भाजपा-सेना गठबंधन टूटना फिक्स मैच था !
महाराष्ट्र। महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है। एक तरफ जहां भाजपा महाराष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है वहीं दूसरी ओर शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप मजबूती से खड़ी होती दिख रही है। चुनाव से पहले दोनों पार्टियों ने पचीस साल पुराने रिश्ते को ताक पर रखकर गठबंधन को खत्म कर दिया था।
लेकिन मतगणना के दौरान रुझानों के बाद के फैसले के बाद जिस तरह से दोनों ही दलों के ओर से बयानबाजी हुई और फिर से गठबंधन जुड़ने के संकेत मिलने लगे उससे गठबंधन टूटने के पीछे पर्दे के पीछे का कुछ और ही खेल नजर आ रहा है।
ये संकेत जो बताते हैं गठबंधन टूटने का मैच फिक्स था
- महाराष्ट्र में गठबंधन टूटने के बाद भी केंद्र में गठबंधन बरकरार
-
सामना
में
उद्धव
का
मोदी
के
खिलाफ
सख्त
टिप्पणी
करना
फिर
भी
मुखर
छवि
मोदी
की
चुप्पी
- केंद्र में शिवसेना के मंत्री अनंत गीते का पद पर बने रहना
चुनाव से पहले गठबंधन तोड़ने के फायदे
-
महाराष्ट्र
में
विपक्ष
को
ज्यादा
से
ज्यादा
कमजोर
करना।
-
मराठी
मानुष
और
हिंदु
वोटों
को
बंटने
से
रोकने
के
लिए
दोनों
ही
वर्ग
के
मतदाताओं
में
पूरी
सेंध
लगाना।
-
कांग्रेस
को
महाराष्ट्र
की
राजनीति
से
उखाड़
फेंकना।
- अलग-अलग चुनाव लड़ने से ज्यादा सीटें जीतने का फायदा मिलना।
दरअसल जिस तरह से चुनाव के बाद दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन खत्म किया उसकी वजह सिर्फ सीटों का बंटवारा और मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद को बताया गया। वह थोड़ा समझ से परे था और ठीक उसके बाद शिवसेना जो अपने तीखें बोल के लिए जानी जाती है उसने भाजपा पर हमला बोलना शुरु कर दिया। जबकि दूसरी तरफ मोदी का यह कहकर कि बाला साहब ठाकरे के सम्मान में शिवसेना के खिलाफ कुछ नहीं बोलने का फैसला लेना कुछ और ही संकेत कर रहा था।
शिवसेना सामना में अपने लेख से जहां लगातार भाजपा सहित अन्य विपक्षियों पर तीखा हमला बोल कर अपने समर्थकों में अपनी पैठ बना रही थी। तो वहीं दूसरी तरफ मोदी का शिवसेना के खिलाफ कुछ नहीं बोलने का फैसला एक बड़े वर्ग को उनकी भद्र छवि से रूबरू करा रहा था। ऐसे में मोदी ने कांग्रेस और एनसीपी के मतदाताओं में अपनी पैठ को मजबूत करने का अभियान शुरु किया तो शिवसेना ने मराठी मानुस की राजनीति को एकतरफा शिवसेना के पक्ष में करने की मुहिम में जुट गयी।
दोनों ही पार्टियों की यह रणनीति काफी कारगर होती दिख रही है। महाराष्ट्र में भाजपा ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ती दिख रही है। उसे पिछले विधानसभा चुनाव में 46 सीटों की तुलना में 120 सीटें मिलती दिख रही है। जबकि शिवसेना को 44 से 65 सीटें जीतती दिख रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और एनसीपी अपने सबसे बुरे दौर में जाती दिख रही है। यही नहीं राज ठाकरे की मनसे भी 13 की बजाए सिर्फ 3 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है।