बीजेपी को अगले विधानसभा चुनावों में भी ऐसी ही 'त्रिशंकु' खुशी मिलेगी !
बेंगलुरु। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी को झकझोर कर रख दिया है। चुनाव परिणाम से पहले जीत के लिए निश्चिंत बीजेपी को इन परिणामों से बहुत बड़ा सबक मिला है। वहीं जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 370 को हटाए जाने के करीब दो महीने बाद प्रदेश में पहला चुनाव कराया गया। जिसके परिणाम भाजपा के लिए उत्साहवर्धक नही है। इनसे पता चल चुका है कि जनता किस मूड में है। हालांकि महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों में सबक बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए है। बीजेपी के लिए विशेष रूप से है क्योंकि जल्द ही दिल्ली, बिहार और झारखंड चुनाव में होने वाले हैं।अब सवाल उठता है कि क्या बीजेपी को अगले विधानसभा चुनावों में भी ऐसी ही 'त्रिशंकु' खुशी मिलेगी !
बीजेपी को स्थानीय मुद्दो को नजरअंदाज करना पड़ा भारी
भले ही बीजेपी महाराष्ट्र के साथ साथ हरियाणा में भी सरकार बनाने जा रही है और अभी भी बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा विकल्प नजर नही आ रहा लेकिन बीजेपी ने रवैया बदला नहीं तो आने वाले चुनाव में भी ऐसे ही नजीतें होगे। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी नेतृत्व के लिए कई मामलों में अलर्ट हैं। इसलिए माना जा रहा है कि जल्द ही बीजेपी अगले विधानसभा चुनावों की तैयारी तेज करने वाली है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वरिष्ठ नेताओं को अच्छे से समझ आ चुका है कि स्थानीय समस्याओं को नकार कर केवल राष्ट्रवाद के दम पर बहुमत हासिल नही किया जा सकता है। राष्ट्रवाद मुद्दा है, लेकिन उसकी भी सीमा है। ये तो कतई नहीं कहा जा सकता कि लोगों ने बीजेपी के राष्ट्रवाद के मुद्दे को खारिज कर दिया है। हां, नतीजे ही ये भी बता रहे हैं कि राष्ट्रवाद, धारा 370 या पाकिस्तान जैसे मुद्दे चुनावी थाली का जायका बढ़ा सकते हैं, लेकिन उसमें मूल तत्व बेहद जरूरी हैं और उन्हें नजरअंदाज करने का खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।
आम चुनाव के ही तेवर को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी ने राष्ट्रवाद का मुद्दा आगे बढ़ाया और आखिर तक टिकी रही। ये तो नहीं कहा जा सकता कि लोगों ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया, लेकिन यह स्पष्ठ हो चुका है कि ये बार बार नहीं चलने वाला। चुनाव से पूर्व राजनीतिक विशेषज्ञ की भविष्यवाणियों को झूठा करार कर दिया जिसमें कहा गया था कि इन दोनों राज्यों में राष्ट्रवाद और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर ही बीजेपी बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी।
वहीं बात की जाएगी भाजपा की जोड़ तोड वाली राजनीति की तो इसमें महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे मिसाल है कि इसमें मामला 50-50 वाला ही रहेगा। तोड़-फोड़ में चांस 50-50 ही है । चुनावों के समय बीजेपी दूसरे दलों के नेताओं को बड़ी तेजी से तोड़ कर लाती रही है और बदले में उन्हें ओहदे भी गिफ्ट करती रही है। लेकिन सतारा का नतीजा सबसे बड़ा उदाहरण है कि ये सब कही नही चलता। वैसे महाराष्ट्र में ऐसे 19 उम्मीदवार चुनाव हार गये हैं।
जम्मू कश्मीर में नहीं मिला उत्साहवर्धक परिणाम
2014 में बीजेपी का विजय अभियान आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और आधा जम्मू-कश्मीर तक जारी रहा, लेकिन इस बार उसमें रोड़े खड़े हो गये हैं। झारखंड में चुनाव अभी कराये नहीं गये हैं और जम्मू-कश्मीर में हालात माकूल नहीं बताये जा रहे हैं। हालांकि, विधानसभा चुनाव के नतीजों के दिन 24 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर में ब्लॉकों के चुनाव कराये गये हैं। नतीजे भी आ चुके हैं और वे बीजेपी के लिए जरा भी उत्साहजनक नहीं हैं। आर्टिकल 370 को हटाए जाने के करीब दो महीने बाद प्रदेश में पहला यह चुनाव कराया गया। जिसमे प्रदेश की 280 ब्लॉक सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 81 सीटों पर ही जीत हासिल हुई। बीजेपी को कश्मीर क्षेत्र की 137 ब्लॉक पर हुए चुनाव में 18 पर जीत मिली । वहीं पार्टी के बेहद मजबूत गढ़ माने जाने वाले जम्मू क्षेत्र की बात करें तो यहां 148 ब्लॉक सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी को 52 सीटें आई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अगली अग्निपरीक्षा
