ब्लॉग: ये ट्रोल्स भस्मासुर हैं, इन्हें मत पालिए
ट्रोल्स के काटे का ज़ख़्म अब तक सिर्फ़ वो लोग सहलाते रहते थे जिन्हें सोशल मीडिया की ज़बान में लिबटार्ड, सिकुलर, ख़ानग्रेसी आदि विशेषणों से पुकारा जाता है. पर अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी ट्रोल्स के शिकारों की लिस्ट में शामिल हो गई हैं.
सुषमा स्वराज को आप न तो स्यूडो-सेक्युलर कह सकते हैं, न लिबटार्ड या ख़ानग्रेसी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भले ही उनकी राजनीतिक परवरिश न हुई हो पर वो भारतीय जनता पार्टी की महत्वपूर्ण नेताओं में हैं.
ट्रोल्स के काटे का ज़ख़्म अब तक सिर्फ़ वो लोग सहलाते रहते थे जिन्हें सोशल मीडिया की ज़बान में लिबटार्ड, सिकुलर, ख़ानग्रेसी आदि विशेषणों से पुकारा जाता है. पर अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी ट्रोल्स के शिकारों की लिस्ट में शामिल हो गई हैं.
सुषमा स्वराज को आप न तो स्यूडो-सेक्युलर कह सकते हैं, न लिबटार्ड या ख़ानग्रेसी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भले ही उनकी राजनीतिक परवरिश न हुई हो पर वो भारतीय जनता पार्टी की महत्वपूर्ण नेताओं में हैं.
राजनीति में अपने करियर की शुरुआत से ही वो काँग्रेस विरोधी रही हैं. सोनिया गाँधी से उनकी प्रतिद्वंद्विता के क़िस्से मशहूर रहे हैं. यहाँ तक कि 2004 में एनडीए के चुनाव हारने पर उन्होंने ऐलान कर दिया था कि अगर सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुंडवा लेंगी. ख़ैर उसकी नौबत ही नहीं आई.
फ़िलहाल तो सुषमा स्वराज इसलिए ख़बरों में हैं क्योंकि सोशल मीडिया में अपने शिकार को सूंघते फिरते ट्रोल्स उन्हीं पर झपट पड़े हैं.
क्या है मामला
लखनऊ में एक दंपति ने पासपोर्ट दफ़्तर में अपने साथ हुए व्यवहार की जानकारी ट्विटर के ज़रिए सुषमा स्वराज को दी जिसके बाद तुरंत पासपोर्ट जारी कर दिया गया.
शिकायत करने वाली महिला हिंदू थी और उसने एक मुसलमान से शादी की थी. दंपति का दावा था कि पासपोर्ट दफ़्तर में उनके इस रिश्ते पर सवाल किया गया तो उन्होंने सुषमा स्वराज से न्याय माँगा. उनकी माँग मान ली गई. हालाँकि, ट्रोल किए जाने के बाद सुषमा स्वराज ने कहा कि वो विदेश में थीं और उनकी ग़ैरमौजूदगी में क्या फ़ैसला हुआ इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.
दरअसल इस महिला का हिंदू होते हुए मुसलमान से शादी करना ही संघ परिवार की परिभाषा के मुताबिक़ जघन्य अपराध है. इसे संघ की शब्दावली में लव जिहाद कहा जाता है. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ता कहते हैं कि लव जिहाद के ज़रिए मुसलमान हिंदुओं की लड़कियों को बहला फुसला कर शादी कर लेते हैं और इस तकनीक से भारत में अपनी संख्या बढ़ाते हैं.
संघ के इस तर्क से सहमत लोगों के नज़रिए से देखा जाए तो लव जिहाद में शामिल हिंदू महिला ने पहले तो सुषमा स्वराज से शिकायत करने की हिमाक़त की और फिर दूसरी हिमाक़त सुषमा स्वराज ने की कि पासपोर्ट जारी कर दिया. माँग में गाढ़ा सिंदूर भरकर रखने वाली जो सुषमा स्वराज कल तक पवित्र हिंदू नारी का प्रतीक हुआ करती थीं, अचानक मुस्लिम परस्त हो गईं.
राजनीतिक पार्टियों ने पाला पोसा
संघ परिवार के इस प्रचार का असर हमारे आसपास के लोगों, सड़कों, गलियों और मोहल्लों में तो दिखता ही है, सोशल मीडिया पर उसका और नग्न स्वरूप नज़र आता है क्योंकि वहाँ ट्रोल्स किसी पर भी थूककर खड़े रह सकते हैं और पकड़े जाने की चिंता नहीं होती.
