुद से दूर कर दिया है. जापान उत्तर कोरिया के नेता पर बिल्कुल भरोसा नहीं करता.

इस पृष्ठभूमि में कनाडा में जी-7 में शामिल दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन शुरू हो रहा है.

जी-7 देशों का ये 44वां सम्मलेन है जिसमें विश्व की कई बड़ी समस्याओं पर विचार होगा.

आम तौर से इस सालाना सम्मलेन में इन देशों के बीच गर्मजोशी वाले रिश्ते उजागर किए जाते हैं और मतभेदों पर लीपापोती की जाती है.

लेकिन इस बार राष्ट्रपति ट्रंप सम्मलेन में ख़ुद को अकेला महसूस करेंगे.

इस ग्रुप के नेता ट्रंप से सख्त नाराज़ हैं. अब देखना है कि पहले वाला वातावरण नज़र आएगा या नहीं.

ट्रंप
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ट्रंप

जी-7 के सदस्य देशों में अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस, इटली, जापान और कनाडा शामिल हैं. रूस और चीन इस क्लब के सदस्य नहीं हैं.

भारत भी इस लिस्ट में शामिल नहीं है. बड़े देशों का ये विशेष क्लब हाल के कुछ सालों में संगठित रूप से रूस और चीन की बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने का प्रयास करता आ रहा है.

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि ये पश्चिमी और विकसित देशों का एक शक्तिशाली ग्रुप है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध की एक तरह से विरासत है.

हालांकि इस युद्ध में अमरीका और सोवियत यूनियन एकजुट होकर जर्मनी और जापान के ख़िलाफ़ लड़े थे.

लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक नया विश्व क्रम बना जिसमें अमरीका, जर्मनी, जापान और यूरोप एक तरफ़ और कम्युनिस्ट रूस और इसके दोस्त देश दूसरे ख़ेमे में जा गिरे.

दोनों खेमों के बीच शीत युद्ध दशकों तक चला. साल 1991 में सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद अमरीका ने इस वर्ल्ड आर्डर का नेतृत्व किया.

अमरीका ने हमेशा से अपने सहयोगी देशों को साथ लेकर चलने की कोशिश की.

भारत-चीन
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भारत-चीन

असर

लेकिन 2016 में डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद एक नया विश्व क्रम बनता दिखाई देता है जहाँ दो शत्रु देश अब आपस में क़रीब आते दिखते हैं और मित्र देश आपस में विभाजित.

क्या जी-7 की परंपरागत एकता क़ायम रहेगी? क्या इसी सम्मलेन से एक नए वर्ल्ड ऑर्डर का पुनर्निर्माण होगा?

चीन के माल पर लगे अमरीकी टैरिफ़ ने चीन को रूस के और क़रीब कर दिया है और अब चीन, आपसी मतभेद अलग करके, भारत के क़रीब भी आ रहा है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के ख़िलाफ़ सीधे तौर पर कोई क़दम नहीं उठाए हैं लेकिन राष्ट्रपति बुश और राष्ट्रपति ओबामा के समय वाली रिश्तों में गर्मजोशी ग़ायब है.

भारत ट्रंप की "कभी हाँ-कभी ना" वाली पॉलिसी से उलझन में है. दूसरी तरफ़ अमरीका-चीन व्यापर युद्ध और दूसरे बड़े देशों के ख़िलाफ़ उठाए क़दम का बुरा असर भारत पर भी पड़ सकता है.

उधर ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमरीका का अलग होना और इसके बाद ईरान पर सख़्त पाबंदियां लगाना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है.

ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. अगर अमरीका ने भारत को इस बात के लिए मजबूर किया कि वो ईरान से तेल खरीदना बंद करे तो इससे भारत की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो सकती है.

सुषमा स्वराज
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सुषमा स्वराज

भारत का रुख़

हालांकि भरतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पिछले हफ़्ते बड़े उत्साह के साथ कहा था कि भारत केवल संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करेगा.

लेकिन अगर ट्रंप ने ईरान के साथ व्यापर करने वाली भारतीय कंपनियों को निशाना बनाया तो भारत के पास इसका पालन करने के अलावा कुछ अधिक विकल्प नहीं होगा.

शायद इसीलिए चीन से हाथ मिलाना भारत के हित में होगा. वैसे भी चीन की तरह भारत भी विश्व के कुछ गिने-चुने देशों में है जिसकी अर्थव्यवस्था विकास के रस्ते पर तेज़ी से दौड़ रही है.

इस समय भारत नहीं चाहेगा कि इस दौड़ में कोई रुकावट पैदा हो.

परिवर्तन कोई बुरी चीज़ नहीं होती. शायद राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों से एक नया वर्ल्ड आर्डर बने जिसमें शायद अमरीका अपने को अकेला पाए.

BBC Hindi
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English summary
What is the secret of India China comes closer.
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