महाराष्ट्र चुनाव : नम्बर गेम में बाजी मारने के लिए एक दूसरे को ही पछाड़ने में लगी भाजपा- शिवसेना
नई दिल्ली। महाराष्ट्र में भाजपा विपक्ष से नहीं बल्कि अपनी सहयोगी शिवसेना से डरी हुई है। उसे डर है कि अगर शिवसेना अधिक सीटें जीत गयी तो सीएम की कुर्सी उसके हाथ से खिसक जाएगी। छोटे भाई से बड़े भाई की भूमिका में आने वाली भाजपा अपनी हैसियत को लेकर फिक्रमंद है। बाल ठाकरे के पौत्र आदित्य ठाकरे को सोच-समझ कर मैदान में उतारा गया है। ठाकरे परिवार का कोई सदस्य पहली बार चुनाव लड़ रहा है। नजर सीएम की कुर्सी पर है। गठबंधन के तहत शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। चुनाव प्रचार शनिवार की शाम खत्म हो जाएगा। अब तक शिव सेना ने जिस तरह से चुनाव प्रचार किया उससे यह साफ हो गया है उसे केवल अपनी ही जीत की फिक्र है। कई सीटों पर शिवसैनिकों ने भाजपा उम्मीदवारों के दूरी बनाये रखी। शिवसेना के कई समर्पित नेताओं ने केवल इसलिए पार्टी से इस्तीफा दे दिया ताकि उन पर गठबंधन धर्म का पालन करने के लिए दबाव नहीं डाला जाए। शिवसेना के इस रवैये से भाजपा ने आखिरी लम्हों में अपनी ताकत तो झोंकी लेकिन वह नुकसान की आशंका से सहमी हुई है।
भाजपा की चिंता
2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव भाजपा और शिवसेना मिल कर लड़ रही हैं। भाजपा 150 सीटों पर चुनाव मैदान में है। 14 सीटों पर भाजपा के सहयोगी दल कमल छाप पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। शिवसेना 124 सीटों पर लड़ रही है। 2014 में भाजपा ने शिवसेना से अलग हो कर चुनाव लड़ा था। उसे 122 सीटें मिली थीं। 23 सीटों की कमी से वह बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पायी थी। शिवसेना को केवल 63 सीटें मिलीं थीं। मजबूरी में भाजपा को शिवसेना के साथ मिल कर सरकार बनानी पड़ी। 2019 में भाजपा सिर्फ 150 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऊपर से शिवसेना की भितरघात भी झेलनी पड़ रही है। ऐसे में भाजपा को डर है कि उसकी सीटें कहीं 122 से भी कम न हो जाएं। खुदा न खास्ते शिवसेना को भाजपा से अधिक सीटें मिल गयीं तो सीएम की कुर्सी पर उसका स्वभाविक दावा बन जाएगा। भाजपा को धारा 370 और तीन तलाक के मुद्दे पर फायदा मिलता तो दिख रहा है लेकिन ‘फ्रैंडशिप विद डिफरेंस' ने उसे परेशान कर दिया है।
ठाकरे को भावी सीएम की तरह प्रोजेक्ट किया
चुनाव प्रचार के दौरान यही लगा कि दोनों दल, दिल से एक नहीं हैं। शिवसेना ने उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को भावी सीएम की तरह प्रोजेक्ट किया है। शिवसेना के पोस्टरों पर बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की तस्वीर तो रही लेकिन भाजपा के किसी नेता को इसमें जगह नहीं मिली। यहां तक कि शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर को भी अपने पोस्टरों में जगह नहीं दी। उसी तरह भाजपा के पोस्टरों से भी शिवसेना के नेता नदारत रहे। सरकार के कामकाज को भी दोनों दलों ने अपने-अपने तरीके से पेश किया। शिवसेना ने अलग चुनाव घोषणा पत्र जारी कर लोगों को लुभाने की कोशिश की। शिवसेना ने गरीबों को 10 रुपये में पौष्टिक भोजन देने का वायदा कर भाजपा पर बढ़त लेने की कोशिश की। 2019 में शिवसेना मिल कर भी अलग-अलग चुनाव लड़ती दिखीं। एक दूसरे को पछाड़ने के लिए पूरा दम लगाया है।
भाजपा को निबटाने के लिए खेल
नासिक पश्चिमी सीट से जब भाजपा ने सीमा हीरे को टिकट दिया तो वहां के शिवसेना पार्षदों और कई पदाधिकारियों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया। इस सीट पर शिवसेना के विक्षुब्ध नेता विलास शिंदे चुनाव लड़ रहे हैं। शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने इस लिए इस्तीफा दिया ताकि वे विलास शिंदे के लिए काम कर सकें। ये इस्तीफा एक खेल था ताकि भाजपा शिवसेना को गठबंधन धर्म निभाने के लिए जोर न दे सके। इसी तरह कल्याण विधानसभा सीट जब भाजपा के कोटे में चली गयी तो वहां के 26 शिवसैनिक पार्षदों ने इस्तीफा दे दिया। ये सभी शिवसैनिक भाजपा प्रत्याशी के प्रचार से दूर रहे। शिवसेना के स्थानीय नेताओं ने इस्तीफे के खेल से बागियों की खूब मदद की है। इससे भाजपा को कई सीटों पर नुकसान की आशंका जतायी जा रही है। ये तो गनीमत है कि भाजपा की लड़ाई एक कमजोर विपक्ष से है, वर्ना शिवसेना ने उसे गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
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