ब्लॉग: ‘लव जिहाद’, मोहब्बत और ‘स्पेशल मैरिज’
दो अलग धर्मों के औरत और आदमी बिना अपना धर्म बदले 'स्पेशल मैरिज एक्ट" के तहत शादी कर सकते हैं पर करने से घबराते हैं. क्यों?
पिछले हफ़्ते दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद में एक मुसलमान मर्द और हिंदू औरत की शादी को 'लव जिहाद' बताते हुए सैकड़ों लोगों के प्रदर्शन की ख़बर शायद आपने भी देखी हो.
अगर ख़बर पढ़ने का व़क्त मिला हो तो ये भी जानते होंगे कि उस औरत और मर्द के परिवार ने इस शादी को 'लव जिहाद' बताए जाने का ज़ोरदार विरोध किया.
मुसलमान मर्दों के जबरन हिंदू औरतों से शादी करने को कई हिंदुत्ववादी संगठनों ने 'लव जिहाद' की संज्ञा दी है.
इन संगठनों का मानना है कि ऐसी शादियों के ज़रिए हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है.
ग़ाज़ियाबाद के परिवार ने मीडिया को बताया कि ये सहमति से की गई शादी थी जिसके लिए किसी ने भी अपना धर्म नहीं बदला.
लड़की के पिता ने 'स्क्रोल' समाचार वेबसाइट को बताया कि ये शादी 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' के तहत हुई जिसमें मां-बाप की रज़ामंदी लेना ज़रूरी होता है, तो ज़बरदस्ती का तो सवाल ही नहीं उठता.
बल्कि उनका आरोप है कि 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' के तहत शादी करने से ही प्रदर्शन और हंगामे का ख़तरा पैदा हुआ.
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क्या है 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' 1954?
भारत में ज़्यादातर शादियां अलग-अलग धर्मों के क़ानून और 'पर्सनल लॉ' के तहत होती हैं. इसके लिए मर्द और और- दोनों का उसी धर्म का होना ज़रूरी है.
यानी अगर दो अलग-अलग धर्म के लोगों को आपस में शादी करनी हो तो उनमें से एक को धर्म बदलना होगा. पर हर व्यक्ति मोहब्बत के लिए अपना धर्म बदलना चाहे, ये ज़रूरी नहीं है.
इसी समस्या का हल ढूंढने के लिए संसद ने 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' पारित किया था जिसके तहत अलग-अलग धर्म के मर्द और औरत बिना धर्म बदले क़ानूनन शादी कर सकते हैं.
ये क़ानून हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत होने वाली कोर्ट मैरिज से अलग है और पेचीदा भी. बल्कि इसके तहत शादी करने वालों के लिए ये क़ानून एक नई चुनौती पैदा करता है.
साधारण कोर्ट मैरिज से अलग कैसे?
साधारण कोर्ट मैरिज में मर्द और औरत अपने फोटो, 'एड्रेस प्रूफ़', 'आईडी प्रूफ़' और गवाह को साथ ले जाएं तो 'मैरिज सर्टिफ़िकेट' उसी दिन मिल जाता है.
'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' में व़क्त लगता है. इसके तहत की जा रही 'कोर्ट मैरिज' में ज़िले के 'मैरिज अफ़सर' यानी एसडीएम को ये सारे दस्तावेज़ जमा किए जाते हैं, जिसके बाद वो एक नोटिस तैयार करते हैं.
इस नोटिस में साफ़-साफ़ लिखा होता है कि फ़लां मर्द, फ़लां औरत से शादी करना चाहते हैं और किसी को इसमें आपत्ति हो तो 30 दिन के अंदर 'मैरिज अफ़सर' को सूचित करें.
इस नोटिस का मक़सद ये है कि शादी करने वाला मर्द या औरत कोई झूठ या फ़रेब के बल पर शादी ना कर पाए और ऐसा कुछ हो तो एक महीने में सामने आ जाए. हालांकि हिंदू मैरिज ऐक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
ये नोटिस 30 दिन तक कोर्ट के परिसर में लगा रहता है. 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' के तहत शादी तभी मुकम्मल मानी जाती है जब 30 दिन के दरमियान कोई व्यक्ति किसी तरह की शिकायत ना करे.
लेकिन इसका उलटा असर भी हो सकता है.
गाज़ियाबाद के उस पिता के मुताबिक अंतर-धार्मिक शादी की जानकारी जब सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हो तो उसका आसानी से ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है.
गाज़ियाबाद के परिवार का दावा है कि शादी सहमति से हुई फिर भी अंतर-धार्मिक शादी की ख़बर बाहरी लोगों को मिलने की वजह से विरोध हुआ जिसके चलते शादी के 'रिसेप्शन' में आए मेहमानों को वापस भेजना पड़ा.
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'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' से डर क्यों?
अब फ़र्ज़ कीजिए कोई ऐसी शादी हो जिसमें लड़का-लड़की अलग धर्म के हों और राज़ी हों लेकिन मां-बाप रज़ामंद ना हों?
पहचान छिपाए जाने की शर्त पर एक हिंदू मर्द ने मुझे बताया कि अपनी मुसलमान गर्लफ़्रेंड से शादी करने में 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' बिल्कुल काम नहीं आ रहा.
मर्द और औरत वयस्क हैं और धर्म बदले बग़ैर शादी करना चाहते हैं पर ऐक्ट में लिखी नोटिस की शर्त तलवार की तरह गरदन पर लटकी है.
उन्हें बताया गया है कि मां-बाप की रज़ामंदी ज़रूरी है और नोटिस का मक़सद ये जानकारी फैलाना ही है.
औरत दूसरे शहर की है, तो नोटिस की एक कॉपी वहां की ज़िला अदालत में लगाई जाएगी.
नतीजा ये कि अब वो सोच रहे हैं कि कौन अपना धर्म बदले ताकि हिंदू या मुसलमान तरीके से शादी हो सके.
पर इसके लिए दिल रज़ामंद भी नहीं. परेशान हैं कि 'स्पेशल मैरिज ऐक्ट' के होने के बावजूद उसकी मदद से शादी करने की हिम्मत नहीं हो रही.
'लव जिहाद' के माहौल और 'स्पेशल मैरिज' की पेचीदगी में अब भी अनसुलझी है उनकी मोहब्बत की कहानी.
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