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ब्लॉगः 2002 के बाद कितना बदला है गुजरात का मुसलमान?

अब पढ़े-लिखे मुस्लिम अपनी बस्तियों से बाहर निकलकर अन्य समुदायों से मिल-जुल रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
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गुजरात में मुस्लिम साक्षरता 80 फ़ीसदी के करीब
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गुजरात में मुस्लिम साक्षरता 80 फ़ीसदी के करीब

गुजरात में दिसंबर में चुनाव होने जा रहे हैं. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने मुस्लिम वोटों के बिना ही पिछले तीन विधानसभा चुनाव जीते हैं. न तो मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा गया न ही सक्रिय रूप से उनसे वोट ही मांगे गए. इसके परिणाम स्वरूप, एक अवधारणा बनी कि मुसलमानों को राज्य में अनौपचारिक रूप से मतदान से वंचित कर दिया गया है.

कांग्रेस के पुनर्जीवित होने की रिपोर्ट्स के मद्देनज़र भाजपा मुस्लिम मतदाताओं की लगातार चौथी बार उपेक्षा कैसे कर सकती है? क्या कोई भी पार्टी, उस मसले के लिए, राज्य की आबादी के लगभग 10 फ़ीसदी मतदाताओं को नज़रअंदाज कर सकती है? अस्पष्ट? शायद.

2002 के दंगों के बाद अब गुजरात के मुस्लिमों में आत्मविश्वास जागने लगा है
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2002 के दंगों के बाद अब गुजरात के मुस्लिमों में आत्मविश्वास जागने लगा है

मुस्लिम साक्षरता 80 फ़ीसदी के करीब

हां, इतना स्पष्ट ज़रूर है कि मुस्लिम समुदाय किसी भी पार्टी का ध्यान आकर्षित करने के लिए पीछे की ओर नहीं झुकेगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि 2002 की हिंसा के बाद से गुजराती मुसलमानों का आत्मविश्वास बढ़ा है. उन्होंने शिक्षा के महत्व का मजा लेना शुरू कर दिया है. अब उनकी साक्षरता दर करीब 80 फ़ीसदी तक पहुंच गई है.

बेशक यह मान लेना धृष्टता होगी कि वो उन दंगों से उबर चुके हैं और पीड़ितों के परिवार ने न्याय मांगना रोक दिया है. यह भी मानना सही नहीं है कि वो अभी भी गुस्से से चुप हैं. मुस्लिमों के बड़े तबके ने मीडिया की चमक से दूर रहते हुए एक जादुई शब्द "शिक्षा" पर ध्यान केंद्रित करते हुए खुद को सशक्त बनाने में वास्तव में कड़ी मेहनत की है.

दरअसल, मैंने 2002 के दंगों के बाद गुजराती मुस्लिमों की कहानी धीरे-धीरे बदलती देखी है. यह समुदाय जो अलग-थलग हो गया और महसूस किया कि उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से बाहर कर दिया गया है, इन्हें पहले डर और असुरक्षा ने जकड़ लिया था.

फ़िरदौस आत्मविश्वास से कहती हैं कि उसे गुजराती और भारतीय होने पर गर्व है
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फ़िरदौस आत्मविश्वास से कहती हैं कि उसे गुजराती और भारतीय होने पर गर्व है

चार गुना बढ़ीं मुस्लिम संचालित शैक्षणिक संस्थाएं

तब उन्होंने वापस अपनी आवाज़ें ढूंढी और अन्याय के ख़िलाफ़ जोरदार विरोध करना शुरू किया. आधिकारिक उदासीनता से निराश उन्होंने खुद की सहायता करने का फ़ैसला किया. 2002 की हिंसा के समय मुस्लिम संचालित शैक्षणिक संस्थाओं की संख्या 200 थी. जो 2017 में 800 तक बढ़ गया है. इन संस्थाओं के ज़्यादातर छात्र 2002 के दंगों के बाद पैदा हुए थे.

मेरी मुलाक़ात हिजाब पहने एक 12 वर्षीय लड़की फ़िरदौस से अहमदाबाद के एक स्कूल में हुई जिसने बड़े आत्मविश्वास से मुझसे कहा कि वो एक मुस्लिम है और उसे गुजराती और भारतीय होने पर गर्व है. दूसरी लड़कियों ने भी यही कहा. अहमदाबाद के शाहपुर इलाके में मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित कई स्कूल सैकड़ों मुस्लिम लड़कियों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने में सफल रहे हैं.

फ़िरदौस के शब्द कोई साधारण बयान नहीं थे. यह निश्चित रूप से अतीत की कड़वाहट को नहीं दर्शाता है. इसका मतलब यह भी है कि दंगा पीड़ितों ने नई पीढ़ी को सकारात्मकता की शिक्षा दी थी. कुछ छात्र डॉक्टर बनना चाहते थे तो कुछ आईटी प्रोफ़ेशनल. कोई भी बदला लेने के विचार से सहमत नहीं था. उनके प्रधान शिक्षक ने मुझसे कहा कि वो इन बच्चों को ऐसे ज्ञान और कौशल के हथियार से मजबूत बना रहे हैं कि भविष्य में कोई भी सरकार या नियोक्ता उनकी उपेक्षा न करे.

आज गुजरात में बड़ी दाढ़ी, इस्लामिक पहनावे और बड़ी संख्या में मस्जिदों में जुटना आम बात है
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आज गुजरात में बड़ी दाढ़ी, इस्लामिक पहनावे और बड़ी संख्या में मस्जिदों में जुटना आम बात है

राजनीतिक सशक्तिकरण भी दूर नहीं

नौकरियां उनके पास आएंगी. वो यह बताते दिखे कि उनके पास संपन्नता आएगी. और एक बार जब वो सफल होंगे तो राजनीतिक शक्तियां उनके पास आएंगी. हनीफ़ लकड़वाला अहमदाबाद के मुस्लिम समुदाय के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने मुझे एक बार कहा था कि गुजरात एक हिंदू प्रयोगशाला है और मुस्लिमों को इसका फल मिलता रहा है.

लेकिन उनके अनुसार शिक्षा ने समुदाय को सामाजिक रूप से दृढ़ बनाने का एक अवसर दिया है. वो कहते हैं कि अब पढ़े-लिखे मुस्लिम अपनी बस्तियों से बाहर निकलकर अन्य समुदायों से मिल-जुल रहे हैं. वडोदरा में मेरी मुलाकात एक युवा विवाहित महिला से हुई जिसे गांव में हिंदू परिषद के सदस्यों ने सरपंच चुना था. उन्होंने कहा कि मुस्लिम सशक्तिकरण नीचे से भी शुरू होता है तो उसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं है.

संयोग से मैं मुस्लिम व्यापारियों, व्यवसायियों और रेस्तरां मालिकों से मिला जिनके चेहरे पर कोई डर नहीं बल्कि आत्मविश्वास झलक रहा था. और तो और उन्होंने गर्व से अपने आस्तीन पर अपनी धार्मिक पहचान पहन रखी थी. आज गुजरात में बड़ी दाढ़ी, इस्लामिक पहनावे और मस्जिदों में बड़ी संख्या में जुटना सामान्य बात है. और बहुसंख्यक समुदाय से भी कोई इसकी शिकायत नहीं कर रहा.

गुजरात में मुस्लिमों के आत्मसम्मान को बहाल किया गया लगता है. अब उनका राजनीतिक सशक्तिकरण भी बहुत दूर नहीं दिखता है.

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English summary
Blog How much of Gujarat has changed since 2002
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