इसलिए कैप्टन सरबजीत ढिल्लों नाम के ट्विटर हैंडल से सुषमा स्वराज के लिए लिखा -"ये लगभग मरी हुई औरत है जो उधार माँगे गुर्दे पर चल रही है और वो गुर्दा भी किसी भी समय काम करना बंद कर सकता है." इंद्रा बाजपेयी के ट्विटर हैंडल से एक और तेज़ाबी टिप्पणी की गई: "शर्म करो मैडम. क्या ये तुम्हारे इस्लामी गुर्दे का असर है."
आप जानते ही हैं कि कुछ समय पहले ही सुषमा स्वराज की किडनी बदली गई थी. संघ परिवार के लव जिहाद वाले प्रचार के प्रभाव में ट्रोल्स ने उनकी बीमारी को भी हिंदू और मुसलमान से जोड़ने में कोई संकोच नहीं किया.
दरअसल, अपने विरोधियों पर हमला करवाने के लिए ट्रोल्स को पालने-पोसने का काम तमाम राजनीतिक पार्टियाँ करती हैं. कुछ ट्रोल कम तेज़ाबी होते हैं तो कुछ ज़्यादा.
इस सिलसिले में अपनी स्मृति पर ज़ोर डालें तो आपको निखिल दाधीच का नाम याद आएगा.
पिछले साल बंगलौर में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद निखिल दाधीच नाम के इन गुजराती व्यापारी ने ट्वीट किया था कि "एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे हैं." अपने ट्विटर हैंडल में निखिल तब गर्व से ऐलान करते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें फ़ॉलो करते हैं.
"प्रधानमंत्री की चुप्पी डरावनी है"
सोशल मीडिया पर ज़हर फैलाने वाले निखिल दाधीच जैसे हिंदुत्ववादी ट्रोल्स अपने प्रोफ़ाइल पर शान से लिखते हैं- ऑनर्ड टु बी फ़ॉलोड बाइ ऑनरेबल प्राइम मिनिस्टर. इनमें धमकी, गाली-गलौच और ब्लैकमेल की भाषा इस्तेमाल करने वाले लोग भी हैं जो मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का हाथ उनके सिर पर है क्योंकि प्रधानमंत्री उन्हें फ़ॉलो करते हैं.
अभी तक ऐसे कोई संकेत भी नहीं मिले हैं कि आलोचना के कारण ही प्रधानमंत्री ने ऐसे ट्रोल्स को फ़ॉलो करना बंद कर दिया हो. आलोचना का वैसे भी नरेंद्र मोदी पर बहुत असर नहीं पड़ता, बल्कि इससे उनके लिए ख़ुद को विक्टिम या साज़िश का शिकार बताना आसान हो जाता है.
जब निखिल दाधीच ने प्रधानमंत्री मोदी की ओट लेकर गौरी लंकेश को कुतिया और उनकी हत्या का विरोध कर रहे लोगों को कुत्ते के पिल्ले बताया था तो भारतीय जनता पार्टी के आइटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने बाक़ायदा एक बयान जारी करके कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम लोगों को फ़ॉलो करते हैं. वो बोलने की आज़ादी पर यक़ीन रखते हैं. उन्होंने कहा, "किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के फ़ॉलो करने भर से उसे चरित्र प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता."
इस विवाद के बाद प्रसिद्ध कन्नड़ सिनेमा एक्टर प्रकाश राज ने सवाल उठाया था, "जिन लोगों को हमारे प्रधानमंत्री ट्विटर पर फ़ॉलो करते हैं उनमें से कुछ इतने क्रूर हैं फिर भी प्रधानमंत्री उनकी ओर से आँखें मूंदे रहते हैं.... प्रधानमंत्री की चुप्पी डरावनी है."
उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच सीधा संवाद होता ही होगा. इस बार उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने ट्रोल्स की टिप्पणियों को री-ट्वीट करके अपनी नाराज़गी जताई. पर क्या वो कभी प्रधानमंत्री से सीधे संवाद में ये कहने की हिम्मत करेंगी कि - मोदी जी, ये ट्रोल्स भस्मासुर हैं. इन्हें पालना बंद कीजिए!