भाजपा के लिए अगली सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव है। माना जा रहा है कि इसी साल दिसंबर में दिल्ली विधानसभा चुनाव हो सकते है। वहां पर सबसे सत्ता में बैठी केजरीवाल सरकार ने जो पिछले पांच साल में जनता के हित में निर्णय लिए है इससे साफ है कि दिल्ली में ही भाजपा को विपक्ष से काटे की टक्कर होगी। बता दें पांच साल पहले बीजेपी को दिल्ली विधानसभा चुनाव से झटके लगने शुरू हुए थे, लेकिन इस बार पहले ही शुरू हो गये हैं। चुनावी पैटर्न पहले जैसा ही रहा है, मोदी लहर के साथ ही बीजेपी पिछली बार विधानसभा चुनावों में भी उतरी थी। फर्क सिर्फ इतना रहा कि इस बार बीजेपी के पास मुख्यमंत्री के चेहरे थे, पिछली बार ऐसे चेहरे कांग्रेस के पास थे।
दिल्ली में बीजेपी के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती नजर आ रही है। इसलिए नहीं कि वो पिछली बार हार गयी थी, बल्कि, इसलिए क्योंकि दिल्ली बीजेपी में अब भी बहुत कुछ बदला नहीं है। गुटबाजी जहां की तहां ही है। आम चुनावों में इसलिए ज्यादा महसूस नहीं हुआ क्योंकि तब हर तरह सर्जिकल स्ट्राइक और मोदी मैजिक चला था। विशेषज्ञ मान रहे है कि दिल्ली में आप के तीसरे स्थान पर खिसक जाने से भी बीजेपी को बहुत निश्चिंत रहने की जरूरत नहीं है। आम चुनाव के नतीजों ने अरविंद केजरीवाल को भूल सुधार का मौका मुहैया करा दिया और तभी से वो नये सिरे से चुनावी तैयारियों में जुट चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीतियों में भी काफी बदलाव किया है - मोदी सरकार पर निजी हमलों की जगह उम्मीद भरी तारीफें होने लगी हैं और केंद्र के कदमों पर बड़ी ही नपी तुली प्रतिक्रिया आ रही है।
झारखंड चुनाव
झारखंड में भी महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ ही चुनाव होने वाले थे, लेकिन आम आदमी पार्टी का कयास है कि उसे दिल्ली के साथ कराया जा सकता है। बिहार का नंबर उसके बाद आता है। 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को दिल्ली और बिहार दोनों में ही हार का मुंह देखना पड़ा था। अब तक तो यही सुनने में आया है कि झारखंड में भी क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर खड़ा हुआ है। ऐसे में बीजेपी ने अगर राष्ट्रवाद के सहारे एक बार फिर स्थानीय समस्याओं से ध्यान बंटाने की कोशिश की तो नतीजे उलटे पड़ेंगे इसमें शक की कम ही गुंजाइश है। ये बात अलग है कि हरियाणा में बहुमत से चूक जाने के बावजूद बीजेपी वोटों की हिस्सेदारी में 3 फीसदी का इजाफा और सबसे बड़ी पार्टी बने रहने को भी बड़ी उपलब्धि बता रही है। ये भी ठीक है कि वो भले ही जेजेपी की मदद से सरकार बनाने में कामयाब हो रही है, लेकिन ये भी ध्यान रहे एक ही जुगाड़ हर बार काम नहीं करता।
बिहार चुनाव होगी बड़ी चुनौती
आम चुनाव में तो बिहार में भी राष्ट्रवाद, पाकिस्तान और सर्जिकल स्ट्राइक से काम चल गया, लेकिन उसके बाद चमकी बुखार और बाढ़ से बेहाल बिहार के लोग नेताओं का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। ऐसा भी संभव नहीं है कि बीजेपी सारी जिम्मेदारियां मुख्यमंत्री के कंधे पर थोप कर पल्ला झाड़ लेगी, क्योंकि चुनाव में एनडीए का चेहरा तो नीतीश कुमार ही होंगे। बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजों को बीजेपी और जेडीयू चाहें तो एक अच्छे फीडबैक के तौर पर ले सकते हैं। समस्तीपुर लोकसभा सीट तो पासवान परिवार की थी और बनी हुई है। पहले राम विलास पासवान के भाई सांसद रहे, अब उनके भतीजे प्रिंस सांसद बन गये हैं। बड़ी बात ये है कि पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में एनडीए के हिस्से में सिर्फ एक सीट आई है और आम चुनाव में खाता भी नहीं खोल पायी आरजेडी ने दो सीटें जीत ली हैं।
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