ब्लॉग: क्या होता है जब बंद बोतल खुलती है?
सोचने की बात ये है कि अगर लड़कियां शादी से पहले सेक्स करती हैं तो कोई लड़का साथ होता ही होगा, दोनों ही सील तोड़ते होंगे और बोतल में बंद बुलबुले झूमकर साथ आज़ाद होते होंगे.
देखा जाए तो सवाल लड़कियों से ही नहीं लड़कों से भी होने चाहिए. पर इतने सवाल हो ही क्यों?
इन वयस्क लड़के-लड़कियों की आज़ादी से क्यों डरते हैं? इनकी बोतल के जिन्न से इन्हें ख़ुद निपटने दें.
एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर 'वर्जिनिटी' के बारे लड़कों की अज्ञानता और अनदेखी से बहुत चिंतित हैं.
फ़ेसबुक पर युवा वर्ग को संस्कारों और मूल्यों के बारे में सलाह देने के मक़सद से उन्होंने लिखा कि लड़कों को लड़की के 'वर्जिन' होने की जानकारी रखनी चाहिए क्योंकि "वर्जिन लड़की सीलबंद बोतल की तरह होती है, क्या कोल्ड ड्रिंक या बिस्कुट ख़रीदते समय वो टूटी सील वाली चीज़ पसंद करेंगे?"
अब इस पर क्या ताज्जुब करना. लड़कियों को चीज़ों से जोड़ने, उन्हें उपभोग की वस्तु बताने का चलन तो पुराना है और उसकी जितनी आलोचना की जाए कम है.
विज्ञापनों में कभी मोटरबाइक और कार के लिए ललचाता लड़का उनकी बनावट को लड़की के शरीर से जोड़ता है तो कभी बीयर की बोतल के घुमावदार आकार को लड़की जैसा दिखाया जाता है.
बात इस बार भी उपभोग के इर्दगिर्द ही है. तवज्जो कोल्ड-ड्रिंक और बिस्कुट के आकार पर नहीं बल्कि उनके 'सीलबंद' और 'शुद्ध' होने पर है.
लड़की 'वर्जिन' हो, यानी जिसने कभी यौन संबंध ना बनाया हो, तो शुद्ध है.
बल्कि प्रोफ़सर साहब के मुताबिक लड़की पैदाइश से सीलबंद होती है और 'वर्जिन' पत्नी तो फ़रिश्ते जैसी होती है.
दरअसल, लड़की की शर्म और उपभोग की इच्छा बोतल में बंद रहे तो ठीक है, ख़ुल गई तो ना जाने बोतल में से कौन-सा जिन्न निकल आए.
'वर्जिनिटी टेस्ट'
घबराइए मत, मैं शादी से पहले सेक्स की वकालत नहीं कर रही, वो तो हर लड़के और लड़की की अपनी पसंद-नापसंद पर निर्भर है.
महज़ इस ओर इशारा कर रही हूं कि संस्कारों और मूल्यों की ये हिदायत दरअसल चोगा है.
लड़कियां कहीं आज़ादी से अपनी इच्छाएं ज़ाहिर और पूरी ना करने लगें, इसी डर को संस्कारों की हिदायत तले ढांपने वाला चोगा.
उधर लड़कों की 'वर्जिनिटी' मालूम करने का कोई तरीका नहीं और उन पर संस्कार निभाने का कोई दबाव नहीं.
उन्हें अपनी सील तोड़ने की पूरी आज़ादी है, चाहे शादी से पहले, चाहे उसके बाद.
उनके लिए प्रोफ़ेसर साहब की कोई हिदायत नहीं.
पर लड़कियां कहीं सेक्स की चाहत बयां ना करने लग जाएं. अपने मन को मचलने की इजाज़त ना दे दें.
उनके शरीर पर हक़ जमाने को इतना बेचैन है सारा समाज कि महाराष्ट्र के आदिवासी समुदाय कंजरभाट में शादी की पहली रात के बाद बिस्तर की चादर जांच कर 'वर्जिनिटी टेस्ट' किया जाता है.
अब इसके ख़िलाफ़ लड़कों ने ही मुहिम छेड़ दी है. वो नहीं चाहते कि लड़कियों पर ऐसी सार्वजनिक जांच का कोई दबाव हो या शादी से पहले सेक्स करने की वजह से उन्हें 'अशुद्ध' समझा जाए.
https://www.youtube.com/watch?v=DskYCv9S5y4
सील-बंद
पर प्रोफ़ेसर साहब लिखते हैं कि प्रेम संबंध या शादी की बातचीत के व़क्त लड़कियों को अपने वर्जिन होने के बारे में बताना चाहिए, आशिक़ और पति ज़रूर इसके लिए उन्हें मान देंगे.
वैसे जिस सील के टूटने पर इतना हंगामा बरपा है, उसे बंद करवाने के तरीके भी हैं. 'हाइमनोप्लास्टी' के ज़रिए वजाइना के बाहर की झिल्ली को सिया जा सकता है.
इसका मक़सद तो यौन हिंसा के दौरान वजाइना पर आई चोट को ठीक करना है पर कई पश्चिमी देशों में इसका इस्तेमाल 'वर्जिनिटी' वापस लाने के कॉस्मेटिक तरीके के तौर पर किया जाने लगा है.
अगर यौन संबंध बनाया गया है तो खोई हुई 'वर्जिनिटी' वापस तो नहीं आ सकती पर 'हाइमनोप्लास्टी' के ऑपरेशन के ज़रिए वजाइना को ऐसा रूप दिया जा सकता है कि प्रतीत हो कि उस महिला ने कभी भी यौन संबंध नहीं बनाया है.
समाज में 'वर्जिनिटी' को बहुत महत्व दिए जाने की वजह से कई औरतें शादी से पहले ये ऑपरेशन करवाने की हद तक जा रही हैं.
सोचने की बात ये है कि अगर लड़कियां शादी से पहले सेक्स करती हैं तो कोई लड़का साथ होता ही होगा, दोनों ही सील तोड़ते होंगे और बोतल में बंद बुलबुले झूमकर साथ आज़ाद होते होंगे.
देखा जाए तो सवाल लड़कियों से ही नहीं लड़कों से भी होने चाहिए. पर इतने सवाल हो ही क्यों?
इन वयस्क लड़के-लड़कियों की आज़ादी से क्यों डरते हैं? इनकी बोतल के जिन्न से इन्हें ख़ुद निपटने दें.
शर्म और संस्कार का दबाव ना हो और 'शुद्धता' वर्जिन होने से नहीं, प्यार और शादी के रिश्तों में सच्चाई और साफ़गोई से आए.
बोतल में बंद नहीं बल्कि आज़ादी से बहने दें तो पानी शायद और शीतल रहे.